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पापकर्म होने पर प्रायश्चित करे- श्री योगरूचि विजयजी म.सा.

महावीर अग्रवाल 
मंदसौर २० सितम्बर ;अभी तक ;   मनुष्य से जाने अनजाने में पापकर्म हो जाते है। पापकर्म होने के बाद मनुष्य को पापकर्म के कारण कर्म बंध हुए है उसके निराकरण के लिये प्रायश्चित करना ही चाहिये तथा आत्म आलोचना के भाव से पुनः उसी प्रकार का पापकर्म नहीं हो ऐसा प्रयास करना चाहिये।
                                 उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने नईआबादी स्थित आराधना भवन मंदिर के हाल में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने शुक्रवार को यहां धर्मसभा में कहा कि जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। जाने अनजाने में पापकर्म होने पर उसका प्रायश्चित यदि हम कर लेते है तो पापकर्म का प्रभाव या तो कम हो जाता है या समाप्त हो जाता है लेकिन प्रायश्चित के भाव शुद्ध होने चाहिये। मन, वचन व काया तीनों से हमें प्रायश्चित की भावना रखनी चाहिये। यदि आप किसी दूसरे जीव को तकलीफ देेंगे, हंसते हुय यदि आप पापकर्म बाधोगे तो उनको फल रोते हुए भुगताना पड़ेगा। इसलिये बुरे कर्म मत करो।
                                इन्होंने लिया आगम वाचना का धर्मलाभ- शुक्रवार को संतश्री के द्वारा प्रश्न व्याकरण सहित तीन शास्त्रों का आगम वाचना अर्थात इन तीनों शास्त्रों का परिचय एवं महत्व पर व्याख्यान दिया गया। इन तीनों शास्त्रों की आगम वाचना का धर्मलाभ रिखब रांका परिवार, दिनेश कचोलिया परिवार, पारसमल धींग परिवार ने लिया। आगम वाचना के पूर्व इन तीनों परिवारों के द्वारा आगमों की वासक्षेप पूजा की गई। धर्मसभा में संत श्री ने तीनों शास्त्रों की संक्षिप्त जानकारी दी। धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। संचालन दिलीप रांका ने किया।

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