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    संतों व अतिथि को भोजन कराकर ही भोजन करना चाहिए- साध्वी श्री सुचिता श्रीजी

    महावीर अग्रवाल

    मंदसौर ९ जुलाई ;अभी तक ;   जैन धर्म ही नहीं अपितु सभी धर्म संतों एवं अतिथि सत्कार की भावना में विश्वास रखते है। जैन धर्म का स्पष्ट मत है कि यदि साधु साध्वी को आहार विराकर या घर पर आये मेहमान को भोजन कराकर यदि भोजन किया जाता है तो यह भोजन श्रेष्ठ है। जैन धर्म में सधर्मी स्वामीवात्सल्य का जो महत्व बताया गया है उसे समझे ओर घर पर आये मेहमान को जरूर भोजन कराये।
    उक्त उद्गार प.पू. साध्वी श्री सुचिताश्रीजी म.सा. ने साध्वी श्री शीलरेखाश्रीजी म.सा. की पावन निश्रा में आयोजित व्याख्यान में कहे। आपने नईआबादी स्थित आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में कहा कि भगवान महावीर के 27 भव हुये इन 27 भव में उन्होनंे कई बार साधु साध्वियों को आहार विराया दान पुण्य किया। इसी कारण अंतिम भव में वे तीर्थंकर बने अर्थात जो भी व्यक्ति सुपात्र दान देता है वह पुण्य कर्म का संचन करता है। भगवान महावीर ने कठोर तप साधना की जिसमें 11 मासखमण की तपस्या भी शामिल है। हम भी ऐसा तप तीवन में करें।
    प्रतिदिन 9 बजे से होंगे प्रवचन- आराधना भवन श्रीसंघ अध्यक्ष दिलीप राका ने बताया कि यहां विराजित साध्वी श्री शीलरेखाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा 9 की पावन प्रेरणा व निश्रा में प्रातः 9 से 10 बजे तक आराधना भवन के हाल में प्रवचन होंगे। सायं 7 बजे उपरांत महिलाओं एवं पुरूषों के अलग अलग हॉल में प्रतिक्रमण भी होंगे। धर्मालुजन लाभ ले।

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