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    विश्व कल्याण के लिए सनातन संस्कृति को संगठित व शक्ति सम्पन्न होना होगा 

    महावीर अग्रवाल 

    मन्दसौर १८ मार्च ;अभी तक ;   राक्षसी प्रवृत्तियां आदि काल से ही विध्वंस में विश्वास रखती आई है । वर्तमान में जैसे जैसे सनातन संस्कृति संगठित हो रही है, हिन्दू समाज अपनी संस्कृति पर गौरव का अनुभव कर उसके संवर्धन के प्रयास तेज हो गए हैं वैसे वैसे ये विध्वंसकारी प्रवृत्तियों की बौखलाहट तेज होती जा रही है । इसलिए हमारे सामने चुनौतियां और अधिक गंभीर हो गई है ।

    उक्त विचार ब्रह्म परिषद के संस्थापक गोपालकृष्ण पंचारिया ने व्यक्त किए । वे कांग्रेस प्रवक्ता रेखा जैन द्वारा भगवान श्री परशुरामजी के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी पर अपनी स्पष्ट बात रख रहे थे । उन्होंने कहा कि तेजी से आगे बढ़ते भारत व संगठित हो रही सनातन संस्कृति को ये तथाकथित शक्तियां सहन नहीं कर पा रही है । ये आए दिन अलग अलग जातियों व समाजों में उनके विरुद्ध कोई न कोई अपमानजनक टिप्पणी कर विवाद उत्पन्न कर रही है और इस गंभीर षडयंत्र को हमें बहुत ही गंभीरता से समझना होगा । वरना हम सनातन संस्कृति के अनुयायी ही आपस में लड़कर कमजोर होते रहेंगे और यही तो ये विध्वंसकारी शक्तियां चाहती है ।

    रेखा जैन इस पूरे षडयंत्र का एक औजार मात्र है जिसे ब्राह्मणों के विरुद्ध चलाकर समस्त ब्राह्मणों को उद्वेलित कर दिया । अब सम्पूर्ण ब्राह्मण समाज धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन व पुतला दहन की सोचेगा । ठीक इसी प्रकार से कुछ दिन पहले जैन समाज के विरुद्ध प्रकरण में पूरे जैन समाज ने प्रदर्शन किया था । इसी प्रकार से ये शक्तियां आए दिन हिंदू समाज की अलग अलग जातियों के विरुद्ध कोई ना कोई प्रकरण पैदा कर हिन्दू सनातन संस्कृति को तोड़ने व कमजोर करने की गहरी रणनीति पर काम कर रही है । हम इस षडयंत्र को समझ नहीं पा रहे हैं । यदि हम इस गंभीर संकट को समझ लेंगे तो हम अपने आप पर ही बहुत बड़ा उपकार करेंगे ।
    अभी ३ – ४ दिन पूर्व ही सनातन संस्कृति के लिए संघर्षरत जाने माने अधिवक्ता द्वय श्री हरिशंकर जैन व विष्णुशंकर जैन ने एक टी वी चैनल पर चर्चा में महत्वपूर्ण बात कही कि हिन्दू समाज को कमजोर करने के लिए ही जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया ।
    इस गंभीर संकट के समाधान के लिए हम हमारी महान संस्कृति के महान व पवित्र ग्रंथ रामायण से प्रेरणा लें । भगवान श्रीराम ने राक्षसी व विध्वंसकारी दुष्प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए समाज के हर वर्ग को संगठित कर युद्ध लड़ा वो विजयश्री प्राप्त की ।
    भगवान श्रीराम द्वारा अपनाया गया मार्ग ही हमें भी अपनाना होगा । इसके अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं है । वरना हम टुकड़ों में बंटकर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारने के लिए तो तैयार बैठे ही हैं ।

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