प्रदेश
सोने का कौव्वा
*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मन्दसौर २२ फरवरी ;अभी तक; एक राज्य था, उस राज्य के वंशज, मृत्यु के बाद “स्वर्ण हंस” का रूप धारण कर लेते थे और राजधानी के राजकीय तालाब में निवास करते थे, तथा जो भी राजा, राजगद्दी पर होता था, उसको प्रत्येक हंस, प्रतिमाह एक सोने का पंख प्रदान करता था, ताकि जनता के कल्याण के लिए राजकोष में भरपूर सोना बना रहे और बदले में राजा उनके भोजन इत्यादि की व्यवस्था करता था।
एक बार राजमहल में एक सोने का बहुत बड़ा कौवा उड़ कर आया और राजा से प्रार्थना करने लगा कि- मैं आपके राजकीय तालाब में, स्वर्ण हंसों के साथ रहना चाहता हूं और बदले में मैं आपको प्रतिदिन एक सोने का पंख प्रदान करूंगा और मेरा पंख तो आपके उन हंसों के पंखो की तुलना में कई गुना बड़ा है।
राजा, लाभ- हानि के गणित में पड़कर, कौवे को राजकीय तालाब के निकट ले गया और अपने वंश के सभी हंसों को संबोधित करते हुए उसने कहा- कि “आज से यह कौवा भी आपके साथ रहेगा, किंतु इस निर्णय का सभी हंसों ने जमकर विरोध किया और राजा से कहा कि- यह विजातीय है तथा हंस और कौवो का साथ कभी नहीं फलता है। इसलिए कृपया! इस कौवे को हमारे साथ मत रखिए, भले ही यह हमसे अधिक सोना आपको प्रदान करेगा किंतु इसकी उपस्थिति हमारे राज्य के लिए अच्छी नहीं है, किंतु राजा के सिर पर लाभ का गणित सवार था। उसने तलवार निकाल कर धमकाते हुए कहा कि हे हंसों! भले ही तुम सब हमारे पूर्वज हो, किंतु इस कौवे की उपस्थिति को तुमने स्वीकार नहीं किया तो, मैं तुम सब का वध कर दूंगा। यह सुनकर एक-एक करके सभी हंस, मौका देखकर उस तालाब को छोड़कर उड़ते चले गये।
अंत में उस तालाब में वह सोने का कौवा ही रह गया। एक दिन राजा, राजकीय तालाब पर गया उसने देखा कि सभी हंस गायब हैं, केवल कौवा ही अकेला बैठा हुआ है, किंतु यह क्या! कौव्वा भी हाथ जोड़कर राजा के समक्ष आया और उसने निवेदन किया कि महाराज! आपके राज्य में हंसों की कदर नहीं है तो कौवों की क्या बिसात? इसलिए मैं भी यह राज्य छोड़कर जा रहा हूं।
अचानक से आकाशवाणी हुई और उसने, राजा को संबोधित करते हुए कहा- कि, राजा! जिस राज्य में योग्यता और प्रतिभा की कद्र नहीं होती और जहां लाभ- हानि और सत्ता के चक्र में फंसकर गलत और भ्रष्ट लोगों को सम्मान को दिया जाता हो तथा सिद्धांतों से समझौते किए जाते हों, वहां सुख- शांति, प्रगति, लक्ष्मी और सत्ता लंबे समय तक नहीं रह सकती।
अतः दूसरे दल के लोगों को निमंत्रण मत दो वरना पछताओगे।