रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर २६ फरवरी ;अभी तक ; अपनी बेटियों के प्रति दामाद के द्वारा पक्षपात से दुखी ससुर के श्राप से पूर्णतः मुक्त नहीं कर सके भगवान शिव। इसलिए ससुर के श्राप से हमेशा बचना चाहिए। पढ़िए पूरी कहानी-
*पृथ्वी पर प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की*
राजा दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। इस रिश्ते से भगवान शिव, चंद्रमा के साडू भाई थे। 27 कन्याओं से विवाह होने के पश्चात चंद्रमा के व्यवहार में उनके प्रति धीरे-धीरे पक्षपात प्रकट होने लगा वे सभी से स्नेह रखते थे किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रमा को अनेक प्रकार से समझाया तो चंद्रमा ने वचन दिया कि आज के बाद आपकी सभी बेटियों के साथ मैं कोई पक्षपात नहीं करूंगा तथा सभी के प्रति समान प्रेम प्रदर्शित करूंगा। किंतु रोहिणी के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा अपने ससुर दक्ष को दिए हुए वचन को चंद्रमा भूल गया। चंद्रमा को अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त होने लगे तथा धीरे-धीरे उनका रूप घटने लगा, उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर चांदनी एवं शीतलता का सारा कार्य रूक गया तथा चंद्रमा की चांदनी का तेज धीरे-धीरे घटने लगा, चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे।
चंद्रमा ने सभी देवताओं से संपर्क किया तो उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि-
यदि ‘चंद्रमा अपने शाप-मोचन के लिए अन्य देवों के साथ सागर के किनारे पवित्र प्रभास पट्टन क्षेत्र में जाकर महामृत्युंजय शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमुक्त हो जाएंगे।
उनके कथनानुसार चंद्रमा ने शिव जी की आराधना की और उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हो गए तथा उन्होंने चंद्रमा को अमरत्व का वर प्रदान किया। किंतु उन्होंने यह भी कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक न करो किंतु मैं दक्ष प्रजापति के शाप से तुम्हें पूर्णत: मुक्त नहीं कर सकता पर मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी। इसलिए तुम प्रतिदिन 15 दिन बढ़ोगे तथा 15 दिन घाटोगे अर्थात कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें “पूर्ण चंद्रत्व” प्राप्त होता रहेगा। चंद्रमा ने प्रसन्न होकर भगवान शिव से यह प्रार्थना की कि आप प्राणी मात्र के कल्याण के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में इसी स्थान पर स्थापित होने की कृपा करें। भगवान शिव ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार चंद्रमा के आग्रह पर भगवान शिव “सोमनाथ ज्योतिर्लिंग” स्वरूप में गुजरात के वेरावल के निकट समुद्र किनारे स्थापित हो गये।