-रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर ७ अप्रैल ;अभी तक ; भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह एवं सुखदेव तथा बटुकेश्वर दत्त की टीम में एक जबरदस्त क्रांतिकारी महिला सहयोगी के रूप में थी, जिसका नाम था श्रीमती दुर्गा भाभी।
इसी दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी बनकर अंग्रेजों को चकमा देने में सफलता हासिल की। जब पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की हत्या हो गई तो 10 दिसंबर 1928 को लाहौर में क्रांतिकारियों की एक बैठक बुलाई गई थी जिसकी अध्यक्षता दुर्गा भाभी ने की थी, जो महान क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की पत्नी थी। इस बैठक में तय किया गया कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया जाएगा। दुर्गा देवी ने सबसे पूछा कि- आप में से कौन सांडर्स की हत्या का बीड़ा उठा सकता है?भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और चंद्रशेखर ने अपने हाथ उठा लिए।
17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने शाम 4:00 बजे अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को जान से मार कर पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया। उसके बाद दुर्गा भाभी से जब पूछा गया कि आप लाहौर से बाहर जा सकती हैं? उस समय दुर्गा भाभी लाहौर के एक स्कूल में हिंदी की अध्यापिका थी, दुर्गा भाभी ने तुरंत हां करते हुए कहा कि मैं स्कूल से छुट्टी ले लूंगी।
20 दिसंबर को भगत सिंह एक अफसर की वेशभूषा में तांगे में सवार हुए और उन्होंने एक लॉन्ग कोट पहन रखा था उनके साथ एक कीमती साड़ी और ऊंची हील की चप्पल पहने दुर्गा भाभी भी उनकी पत्नी के रूप में यात्रा कर रही थी। भगत सिंह की गोद में दुर्गा भाभी का 3 साल का बेटा था भगत सिंह और राजगुरु दोनों के पास लोडेड रिवाल्वर थी। लाहौर रेलवे स्टेशन पर करीब 500 अंग्रेज पुलिस वाले भगत सिंह को गिरफ्तार करने के लिए तैनात खड़े थे।
भगत सिंह और दुर्गा भाभी एवं उनका 3 साल का बच्चा इतनी सारी पुलिस के बीच में ट्रेन में सवार हो गए तथा कानपुर पहुंचने के बाद तीनों ने कोलकाता के लिए ट्रेन पकड़ी।
दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद में हुआ था, उनके पिता बांके बिहारी लाल भट्ट इलाहाबाद में जिला न्यायाधीश थे। सन 1918 में उनका विवाह मशहूर स्वतंत्रता सेनानी भगवती चरण बोहरा से हो गया तथा 3 दिसंबर 1925 को उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
दुर्गा भाभी उस जमाने में इतनी हिम्मत वाली महिला थी कि उन्होंने क्रांतिकारियों को हथियार सप्लाई करने की पूरी व्यवस्थाएं की अनेक क्रांतिकारी उनके घर पर भोजन करते थे, छुप जाते थे और सारी योजनाएं उनका उनके घर पर तैयार होती थी और दुर्गा भाभी सभी क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन करती थी।
9 अक्टूबर 1930 को दुर्गा भाभी ने गवर्नर हेली पर गोली चला दी थी जिसमें गवर्नर हेली तो बच गया लेकिन सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया था मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने गोली मारी थी जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज पुलिस इनके पीछे पड़ गई थी। लेकिन अनेक समय तक दुर्गा भाभी ने भूमिगत रहकर अंग्रेजों के विरुद्ध काम करती रही किंतु
1931 समाप्त होते-होते क्रांतिकारी आंदोलन अपना दम तोड़ने लगा था 23 मार्च 1931 को भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया जा चुका था इससे कुछ दिन पहले 27 फरवरी 1931 को चंद्रशेखर आजाद भी पुलिस मुठभेड़ में अपने प्राण न्योछावर कर चुके थे। उस समय दुर्गा भाभी ने तय किया कि वह आत्मसमर्पण करेगी।
12 सितंबर 1931 को दुर्गा भाभी का इस बारे में लाहौर के समाचार पत्रों में बयान प्रकाशित हुआ। दिन के 12:00 बजे पुलिस ने उनके निवास स्थान से उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए तीन लारी भरकर पुलिस आई थी तथा उन्हें जेल में खूंखार महिला अपराधियों के बीच में रखा गया किंतु पुलिस उनके विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई तो दिसंबर 1932 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया, किंतु 3 साल तक उन्हें लाहौर छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया।
1936 में दुर्गा भाभी लाहौर से गाजियाबाद आ गई और वहां प्यारेलाल गर्ल्स हाई स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगी सन 1940 में उन्होंने लखनऊ में मोंटेसरी स्कूल की स्थापना की बाद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसके भवन का उद्घाटन किया। अप्रैल 1983 में उन्होंने विद्यालय से अवकाश ले लिया, क्योंकि वह अस्वस्थ रहने लगी थी तथा 15 अक्टूबर 1999 को दुर्गा भाभी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
उस जमाने में जब महिलाएं घर से बाहर निकलने में भी संकोच करती थी उस समय दुर्गा भाभी जैसी क्रांतिकारी महिला ने खुलकर क्रांतिकारियों की मदद की उनको आर्थिक सहायता भी दी, उनको हथियार भी सप्लाई की है और समय-समय पर उनके भोजन इत्यादि की व्यवस्था भी की।
ऐसी वीरांगना, केंद्र सरकार के ध्यान में क्यों नहीं आ रही है? उन्हें मरणोपरांत राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिए।