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    उपज का उचित भाव नहीं मिलने घोड़ारोज के आतंक व प्रकृति की मार से त्रस्त है किसान- पूर्व सैनिक मुकेश पालड़ी

    महावीर अग्रवाल

    मन्दसौर १६ फरवरी ;अभी तक ;   वर्तमान में किसानो की हालत दिन-ब-दिन बद से बदतर होती जा रही है। किसान को कभी उत्पादन का उचित भाव नहीं मिलता, कभी घोड़ारोज के आतंक से त्रस्त है तो कभी किसान को प्रकृति के कहर का सामना करना पड़ता है। कृषि प्रधान देश भारत में अन्नदाता किसान की किसानों कि हालत आज बहुत नाजुक स्थिति में है।
    उक्त बात पूर्व सैनिक व किसान मुकेश गुर्जर (पालड़ी) ने किसानों की स्थिति पर चिंता जताते हुए कही है। श्री गुर्जर ने कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में देखे तो किसानों के किसी भी उपज का उचित भाव नहीं मिल पा रहा है
                                        मैथी,सरसों,अलसी,तिलहन,दलहन या देखें अन्य उपज सभी के मंडी भाव में भारी मंदी देखने को मिल रही है। कुछ समय से एक आस जगी थी लहसुन के भाव पर लेकिन अब तो वह उम्मीद भी फीकी पड़ती नजर आ रही। लहसुन के भाव 7 हजार के भीतर सीमट गई। महंगे महंगे बिजरोपण खाद,खरपतवार सिंचाई मेहनत मजदूरी सभी लगाया इस उम्मीद से कि अच्छा भाव मिलेगा लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था लहसुन मंडी तक पहुंचते पहुंचते धड़ाम से औंधे मुंह गिरी ऊटी लहसुन के मंडी भाव को देखे तो लागत मूल्य मिलना भी मुश्किल हो गया।
    श्री गुर्जर ने बताया कि विगत 3 वर्षों से सोयाबीन के भाव कि स्थिति भी कुछ खास ठीक नहीं है वह भी 4 हजार के भीतर ही विक्रय हो रही है। मध्य प्रदेश में सोया उत्पादन शीर्ष स्थान पर है यहां तक की मध्य प्रदेश को सोया स्टेट का दर्जा प्राप्त है लेकिन सिर्फ सोया स्टेट का दर्जा ही प्राप्त है किसानों को उचित भाव प्राप्त नहीं हो पा रहा है।
                                       प्रकृति भी कई बार किसानों के मस्तक पर चिंता कि लकीर खींच देती है कभी अत्यधिक वर्षा तो कभी अल्प वर्षा कभी अत्यधिक ठंड पाला बेबस कर देती है किसानों को इन सभी से लड़ते हुवे किसान आगे बढ़ता है तो एक और जटिल समस्या सामने खड़ी मिलती है अंकुरित फसल से लेकर पक्की पकाई फसल तक को अपने पैरों तले रौंद देता है घोड़ारोज़ (नील गाय) फसल को खाता कम और लौट ज्यादा मारता है ऐसे नुकसान करता है जैसे वर्षों पुरानी दुश्मनी हो  किसानों से घोड़ारोज के आतंक से रोड दुर्घटना भी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। तथाकथित क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को एक साझा प्रयास करके घोड़ारोज (नील गाय) कि समस्या से निजात एवं किसानों को अपनी उत्पादन का उचित दाम मिले ऐसा एक साझा प्रयास कि आवश्यकता है।
                                         श्री गुर्जर ने कहा कि परिश्रम की पराकाष्ठा को पार कर किसान कड़ाके की ठंडक में सींचते हैं अपनी फसल को अपना व अपने बच्चों परिवार का पेट काटकर एक एक रुपया बचाकर खाद,बीज,दवाई छिड़काव खरपतवार मजदूरी में लगाता है किसान इस उम्मीद में कि सब कुछ अच्छा होगा क्या खोया क्या पाया बस सिर्फ खोया ही खोया है बड़ी उम्मीद के साथ किसान फसल का उत्पादन करता है इस उम्मीद के साथ की इस फसल से मेरे परिवार का पेट पलेगा मेरे बच्चों की पढ़ाई होगी मेरे बच्चों की शादियां होगी नया घर होगा लेकिन सारी उम्मीद धरी कि धरी  रह जाती है सारे सपने टूट से जाते है। श्री गुर्जर ने कहा कि विशेषकर इस विषय पर ध्यानाकर्षण कर चिंतन और समाधान कि आवश्यकता है।

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