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    वारासिवनी में तालाबों का रकबा अतिक्रमण के चलते घटा, तालाबों की भूमि पर रसूखदारों द्वारा कालोनी बनाई जा रही

    आनंद ताम्रकार

    बालाघाट 19 मार्च ;अभी तक ;  तालाबों के संरक्षण के उद्देश्य से उसके पूर्ण रकबे को सुरक्षित करने और तालाब की भूमि पर किये गये अतिक्रमण हटाने की इच्छा शक्ति के अभाव में जिले में स्थित तालाबों का रकबा अतिक्रमण के चलते घटता जा रहा है तालाबों की भूमि पर रसूखदारों का कब्जा है कालोनी बनाई जा रही है। इन विसंगतियों के चलते तालाबों के अस्तित्व पर संकट मडराह रहा है।

                                     ताजा मामला वारासिवनी के शंकर तालाब में किये गये अतिक्रमण का है जिसमें 50 से अधिक अतिक्रमणकारियों ने तालाब की भूमि पर नाजायज कब्जा कर पक्का निर्माण कर लिया है इस तालाब की भूमि से अतिक्रमण कटा कर तालाब की भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने के संबंध में तत्कालीन कलेक्टर श्री भरत यादव द्वारा पारित आदेश पर 8 साल बीत जाने के बाद भी अमल नहीं हो पाया।

                                        शंकर तालाब वारासिवनी नगर के मध्य स्थित है जो पटवारी हल्का नंबर 26/2 में खसरा 132/1 रकबा 9.241 हेक्टेयर लगभग 22 एकड़ क्षेत्र में फैला है तथा नगर पालिका परिषद वारासिवनी के स्वामित्व में है लेकिन अतिक्रमण के चलते मात्र 12 एकड़ में सिमट गया है।

                                       शंकर तालाब में किये गये अतिक्रमण हटाये जाने एवं पूर्ण रकबे में संरक्षित रखे जाने के संबंध में कलेक्टर बालाघाट को 5 जनवरी 2025 को जनसुनवाई में शिकायत की गई थी कलेक्टर के निर्देश पर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व वारासिवनी द्वारा तहसीलदार वारासिवनी तथा मुख्य नगर पालिका अधिकारी वारासिवनी को पत्र क्रमांक 2209 दिनांक 8/11/2024 तथा पुनः स्मरण पत्र क्रमांक 37 दिनांक 7/1/2025 को प्रेषित किया गया था लेकिन इन पत्रों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।

                                    अनुविभागीय अधिकारी राजस्व वारासिवनी द्वारा पूनः पत्र क्रमांक 382 दिनांक 24/02/2025 इस संबंध में पत्र प्रेषित किया गया लेकिन 1 माह बीत गया अतिक्रमण हटाने के संबंध में कोई कार्यवाही नहीं हुई।

    कलेक्टर के निर्देश एवं अनुविभागीय राजस्व के पत्रों की अवहेलना किया जाना प्रशासनिक इच्छाशक्ति के रवैये को उजागर कर रही है तथा शासन की जनसुनवाई जैसी जन हितैषी योजना तथा अधिकारियों के आदेशों का खुला मखौल उडाया जा रहा है। तालाब तभी बच सकेंगे जब सरकारी आदेशों का पूरी इच्छा शक्ति के साथ अमल किया जायेगा। दुर्भाग्य से ऐसी इच्छा शक्ति जिले में कहीं दिखाई नही देती।

    प्रदेशों में तालाबों के संरक्षण के लिये वेटलैंड समिति गठित की गई जिले में भी इस समिति का गठन किया गया है लेकिन समिति का कामकाज फाइलों तक ही सीमित है। जबकि कलेक्टर इस समिति के अध्यक्ष बनाये गये है।

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल सहित अन्य न्यायायिक संस्थाओं तथा पर्यावरण का संरक्षण करने वाली करने वाली पारित कई नियम अस्तित्व में है। सबसे अहम नियम यह है की तालाब की सीमा से 50 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण कार्य नहीं होगा इस बीच जिले के तालाबों में अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है। तालाब का कैचमेंट एरिया निर्माण कार्यों के कारण घटता सिमटता जा रहा है यह सरकारी तंत्र की नाकामी का ज्वलंत उदाहरण है।

    अवैध उत्खनन के चलते जिले में नदियां विलुप्त होने की कगार पहुंच गई है उसी तरह तालाबों का अस्तित्व भी समाप्त होने की दशा में पहुंच गया है इस दिशा में वेटलेंट कमेटी को सक्रिय कर तालाबों के संरक्षण हेतु पहल करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिये यदि इन तथ्यों पर गंभीरता से कड़े कदम नहीं उठाये गये तो आने वाले समय में नदी,तालाबों जैसे जल स्त्रोत विलुप्त हो जायेगे। इन्हें बचाना हमारी, शासन, प्रशासन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिये।

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