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सांसारिक मोह छोड़ों, आत्मसुख की कामना करो- योग रूचि विजयजी

महावीर अग्रवाल 
मन्दसौर २७ अगस्त ;अभी तक ;   ज्ञानीजनों का मत है कि संसार में सुख नहीं है जो हम सुख अनुभव करते है वह क्षणिक हैं संसार में प्राणियों का जीवन दुखों से भरा है। दुखों का यह सफर जन्म से लेकर मृत्यु तक चलता है। पति-पत्नी, बच्चे, माता-पिता का मोह हमें क्षणिक सुख देता है लेकिन यह स्थायी नहीं है जीवन में केवल आत्मसुख की कामना करो।
                                      उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने कहे। आपने मंगलवार को नईआबादी आराधना भवन मंदिर हाल में आयोजित धर्मसभा में कहा कि मानव जीवन में कभी भी तृप्ति अर्थात संतुष्टि नहीं है। मानव की एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी इच्छा जागृत हो जाती है। मनुष्य की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है। जिस व्यक्ति के पास बहुत ज्यादा धन सम्पत्ति है वह भी भिखारी की भांति धन कमाने के लिये दिन रात दौड़ता रहता है। देश के बड़े-बड़े उद्योगपति एक दृष्टि से देखा जाय तो सबसे बड़े भिखारी है। उनके जीवन में संतुष्टि नहीं है और वे धन कमाने के लिये दौड़ रहे है जो भी अतृप्त व्यक्ति है वह भिखारी के समा है। जब तक जीवन में आत्म संतोष नहीं होगा धन की लालसा में भटकते रहोगे।
                                 जीवन में आत्मसंतोष का होना जरूरी- संतश्री ने कहा कि व्यक्ति वही सुख का अनुभव  कर सकता है जिसके जीवन में आत्मसंतोष है। बड़े से बड़ा धनवान व्यक्ति जिसके जीवन में आत्मसंतोष नहीं है वह सुखी व्यक्ति की श्रेणी में नहीं आ येगा। इसलिये जीवन में धन को नहीं आत्मसंतोष को महत्व दो।
                                   धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजनउपस्थित थे। प्रभावना महेन्द्र कुमार मनीष कुमार सोनी महिदपुरवाला की ओर से वितरित की गई।

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