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    संतों का संग ही प्रथम भक्ति के लक्षण है, दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन में स्वामी श्री अनन्तदेवजी महाराज ने कहा

    महावीर अग्रवाल 

    मन्दसौर ४ अप्रैल ;अभी तक ;   श्री केशव सत्संग भवन खानपुरा में चैत्र नवरात्र महोत्सव के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय श्री वामदेवज्योतिर्मठ संस्थान वृन्दावन के अनन्त विभूषित परम पूज्यपाद महामण्डलेश्वर स्वामी श्री अनन्तदेवगिरीजी महाराज के प्रतिदिन प्रातः 8.30 बजे से 10 बजे तक दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन हो रहे है।
                                   स्वामीजी ने नवरात्रि के षष्टम दिवस अपने आशीर्वचन में कहा कि संत उसे कहते है जो हमेशा सम रहता है। संतों का संग ही प्रथम भक्ति के लक्षण है। आपने कहा कि शरीर जैसे-जैसे कमजोर होता है मन संसार में उतना अधिक आसक्त होता जाता है। यही आसक्ति संतों के संग में हो जाये तो जीव मुक्त (धन्य) हो जाता है।
                                      आपने कहा कि ज्ञान, कर्म, भक्ति ये तीन ही मार्ग है, जो अपने आपको जानने में मुख्य है। ज्ञान योग-वैराग्यवान ही ज्ञान योग का अधिकारी है। जैसा शरीर है वैसी आत्मा नहीं है यह ज्ञान है। शरीर अपवित्र है, आत्मा शुद्ध है, आत्मा नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त है यही ज्ञान है।
                                       स्वामीजी ने कहा कि ‘‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीव ब्रह्म नापराः’’ यही ब्रह्म का स्वरूप है।  भगवान से भगवान का नाम बड़ा है। आपने कहा कि आप जैसा ईश्वर की सृष्टि में दूसरा कोई नहीं। यही सत्य है।
    स्वामीजी ने कहा कि गोपियों की अभिलाषा है कि नन्दरायजी के बेटे हमें पति रूप में प्राप्त हो यह शास्त्रीय मर्यादा है। पुरुष द्वारा पत्नी प्राप्ति की कामना, स्त्री द्वारा पति प्राप्ति की कामना यह पुण्य कार्य है। लेकिन पुरूष द्वारा स्त्री की चाह या स्त्री द्वारा पुरूष की चाह यह पाप है। यही सनातन संस्कृति की मर्यादा की विशेषता है।
    इस अवसर पर ट्रस्ट अध्यक्ष जगदीश सेठिया, गुलाबचंद उदिया, कमल देवड़ा, संतोष जोशी, रमेशचन्द्र चन्द्रे, आर.सी. पंवार, राजेश तिवारी सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित थे।

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