सफेद शेर की वंश वृद्धि हेतु दुबरी टाईगर रिजर्व में नैसर्गिक परिस्थितियां हैं
( विजय सिंह )
यह सर्वविदित है कि विश्व के चिड़ियाघरों की शोभा बढ़ा रहे सफेद शेर, मोहन के वंशज हैं और मोहन का जन्म सीधी जिले के वस्तुआ वन परिक्षेत्र के बड़गड़ी जंगल में हुआ था। यह क्षेत्र संजय राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत दुबरी टाईगर रिजर्व में आता है। शासन द्वारा सफेद शेरों की वंश वृद्धि हेतु आज भी वह नैसर्गिक परिस्थितियां मौजूद हैं जो 1951 में मोहन को पकड़े जाने के समय थीं।
रॉयल बंगाल टाईगर की दुर्लभ प्रजाति सफेद शेर शावक को बीसवीं शदी के छठें दशक में 27 मई 1951 को पकड़ा गया था। रीवां रियासत के तत्कालीन महाराजा स्व. मार्तण्ड सिंह ने बाघ के शिकार हेतु बड़गड़ी के जंगल में हांका करवाया। एक मादा बाघ शिकार में मारी गई। हांका समाप्त होने के बाद हकियों ने महाराजा को बताया कि बाघिन के तीन शावक थे, जिनमें से एक धौरा (धवल/सफेद) था। महाराजा ने शिकारगाह अफसर स्व. सुरेन्द्र सिंह (भरतपुर) व स्व. अरिमर्दन सिंह (ताला) को मृत बाघिन के शावकों को जीवित पकड़ने का निर्देश दिया। मां की मौत के बाद जंगल में छिपे शावकों को गोविन्दगढ़ के शिकारी गुल्लू बहेलिया, रामदुलारे बहेलिया, कल्लू बहेलिया, बाबूलाल बहेलिया ने कई दिनों की मशक्कत के बाद पकड़ लिया।
सफेद शावक गोविन्दगढ़ लाया गया। महाराजा ने उसे मोहन नाम दिया। 4 वर्षों के उपरांत 1955 में सामान्य बाघिन बेगम से मोहन के संसर्ग से एक भी शावक सफेद नहीं था। इन्हीं में से एक राधा के जवान होने पर मोहन के संसर्ग के बाद 1 नर व 3 मादा शावकों का जन्म हुआ। यह सभी सफेद थे। महाराजा ने नर का नाम राजा, व मादा शावकों का नाम क्रमशः रानी, मोहनी व सुकेशी रखा। आज विश्व में सफेद शेरों की दुर्लभ प्रजाति चिड़ियाघरों में कैद है, वह मोहन के वंशज हैं। जंगल के राजा को एक महाराजा ने मनोयोग और सहृदयता पूर्वक पाल कर विश्व के समक्ष एक नजीर पेश की थी। वरना सफेद शावक एक आम शिकारी की क्रूरता का शिकार होकर ड्राइंगरुम में टंगा होता।
गोविंदगढ़ के समीप सतना जिले के मुकुन्दपुर में तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक राजेन्द्र शुक्ला (वर्तमान में मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री) ने स्व. महाराजा मार्तण्ड सिंह की स्मृति में व्हाइट टाईगर सफारी को विकसित कराया है। अब यहां वैज्ञानिक तरीके ( जिनेटिक इंजीनियरिंग) से सफेद शेर के प्रजनन केन्द्र बनाये जाने की योजना है।
प्रजनन केन्द्र बनाये जाने तथा सफेद शेर को पुनः उन्मुक्त रूप से वन्य जीवन देने के लिये दुबरी टाईगर रिजर्व में माकूल पर्यावरणीय परिस्थितियां वैसी ही हैं जैसी 1951 में थीं, जब शावक मोहन को पकड़ गया था। संजय राष्ट्रीय उद्यान के कुल क्षेत्र 831 वर्ग कि.मी. में से दुबरी का क्षेत्रफल 364 वर्ग कि.मी. है। यहां पानी के लिये प्राकृतिक झरने, नदी-नाले, बारहों महीने हरे-भरे रहने वाले घास के मैदान और आहार के लिये हिरण की सभी प्रजातियां, चीतल, सांभर, नीलगाय, सुअर की बहुतायत है। प्रजनन केन्द्र खोले जाने पर आनुवांशिक विशेषज्ञों के अलावा अन्य वन अमले व संसाधन का अतिरिक्त भार नहीं आयेगा।
यह सफेद शेरों के प्रपितामह मोहन के प्रति नैसर्गिक न्याय होगा कि जहां से उसे पकड़ कर चिड़ियाघरों तक सीमित कर दिया गया था, वहीं उसके वंशजों को प्राकृतिक रूप से विचरण नसीब हो रहा है। समूचे विश्व के बाघ प्रेमियों में भी यह संदेश जायेगा कि आखिर दुर्लभ प्रजाति सफेद शेर को पुनः वहीं जन्म लेने, पलने-बढ़ने का अवसर दिया जा रहा है, जहां उसका जन्म हुआ था। दुबरी में सफेद बाघ के पुनर्स्थापन से समूचे विंध्य क्षेत्र में वन्य पर्यटन को लोकप्रियता के साथ ही लोगों को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे। ( लेखक विजय सिंह, राज्य स्तरीय अधिमान्य स्वतंत्र पत्रकार हैं )