*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर १२ अप्रैल ;अभी तक ; भगवान श्रीराम जब इस लौकिक दुनिया को छोड़कर बैकुंठ जा रहे थे उसी समय हनुमान जी को उन्होंने चिरंजीवी होने का वरदान प्रदान किया था और कहा था- कि तुम अगले प्रलय काल तक अर्थात द्वापर युग एवं कलियुग में ईश्वर भक्तों के कल्याण के लिए इस पृथ्वी पर सदा जीवित रहोगे। तभी से हनुमान जी इस पृथ्वी पर राम-भक्तों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं तथा स्वयं भी श्रीराम की भक्ति में लीन रहते हैं।
द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण का अवतार हुआ और वह द्वारकाधीश बन गए तब नारद जी ने उन्हें याद दिलाया कि आपकी मुलाकात हनुमान जी से हुई कि नहीं तो श्रीकृष्ण ने कहा कि जब उचित समय आएगा तब उनको मेरे दर्शन होंगे।
हनुमान जी प्रति वर्ष राम जन्मोत्सव अर्थात रामनवमी के दिन अयोध्या जाकर श्री राम के निमित्त ब्राह्मणों एवं निर्धन व्यक्तियों को भोजन कराते थे। उन भोजन करने वालों की पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण और नारद जी भी सामान्य वेशभूषा में ब्राह्मण के रूप में बैठ गए।
जब हनुमान जी सभी को भोजन परोस रहे थे इस समय भगवान श्री कृष्ण की पगथली उन्हें दिखाई थी, जिस पर वही निशान थे जो त्रेता युग में भगवान श्री राम की पगथली पर हुआ करते थे। वह तुरंत समझ गए और एक टक प्रभु को निहारत रहे, उनकी आंखों से अश्रु की धार बहने लगी प्रेम से पागल, विहल होकर वह उन्हें भोजन परोसना ही भूल गए और भगवान भी अपने भक्तों के प्रति अत्यंत ही भाव विह्वल होकर उन्हें निखारते रहे तथा उसी समय हनुमान जी को भगवान श्री कृष्ण ने श्रीराम रूप में ही दर्शन दिए।
तब ही से ऐसा कहा जाता है कि “भंडारे में सभी स्त्री- पुरुष और अमीर- गरीब जातिगत भेद भुलाकर भोजन कराना चाहिए क्योंकि न जाने कौन से वेश में ईश्वर उस पंक्ति में बैठे हों ? इसी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए भंडारे किए जाते हैं।
इसलिए भंडारे करते समय किसी से भी असम्मजनक भाषा में बात नहीं करना चाहिए और ना ही किसी का तिरस्कार करना चाहिए, क्योंकि उस दिन किसी भी भक्त रूप में भगवान के दर्शन हो सकते हैं, यह मानकर ही सब के प्रति प्रेम का एवं सम्मान का व्यवहार करना चाहिए यह परंपरा है।