बुंदेलखंड की डायरी ; बुंदेलखंड के सिद्ध शिव धाम जहाँ बढ़ता है उनका आकर
रवीन्द्र व्यास
सावन महीने में भगवान शिव की आराधना का अपना एक अलग धार्मिक महत्व माना गया है | इसके पीछे मान्यता है कि श्रावण मास में ही भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित हुए थे ,इसकी भी अपनी एक अलग कथा है । बुंदेलखंड में भोले नाथ की आराधना और भक्ति का दौर भी सनातन माना जाता है | यहाँ पर पाए जाने वाले प्राचीनतम शिवालय इसकी पुष्टि करते हैं | कई ऐसे शिवालय भी हैं जिनका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है | लोकमान्यता है कि सावन माह में की गई शिव उपासना का विशेष फल भक्तों को प्राप्त होता है। इसी कारण श्रद्धालु सामर्थ्य अनुसार व्रत, उपवास, पूजन, अभिषेक आदि भले नाथ को प्रसन्न करने के लिए करते हैं |
बुंदेलखंड के बांदा (यूपी ) जिले में कालिंजर में नीलकंठ महादेव का मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है | ।इस स्थल का वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है | कहते हैं कि सावन माह में जब समुद्र मंथन हुआ और उससे जो हलाहल विष निकला था उसे भोलेनाथ ने अपने अपने कंठ में धारण कर लिया था | इसी विष के प्रभाव को नष्ट करने के लिए भोलेनाथ ने यहाँ के पर्वत के मध्य योग साधना की थी | इसी के बाद इस स्थान का नाम कालिंजर पड़ा , क्योंकि यही भोले नाथ ने काल की गति को मात दी थी|
इस स्थल का उल्लेख पद्म पुराण , मत्स्य पुराण , जैन ग्रंथों और बौद्ध जातकों में भी मिलता है ।कालिंजर का अस्तित्व सतयुग से माना जाता है। सतयुग में इसे कीर्तिनगर, त्रेतायुग में मध्यगढ़ और द्वापर युग में सिंहलगढ़ के नाम से जाना जाता था। वहीं, कलयुग में इसे कालिंजर के नाम से पुकारा जाता है। इस स्थान पर सावन के महीने में ही नहीं बल्कि वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है | यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के आधीन होने के कारण श्रद्धालु जलाभिषेक नहीं कर पाते |
श्री जागेश्वर नाथ धाम बांदकपुर
बुंदेलखंड के दमोह जिले के बांदकपुर में जागेश्वर नाथ धाम बांदकपुर में स्वयं भू भोले नाथ अनादिकाल से विराजमान हैं. इस देव स्थान की प्रसिद्ध तेरहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूरे भारत में है. | यह शिवलिंग हर साल चौड़ा यानी बढ़ता जा रहा है।इसके पीछे क्या कारण है, यह अब तक अज्ञात बना हुआ है।यही कारण है कि, चारों धाम की यात्रा करने वाला इस तीर्थ के दर्शन किए बिना नहीं रहता, जहां पर प्रथम श्रीनाथ जी का स्वयंभू लिंग है. ऐसी मान्यता है कि, इनके दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
प्राचीन काल से ही सावन माह , बसंत पंचमी, और शिवरात्रि के पर्वों पर लाखों की संख्या में कांवर में लाया नर्मदा जी का जल श्री जागेश्वर नाथ की पिंडी पर चढ़ाकर जलाभिषेक करते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि सवा लाख कांवर चढ़ने पर माता पार्वती एवं महादेव के मंदिरों के झंडे एक दूसरे के मंदिर तरफ झुक कर आपस मिलकर अपने आप गांठ बंध जाती है।
भोलेनाथ का 5000 साल पुराना स्वयंभू शिवलिंग जो हर वर्ष बढ़ता है
टीकमगढ़ के शिव धाम कुंडेश्वर में लगभग पांच हजार वर्ष पुराना स्वयंभू शिवलिंग है। लोक मान्यता है कि यह शिव लिंग हर वर्ष चावल के आकार के बराबर बढ़ता है | शिव लिंग की कितनी जलहरी हैं यह आजतक कोई भी ज्ञात नहीं कर सका है | कहते हैं कि द्वापर युग में दैत्य राज बाणासुर की पुत्री ऊषा वन मार्ग से आकर यहां पर बने कुण्ड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे ,| आज भी वाणासुर की पुत्री ऊषा यहां पर पूजा करने के लिए आती है। बुंदेलखंड इ शिवभक्त यहां मनौती मांगने पहुँचते हैं |
खजुराहो का मतंगेश्वर मंदिर ::
वैसे तो खजुराहो और आस पास अनेकों शिवालय हैं , पर यहां का ९५०- १००२ ई. सन् के मध्य निर्मित मतंगेश्वर महादेव का यह मंदिर अनेक रहस्यों से घिरा है | ९ फिट ऊँचा और ४ फिट व्यास वाला यह शिव लिंग जितना ऊपर दिखाई देता है उतना ही नीचे भी है | इस शिवलिंग की पूजा लोग जलहरी पर चढ़कर करते हैं | लोक मान्यता है कि शिवलिंग के निचे मरकत मणि स्थापित है | यह मरकत मणि किसने स्थापित कराई थी ,इसको लेकर कहा जाता है कि स्वयं भगवान् शिव ने मरकत मणि युधिष्ठिर को दी थी | बाद में युधिष्ठिर ने यह मणि मतंग ऋषि को दी थी और मतंग ऋषि ने यह मणि चंदेल राजा हर्षवर्धन को सौंप दी थी | मणि किसी गलत हाथ में ना पहुँच जाए इसलिए चंदेल राजा ने यहाँ एक विशाल शिवलिंग स्थापित कराया और उसके नीचे मरकत मणि को स्थापित करा दिया गया | मतंग ऋषि के नाम से इस मंदिर को मतंगेश्वर नाम से पहचान दी गई | कहते हैं हर वर्ष यह शिवलिंग भी तिल के आकार में बढ़ता है | जिसका रहश्य आज भी वैज्ञानिक नहीं सुलझा पाए हैं |
जटाशंकर धाम : छतरपुर जिले के बिजावर विकाश खंड में स्थित जटाशंकर धाम भी बुंदेलखंड के सिद्ध क्षेत्रों में से एक माना जाता है | ऊँची पहाड़ी पर प्रकृति की गोद में स्थित इस शिव लिंग के बारे में कहा जाता है कि यहाँ ये शिवलिंग पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान स्थापित किया था | यहां भक्तों का तांता लगा रहता है | यहां बुंदेलखंड ही नहीं दूर दराज से भी लोग यहां दर्शन करने आते हैं | मंदिर की पहाड़ी पर मिले भित्ति चित्र इसकी प्राचीनता को सिद्ध करते हैं |
शल्लेश्वर शिव मंदिर बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के सरीला कस्बे में शल्लेश्वर शिव मंदिर भी हजारों साल पुराना है| जहां शिव लिंग हर साल चावल के बराबर बढ़ता है। इस शिवालय के अतीत में भी महाभारत काल का इतिहास छिपा है। गुप्तकालीन शिव मंदिर बुंदेलखंड में प्रसिद्ध है।
बुंदेलखंड के जालौन जिले के माधवगढ़ तहसील के अंतर्गत सरावन गांव का 1400 साल पुराना भूरेश्वर महादेव मंदिर का शिवलिंग हर साल चावल के दाने के बराबर बढता है | श्वेतवर्ण शिवलिंग होने के कारण इन्हें भूरेश्वर महादेव मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि तत्कालीन राजा श्रवन देव जब एक बार हस्तिनापुर गए , वहां उन्हें भगवान शिव ने स्वप्न में आकर शिवलिंग स्थापित करने को कहा। हस्तिनापुर से लौटते हुए वहां से राजा एक छोटे आकार का शिवलिंग भी लेकर आए थे, और गांव के पास ही एक जगह रख दिया।राजा मूर्ति को किसी अन्य स्थान पर स्थापित करना चाहते थे लेकिन अनेक प्रयासों के बावजूद भी राजा तथा अन्य लोग इस शिवलिंग को भूमि से अलग नहीं कर पाए और आखिरकार राजा को शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित कराना पड़ा। बाद में इसी जगह मंदिर बनवाया गया ।
महोबा में भगवान शिव तांडव प्रतिमा बुंदेलखंड के महोबा में भगवान की शिव तांडव प्रतिमा स्थापित है। चंदेल शासक नान्नुक ने 11वीं सदी में इसका निर्माण कराया गया था। गोरखगिरि में ग्रेनाइट शिला पर भगवान भोलेनाथ की तांडव नृत्य करती 10 भुजी गंजातक (गजानन) प्रतिमा के दर्शन को महाशिवरात्रि पर हजारों भक्त पहुंचते हैं। मान्यता है कि गजासुर के वध के बाद शिव जी ने जो नृत्य किया था, वही शिव तांडव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इतिहासकार मानते हैं की शिवजी की यह प्रतिमा एक चट्टान पर उकेरी गई है। इसका वर्णन कर्म पुराण में भी मिलता है। इस तरह की गजांतक प्रतिमाएं महाराष्ट्र में एलोरा की गुफा में भी हैं।
दरअसल बुंदेलखंड में शिव साधना की परम्परा अतीत से चली आ रही है शिवालय आपको हर गाँव और कस्बे में मिल जाएंगे | हमने तो कुछ मुख्य शिव मंदिरों की चर्चा की है | अब पन्ना जिले के सलेहा के निकट नचना गाँव में गुप्त कालीन शिव मंदिर है | यहाँ गर्भ गृह में चतुर्मुखी शिवलिंग स्थापित है | माना जाता है कि पांचवी शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था |
झाँसी जिले की मऊरानीपुर तहसील से लगभग आठ किलोमीटर दूर रौनी गांव में एक पहाड़ी पर बना केदारेश्वर मंदिर , शिवलिंग नंदी की पीठ पर स्थापित है | चंदेल काल में दसवीं शताब्दी में यह मंदिर बना था |
झांसी में तो शिव मंदिरों की पूरी एक श्रृंखला है । झांसी के ऐतिहासिक किले में शिव मंदिर की स्थापना झांसी के प्रथम मराठा शासक सूबेदार नारो शंकर ने करवाया था। इससे लगे क्षेत्र को शंकर गढ़ कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में काले पाषाण का भव्य शिवलिंग हैं। इसके मुख्य गुंबद के चारों कोनों पर एक-एक लघु मंदिर है।
झाँसी के पानी वाली धर्मशाला के हजारिया महादेव मंदिर ऐश्वर्य और सुख संपदा की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। गर्भगृह में स्थापित मुख्य विशाल प्रतिमा में सहस्त्र लघु लिंग बने हैं। धार्मिक मान्यता है कि गर्भगृह में प्रतिमा के समक्ष शिव रुद्र कोटि संहिता का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मंदिर निर्माण को लेकर कहा जाता है कि यह गोसाइयों द्वारा बनवाया गया था।
झाँसी के सैंयर गेट पर भगवान शिव की चतुर्मुखी प्रतिमा स्थापित है | झाँसी के सदर बाजार के प्राचीन महेश्वर महादेव शिव मंदिर से हर साल शिवरात्रि पर भव्य बारात श्रद्धालुओं द्वारा निकाली जाती है।झाँसी के ही मानिक चौक के मठ में पंचमुखी महादेव का मंदिर है। इस शिवालय को बेहद प्राचीन माना जाता है। मठ के पंचमुखी महादेव मंदिर प्रकृति के पंच तत्व जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश को निरूपित करते हैं। झांसी के ग्वालियर रोड सिद्धेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण पुष्य नक्षत्र में हुआ था। झांसी के प्रथम सांसद रघुनाथ विनायक धुलेकर ने मंदिर में श्री यंत्र को स्थापित किया था। मान्यता है कि मंदिर में पुष्य नक्षत्र में पूजा आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। झांसी में एक नहीं कई प्राचीन शिवालय हैं, जिनमें झरना गेट स्थित सिंधिया का मंदिर, महाराष्ट्रीयन समाज का गणेश मंदिर से लगा सरदार मुले का शिव मंदिर, बड़ागांव गेट स्थित भगवान भूतनाथ का मंदिर, बाहर बड़ागांव गेट बाहर स्थित सुगंधपुरी के बाग में राजा बाबा महाकालेश्वर मंदिर, छनियापुरा में समाधि मंदिर, शहर कालीबाड़ी स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर हैं।
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे बसे जलालपुर में एक या दो नहीं, बल्कि 108 शिव मंदिर हैं। इसलिए इस क्षेत्र को ‘बुंदेलखंड का काशी‘ कहा जाता है। यहां के घाट काशी के घाटों जैसे ही हैं।
खजुराहो और छतरपुर जिले के खजुराहो में मतंगेश्वर शिव मंदिर के अलावा कई शिव मंदिर हैं यहाँ का विश्वनाथ का मंदिर १००२- १००३ ई में निर्मित हुआ था | गर्भगृह के केंद्र में नंदी पर आरोहित शिव प्रतिमा स्थापित की गयी है। यहां का दुलादेव का मंदिर भी मूलतः शिव मंदिर है। १००० ई. में निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग वेदिका पर स्थापित किया गया है।
छतरपुर से 22 किलोमीटर दूर बरट गांव का बटेश्वर शिव मंदिर 12 शताब्दी में चंदेल राजाओं ने बनवाया था | मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है | इस मंदिर में महिलायें पूजा नहीं कर सकती | इसके पीछे ग्रामीणों की मान्यता है कि कई साल पहले गांव की कुछ महिलाएं मंदिर के अंदर पूजा करने के लिए गई थी मंदिर के अंदर जाते ही महिलाओं का मानसिक संतुलन बिगड़ गया था तब से लेकर आज तक कोई भी महिला मंदिर में पूजा करने के लिए नहीं जाती है।