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रात्रि भोजन, जमीकंद का त्याग, प्रतिदिन प्रभु पूजा व नवकार के जाप करने वाला ही जैन कहलाने योग्य – योगरूचि विजयजी

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ३ सितम्बर ;अभी तक ;   पर्युषण महापर्व के अंतर्गत कल मंगलवार से नईआबादी स्थित आराधना भवन में कल्पसूत्र का वाचन प्रारंभ हो गया है। जैन संत पन्यास प्रवर योग रूचि विजयजी म.सा. की पावन प्रेरणा व निश्रा में कल से कल्पसूत्र की वाचना प्रारंभ हुई।
                                      संतश्री ने इस अवसर पर कल्पसूत्र में बताये गये वंदन व्यवहार, परिगृह परिगृह, मास कल्प, गुरू आज्ञा, प्रतिक्रमण का महत्व, ज्ञानपूजा महत्व आदि के बारे में विस्तार से श्रावक श्राविकाओं को बताया।आपने धर्मसभा में पयुर्षण पर्व के चौथे दिवस कहा कि जैन संत व साध्वी को जहां कम से कम 4 गुण हो वही चातुर्मास अर्थात वर्षावास करना चाहिये। मंदिर, उपाश्रय पास हो, निर्दोष भूमि उपलब्ध हो तथा गौचरी (आहार) सुलभ हो वहीं चातुमार्स करना चाहिये। आपने कहा कि प्रत्येक श्रावक श्राविका को प्रभु महावीर के पांचों कल्याणक चंवर, जन्म दिक्षा, केवल ज्ञान व निर्वाण कल्याणक की तिथि ज्ञात होना चाहिये क्योंकि प्रभु महावीर ने ही हमें ज्ञान, दर्शन, चरित्र की प्रेरणा दी है।
                                   आपने कहा कि प्रत्येक जैन धर्मावलम्बी को चौमासी प्रतिक्रमण संवत्वरी प्रतिक्रमण तो अनिवार्य रूप से कर अपने पापकर्म की आलोचना करना ही चाहिये। योगरूचि विजयजी ने वृत्त नियम प्रत्याखान का महत्व बताते हुए कहा कि जैन धर्म मे साधु के पांच तथा श्रावक श्राविका के 12 वृत्त बताये गये है। जो श्रावक श्राविका 12 वृत्त (नियमों ) का पालन करते है वे 12 वृत्तधारी श्रावक श्राविका कहलाते है। आपने धर्मसभा में कहा कि प्रत्येक जैन धर्मावलम्बियों को जमीकंद (आलू प्याज) का आहार नहीं करना चाहिये। जमीकंद तामसिक प्रवृत्ति को बड़ाते है। श्रावक श्राविकाओं को रात्रि. भोजन त्याग व जमीकंद के त्याग के प्रत्याखान लेने ही चाहिये तथा प्रभुजी की प्रतिमा की पूजा व 108 बार नवकार का जाप प्रतिदिन करना चाहिये जो ऐसा करते है वे ही सच्चे जैन कहलाने के योग्य है। धर्मसभा का संचालन दिलीप रांका ने किया।

 


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