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    रिषियानंद कुटिया पर मनाया गंगा दशमी महोत्सव

    महावीर अग्रवाल 

    मन्दसौर ६ जून ;अभी तक ;    तेलिया टेंक स्थित श्री रिषियानंद आश्रम पर ब्रह्मलीन सद्गुरू स्वामी रिषियानंदजी महाराज की इष्टदेवी भगवती गंगा मैया का भगवान शंकर की जटा से धरती पर अवतरण ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी महोत्सव के रूप में ब्रह्मनिष्ठ परम पूज्य स्वामी आत्मस्वरूपानंदजी के सानिध्य में मनाया गया।
    प्रारंभ में विद्वान पंडित कन्हैयालाल पण्ड्या व पंडित नरेन्द्र कुमार पण्ड्या के द्वारा गंगा मंदिर में गंगाजी के श्रीविग्रह का पूजन अभिषेक, आरती की गई।
    स्वामी आत्मस्वरूपानंदजी ने कपिल मुनि के श्राप से श्रापित अपने पुरखों के उद्धार के लिये भागीरथ ने कठिन तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से भगवान शंकर की जटा में प्रवेश करने के बाद धरती पर जिस दिन ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अवतरण हुआ था। उस दिन को गंगा दशमी के रूप में तेलिया टेंक स्थित श्री रिषियानंद आश्रम पर परम्परा से मनाया जाता आ रहा है। गंगाजी सद्गुरूदेव रिषियानंदजी की इष्ट रही है और स्वयं गंगाजी ने एक किसान महिला का रूप धारण कर जंगल में अन्य सन्यासी महात्माओं के साथ भटकने पर सभी भूखे महात्माओं को भोजन कराया था।
    तेलिया टैंक स्थित रिषियानंद आश्रम एकमात्र गंगा मंदिर है। जिसका गंगा दशमी उत्सव खूब धूमधाम से मनाया जाता है। रतलाम, गोधरा, गुजरात, राजस्थान आदि कई स्थानों से भक्तगण श्रद्धा से इस उत्साह में सम्मिलित होते है।
    स्वामी आत्मस्वरूपानंदजी ने गंगाजी की महिमा पर प्रकाश डालते हुंए कहा कि गंगाजी कोई साधारण सरिता अथवा नदी नहीं है बल्कि हम सब महान सौभाग्यशाली है कि भगवान सृष्टि रचियता ब्रह्माजी के कमंडल से भगवान शंकर की जटा में समाने के बाद हिमालय गंगोत्री से आगे गौमुख से गंगा का धरती पर पर्दापण हुआ था। उसी गंगा भागीरथी के दर्शन हम करते है और गंगा दशहरा के रूप में मॉ गंगा का उत्सव मनाते है।
    स्वामीजी ने कहा कि गंगाजी का स्वर्ग से धरती पर अवतरण का इससे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण और क्या होगा कि गंगा जल पात्र में भरने के बाद जहां साधारण जल कई दिनों तक स्वच्छ नहीं रहते हुए दूषित हो जाता है वहीं गंगा जल महिनों ने नहीं सैकड़ों वर्ष बाद भी दूशित नहीं होता है और वैज्ञानिकों ने भी इसे माना है।
    स्वामीजी ने अपने आशीर्वचन में कहा मानव तन  प्राप्त करने का हमारा मुख्य उद्देश्य ब्रह्म अर्थात अपने आत्मस्वरूप में ज्ञान करना होना चाहिए कि हम शरीर नहीं स्वयं आत्म स्वरूप ब्रह्म है। हमें सोअहं, शिवोहं अर्थात मैं स्वयं इस शरीर से पृथक इन्द्रिया, मन, बुद्धि, प्राण नहीं होकर इन सबका ज्ञाता आत्मा हूॅ।
    सत्संग की महिमा का वर्णन करते हुए स्वामीजी ने कहा कि जीवन में जब तक सत्संग अर्थात सच्चे संत, सद्ग्रंथों का सानिध्य और पठन पाठन, स्वाध्याय नहीं होगा तब तक हमें अपनी आत्मा का बोध नहीं होगा कि वास्तव में हम कौन है।
    सत्संग कभी निरर्थक नहीं जाता, केवल सुनने मात्र से सौ गुना लाभ मिलता है, सुनने के बाद मनन करने से हजार गुना और मनन के बाद निधीघ्यासन अर्थात बारम्बार अपने स्वरूप का चिंतन करने से लाख गुना लाभ होता है।
    सबसे बड़ा पाप अज्ञान है और सबसे बड़ा पूण्य अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाना है।
    श्री ऋषियानंद सुंदरकांड संयोजक महेश गेहलोद, कैलाश टांडी, रामनारायण गंधर्व, शरद नागर, कमलेश गंधर्व, संतोश कुमार गंधर्व ने भजन संध्या में भाग लिया।
    उपस्थित रहे- पी.जी. जनभागीदारी अध्यक्ष नरेश चंदवानी, पार्षद आशीष गोड़, पतंजलि जिला संरक्षक योग गुरू बंशीलाल टांक, डॉ. रविन्द्र पाण्डेय, ऋषियानंद ट्रस्ट अध्यक्ष डॉ. रविन्द्र जोशी, सचिव ओमप्रकाश सोनी, कोषाध्यक्ष कन्हैयालाल सोनी, प्रहलाद सोनी, भेरूलाल जायसवाल, राजेश पोरवाल, कमलेश गोधरा, डॉ. दिनेशचन्द्र तिवारी, मदनलाल कसेरा रतलाम, व्यवस्थापक कन्हैयालाल गोठवाल आदि।
    संचालन डॉ. दिनेश तिवारी ने किया एवं आभार प्रहलाद सोनी ने माना।

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