*रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मंदसौर ९ अप्रैल ;अभी तक ; वैशाख माह में संपूर्ण भारत में छोटे-बड़े यज्ञों का आयोजन होता है किंतु यज्ञ वेदी बैठने वाले व्यक्तियों को, यज्ञ संपन्न करने वाले अनेक पंडितों द्वारा उसके लाभ हानि और आचरण के संबंध में सामान्यतः नहीं बताया जाता है किंतु बताना चाहिए।
यज्ञ एक बड़ा कर्मकांड जो एक निश्चित विधि एवं सिद्धांतों द्वारा हृदय की शुद्धता के साथ संपन्न होता है। यह परमात्मा का अभिन्न ज्ञान प्राप्त करने एवं जीवन के सत्य से परिचित कराने वाला उपक्रम है। यह मन, कर्म, वचन को शुद्ध करने का एक विशाल उपक्रम है।
“यज्ञ” शब्द का अर्थ है, समर्पण, त्याग, शुभ कर्म ईश्वर की पूजा आराधना, श्रद्धापूर्वक करना तथा अपने दुर्गुणों का बलिदान करना।
उक्त श्रृंखला में यज्ञ वेदी पर बैठने वाले स्त्री पुरुषों को निम्नलिखित क्रिया, यज्ञ वेदी पर बैठने के एक सप्ताह पहले से ही अपने आचरणों का पालन करना चाहिए जो इस प्रकार है-
1-प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात स्वच्छ कपड़े पहनकर मंदिर में जाकर ईश्वर की आराधना करना।
2- असत्य अथवा मिथ्या भाषण नहीं करना।
3-मदिरापान एवं मांसाहार का त्याग करना तथा किसी की हिंसा नहीं करना।
4-पूर्णतः ब्रह्मचर्य का पालन करना अर्थात स्त्री- पुरुष दोनों को सहवास नहीं करना।
5- किसी की निंदा, चुगली , अपशब्द व्यवहार अर्थात किसी भी प्रकार की गाली नहीं बकना।
6- गृहस्थ जीवन में हो या अपने व्यापार- व्यवसाय में किसी भी प्रकार का धोखा देकर लाभ कमाने की कोशिश नहीं करना।
7-चोरी अथवा दूसरे के धन को हडपने का प्रयास नहीं करना।
यदि उपरोक्त आचरण यज्ञ वेदी पर बैठने वाले जोड़े अथवा व्यक्ति यदि नहीं करेगा तो यज्ञ पर बैठने को परिणाम, उचित फल प्रदान करने वाले नहीं होगे उल्टे आपके जीवन में विपरीत प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।
यज्ञ के आयोजन में प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी करने वाले व्यक्तियों को भी यथासंभव उक्त आचरण करने का प्रयास करना चाहिए। तभी जाकर “यज्ञ”, व्यक्ति के साथ-साथ उस परिधि में आने वाले गांव और शहरों मैं रहने वाले प्राणियों को सुख शांति प्रदान कर, प्राकृतिक आपदाओं एवं अन्य विपत्तियों से रक्षा करेंगे।