(डॉ. चंदा कोठारी, मंदसौर)
मंदसौर ८ अप्रैल ;अभी तक ; जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने जैन धर्मावलंबियों के साथ मानव मात्र को जीओ और जीने दो का संदेश दिया। हम स्वयं प्रसन्नता व शांति के साथ अपना जीवन जीएं व प्रत्येक जीव मात्र को भी अपना जीवन जीने दें। किसी के जीवन में बाधाएं खड़ी ना करें। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर को उनके जीवनकाल में हुई विभिन्न घटनाओं के कारण पाँच नामों से प्रचारित किया गया-वीर, अतिवीर, सन्मति, वर्धमान और महावीर । महावीर स्वामी ने पूरे विश्व को अहिंसा और करुणा की राह पर चलने का सिद्धांत बताया। केवल किसी जीव को, गाय बैल को या मनुष्य आदि को जान से मार देना ही हिंसा नहीं है, .
वीर प्रभु ने हिंसा की सूक्ष्म परिभाषा को रेखांकित करते हुए बताया कि किसी प्राणी की जान लेना ही हिंसा नहीं है अपितु किसी जीव का दिल दुखाना भी हिंसा है। अपने भावों को विकारयुक्त करना भी हिंसा है। इसलिए अपने भावों को हमेशा शुद्ध व निर्मल रखें। भगवान महावीर की अहिंसा की शक्ति को अंगीकार करके ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हमारे देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया था। भगवान महावीर ने अपरिग्रह का सिद्धांत पूरी दुनिया के समक्ष रखा जिसे जानकर और समझकर कितने ही जीवों ने मोक्ष प्राप्त कर लिया। अपरिग्रह अर्थात अपने पास उतना ही सामान जेवर, रुपया, पैसा, मकान जमीन, वस्त्र आदि रखें जितनी आपके जीवन को सुलभता से चलाने के लिए आवश्यकता है। अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जमा करने की प्रवृत्ति को परिग्रह पाप के रूप में निरूपित किया है। भगवान वर्धमान ने कहा परिग्रह का परिमाण आवश्यक है, वर्ना आप पाप का संचय कर रहे हो। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह परिग्रह रूपी पाप कहलाता है।
भगवान महावीर स्वामी के पंचशील सिद्धांतों में से अहिंसा अपरिग्रह के बाद अचौर्य को निरूपित किया गया है अर्थात किसी दूसरे की रखी हुई, भूली हुई या गिरी हुई वस्तु को उठाकर अपने पास रख लेना चोरी कहलाता है। चोरी करने को बहुत बड़ा पाप मानते हुए भगवान महावीर स्वामी ने अचौर्य सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसके साथ ही कभी झूठ ना बोलकर हमेशा सत्य बोलने के सिद्धान्त को अस्तेय की श्रेणी में रखकर चौथे सिद्धान्त का हम सबको ज्ञान दिया। महावीर स्वामी ने पांचवां सिद्धान्त ब्रह्मचर्य का बताया जिसमें अपने पति या पत्नि को छोड़कर दुनिया की प्रत्येक स्त्री आपकी माता और बहन या पुत्री है और प्रत्येक पुरुष पिता, भाई या पुत्र के समान है। भगवान महावीर ने कर्म सिद्धान्त को भी आगे बढ़ाया। उनके उपदेशों में कहा गया जैसी करनी वैसी भरनी, अर्थात हमारे द्वारा दूसरों के प्रति किया गया व्यवहार लौटकर हमारे पास आता ही है। हमने यदि किसी को मारा पीटा दुर्व्यवहार किया तो कभी न कभी वही व्यवहार हमारे साथ भी होगा। अतः वाणी में मधुरता व व्यवहार में शालीनता की बात महावीर स्वामी द्वारा कही गई। महावीर ने सिखाया कि पेड़ पौधों में, घास में भी प्राण है अतः, बिना कारण फूल पत्तियां न तोड़े, अग्नि, जल, वायु और मिट्टी भी जीव तत्व है इसलिए बिना कारण इनमें पाए जाने वाले सूक्ष्म जीवों को हानि ना पहुंचाएं। रात्रि भोजन ना करें, पानी छानकर पीएं, मांसाहार ना करे, शराब व अन्य नशे का सेवन ना करे, शाकाहार भोजन ही ग्रहण करें। ऐसी अनेक बातें प्रभु महावीर ने सिखाई जिनका पालन करके हमारी आत्मा परमात्मा बन सकती है।