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    विकास की ऊँचाइयों को स्पर्श करती आज की नारी

    महिला दिवस पर विशेष
     ( डॉ. गुणमाला खिमेसरा सदस्य, राजभाषा सलाहकार समिति, भारत सरकार, गृहमंत्रालय, नई दिल्ली )
    विधाता के बाद इस सृष्टि की महान सर्जक नारी है। नारी विश्व का अर्द्ध भाग है।
    यूँ तो नारी की कथा नई नहीं है। धर्म, दर्शन, समाज सभी में नारी विद्यमान है। युग के अनुसार भले ही उसका रूप बदला होगा पर भूमिका नहीं बदली। जिस तरह गंगा नदी की धारा अपना रास्ता खुद बनाती हुई आगे बढ़कर अपनी मंजिल तय करती है उसी प्रकार नारी को भी न जाने कितनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है। कभी सती बनकर आत्म-सम्मान की रक्षा की है तो कभी सीता बनकर अग्नि-परिक्षा देनी पड़ी है। कभी द्रौपदी बनकर पुरूषों के हाथ बिकी है तो कभी पन्ना धाय बनकर मातृत्व का सौदा करना पड़ा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि उसने जितने भी रूप धारण किये हैं विजय हमेशा उसी की हुई है। क्योंकि संसार में शक्ति के बिना न तो किसी कार्य में सफलता मिल है और न ही किसी साधन में सिद्धि। लौकिक जगत की तो बात ही क्या देव शक्तियों में भी स्त्री शक्ति सर्वोपरि है। इसीलिए देवताओं का एक रूप अर्धनारीश्वर का भी है। पुरूष शिव है तो नारी शक्ति है, अर्द्धनारीश्वर की धारणा भारत में ही पनपी, सौन्दर्यलहरी के पहले ही श्लोक में लिखा है-
    शिवः शक्तया युक्तों यदि भवति शक्तिः प्रभुवितुं ।
    शिव जब पराशक्ति के साथ जुड़ते है तभी पूर्ण शक्ति शाली बन पाते हैं।
    भारतीय सभ्यता और संस्कृति के तीनों कालों के इतिहास में देश की छवि को निखारने में नारी का योगदान रहा है। उपनिषद ओर ऋग्वेद कालीन नारियों ने देश की उन्नति को चमकाने में शैक्षिक चिन्तन के द्वारा प्रयास किया। नारी को गृहस्वामिनी, अर्द्धगिनी या देवी कहा है। स्त्री और पुरूष गृहस्थी के दो पहिए माने जाते थे और इसलिए भगवान राम को सोने की सीता बनवाकर अनुष्ठान करवाना पडा था।
    अब तक अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष, नारी स्वतंत्रता वर्ष, बालिका वर्ष, नारी अधिकार वर्ष, नारी अस्तित्व वर्ष घोषित कर अवश्य ही हम महिलाओं के प्रति उदारवान बने हैं।
    इसी की प्रेरणा स्वरूप प्रतिवर्ष 8 मार्च महिला दिवस का आयोजन किया जाता है।
    आज 21वीं शती की देहरी पर पैर रखती स्त्री पूर्णतः स्वावलम्बी बन गई है। उसके आत्मविश्वास, धैर्य, साहस में वृद्धि हुआ है वह शक्ति, बुद्धि सामर्थ्य और कर्त्तव्य से पुरूष से कहीं आगे तो कहीं कंधे से कधां मिलाकर अर्थार्जन कर रही है। परिवार पाल रही है। सरकार शासन, मंत्रिमण्डल, प्रशासन, बैंक, सेना, विमान सेवा, कम्प्यूटर टेक्नालॉजी, व्यापार सभी क्षेत्रों में वह आगे बढ़ी है इतना ही नहीं भारतीय स्त्री विदेशों में भी राजनीति, व्यापार और तकनीकी क्षेत्र में ऊँचे ओहदों पर आसीन
    है। गांव की गलियों से लेकर संसद तक नारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। रसोई से राजभवन तक पूरी तत्परता से महिलाओं ने कमान संभाली है। नारियों में निर्भीकता और सामना करने की ताकत ‘एनकाउंटरनेस’ पैदा हुई है।
    महिलाओं ने अपने परिवेश की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कदम आगे बढ़ाये हैं। नारी अपनी निष्ठा, श्रम और शिव-संकल्प के बल पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ रही है, उसके मार्ग में पग-पग पर काँटे बिछे हैं, उसने तब भी हिम्मत नहीं हारी है।
    आज स्त्री कहाँ से कहाँ पहुँच गई है। परिवार की सुरक्षा से लेकर देश की सीमा सुरक्षा तक के क्षेत्रों में नारी का प्रवेश हो चुका है। हाल ही में भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी असाधारण क्षमता का परिचय दिया हैं उन्होंने बजट 2025-26 में पुरानी परम्पराओं से हट कर विकास को प्राथमिकता देने के साथ गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं को भी सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा है जिससे सकारात्मक बदलाव आयेगे। इस प्रकार राजनीति के क्षेत्र में भी ऊँचे से ऊँचे पद की अधिकारिणी बनकर देश की बागडोर संभालने में सफलता हासिल की है।
    हालांकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में स्त्रियों की संख्या कम है वैसे भी हमारे देश में समाज के बहुआयामी स्तर भेद हैं एक तरफ सूचना प्रोद्योगिकी में अग्रसर होते युवा वैज्ञानिक दूसरी तरफ गरीबी रेखा से भी निचले स्तर पर की बहुसंख्यक अल्पशिक्षित, अशिक्षित जनता। यही अन्तर महिलाओं में भी है। उच्च शिक्षा में उनका प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा कम है फिर भी आर्थिक आत्मनिर्भरता ने ‘करियर वूमेन’ को आत्मविश्वासी बना दिया है। नयी सोच, नयी दृष्टि का निरंतर विकास हो रहा है। नारी स्वातंत्र्य के संमर्थक स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था आप मुझे सौ अच्छी माताएँ दीजिए मैं भारत का नक्शा बदल कर रख दूंगा।
    देश की प्रगति नारी बिन असंभव है। यह पूर्ण सत्य है कि नारी राष्ट्र की आत्मा होती है। राष्ट्र की सुन्दरता भी नारी के साथ जुड़ी है। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि राष्ट्र का चरित्र ही नारी है। जीवन का संस्कार भी नारी को माना गया है। सुसंस्कारित नारी सम्पूर्ण राष्ट्र को दिव्य ज्योति प्रदान करती है। स्वाभाविक है राष्ट्र की प्रगति में नारी का योगदान बहुमूल्य हीरे के समान माना जाता है।

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