*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर १५ मार्च ;अभी तक ; सनातन धर्म हाथी के समान विशाल है, जिस दिन राष्ट्र- विरोधी इसकी सूंड की पकड़ में आ गए उस दिन क्योंकि राजा भर्तृहरि ने अपने अपने ग्रंथ नीति- शतक में संस्कृत में लिखा है, जिसका हिंदी अर्थ यह है कि-
स्वर्ण की जंजीर बांधे* *श्वान फिर भी श्वान है।
धूल धूषित गजराज को करते सभी प्रणाम है।
धूल से भरे हुए हाथी को भी सभी गजराज कहकर प्रणाम करते हैं, जबकि कुत्ते सोने की जंजीर का पट्टा पहनने के बाद भी वह “कुत्ते ही कहलाते हैं यद्यपि कुछ कुत्ते स्वामी भक्त भी होते हैं किंतु कुछ हाथी की झूमती हुई मस्त चाल को सहन नहीं कर पाते तथा उसे देखकर ही भौंकते रहते हैं और वो भी हाथी के पीछे से।
श्वान अपने मालिक के पैरों को सूंघता है, दुम हिलता है तथा जमीन पर लेटकर अपना पेट दिखाता है तथा रोटी का एक टुकड़ा उछालते ही वह उसको जमीन पर गिरने के पहले ही मुंह में दबा देता है क्योंकि कुत्तों का कोई स्वाभिमान नहीं होता, जबकि हाथी के सामने महावत कुछ खाने को रखता है, भले ही उसे गन्ना बहुत प्रिय है, वह भी रख दिया जाए तो भी हाथी एकदम खाना शुरू नहीं करता, वह आधे घंटे तक हिलता- डुलता रहता है पर खाता नहीं है। महावत उसकी सूंड पर हाथ फेरता है, उसके पेट पर हाथ फेरता है, उसके पुट्ठे पर हाथ फेरता है, तब कहीं जाकर हाथी खाना शुरू करता है।
यह होता है हाथी का स्वाभिमान किंतु जो स्वाभिमान शून्य लोग होते हैं, वे सनातन धर्म के होकर भी स्वान की तरह अपने ही धर्म के विरुद्ध ही भौंकते रहते हैं।
मुर्गे, बकरे भी बेमौत मारे जाते हैं किंतु कोई इन्हे “कुत्ते की मौत मरा है” ऐसा नहीं कहते किंतु कोई व्यक्ति राष्ट्र, धर्म और समाज का विरोध करते-करते मरता है तो उसे कहा जाता है कि – वह कुत्ते की मौत मारा गया।
जिस दिन हाथी रूपी इस सनातन धर्म की सूंड में ये धर्म एवं संस्कृति के विरोधी लोग पकड़ में आ गए उस दिन इनका क्या हश्र होगा? यह खुद ही नहीं जानते। यह लोग कुत्ते की मौत से भी ज्यादा खतरनाक मौत मर सकते हैं।
इसलिए सनातन धर्म को इन पर दृष्टि बनाएँ रखना चाहिए और इन पर अपनी पकड़ भी मजबूत बनाए रखना है। अन्यथा यह भौंक भौंक कर समाज का वातावरण दूषित कर देंगे।