-रमेशचन्द्र चन्द्रे
मंदसौर ४ मार्च ;अभी तक ; आगामी अप्रैल माह में मंदसौर में एक विशाल सोम यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है जो मंदसौर के सांसद श्री सुधीर गुप्ता के नेतृत्व सहित अन्य सहयोगी सदस्यों के प्रयासों से संपन्न किया जाएगा।
वर्तमान युग कलियुग है, शास्त्र के अनुसार तीन बड़े यज्ञ होते हैं जिन्हें “याग” कहा जाता है। अश्वमेध यज्ञ, राजसूय एवं सोम यज्ञ। चूँकि इस युग में अश्वमेध यज्ञ और राजसूय की कोई संभावना भी नहीं है और उसका कोई औचित्य भी नहीं है किंतु सोम यज्ञ आसपास के परिवेश को इतना शुद्ध करता है ताकि प्राणी मात्र को अच्छा स्वास्थ्य मिल सके। परंतु पाप के सागर से केवल ज्ञान की नौका ही पार लगा सकती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान देते हुए कहा कि- अलग-अलग लोग, यज्ञ की परिभाषा भी अलग-अलग करते हैं। हे पार्थ! कुछ लोगों के लिए “यज्ञ” ब्रह्म का स्वरूप है, उनके लिए सब कुछ ब्रह्म है। कुछ लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते हैं तो उनके लिए पूजा ही यज्ञ है। कुछ साधक आत्मा को परमात्मा से मिलाने की साधना को यज्ञ कहते हैं, इन्हीं यज्ञों की भांति इनमें दी जाने वाली आहुतियां भी अलग-अलग प्रकार की है, कोई धन की आहुति देता है, तो कोई कर्म की, किंतु वास्तव में यज्ञ चार प्रकार के हैं, पहला “द्रव्य यज्ञ” है इसमें अर्जित द्रव्य और धन को समाज के कल्याण के कार्यों में लगाया जाता है अर्थात यह “लोक सेवा यज्ञ” है। दूसरा “तपोयज्ञ” है, जब कोई अपने कर्म को अपनी तपस्या बना लेता है तो उसका जीवन तपो यज्ञ बन जाता है।
हे पार्थ! अपने धर्म का पालन भी यज्ञ है किंतु यह धर्म सांप्रदायिक नहीं होकर सनातन है। यह व्यक्ति और समाज दोनों ही के लिए कल्याणकारी है। तीसरा यज्ञ “योग” है इसमें अष्टांग योग की साधना की जाती है और इसमें लोग ध्यान और समाधि का मार्ग अवलंब करते हैं, प्राणों का प्राणों में हवन किया जाता है और चौथा यज्ञ है “ज्ञान- यज्ञ” यूं तो चारों ही यज्ञ महत्वपूर्ण है परंतु श्रेष्ठतम है, “ज्ञान- यज्ञ” , क्योंकि ज्ञान ही तो अच्छे और बुरे में अंतर करता है और मनुष्य को अपनी अग्नि में तपाकर कर्मों को शुद्ध करता है और शुभ बनता है। ज्ञान ही तो कर्म के उत्कर्ष का चरम बिंदु है और ज्ञान ही तो तुम्हें मोह बंधनों से मुक्त कराएगा। हे पार्थ! पाप के सागर को केवल ज्ञान की नौका ही पार करा सकती है।
यज्ञ की उक्त महिमा को जानकर, हम जो यज्ञ कुंड बनाकर आहुतियां डालते हैं, वह वास्तव में लौकिक व्यवहार है किंतु असली यज्ञ तो वही है जिसकी व्याख्या उपरोक्त प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने की है।
सोम यज्ञ:- सोम यज्ञ, राजसूय यज्ञ एवं अश्वमेध यज्ञ यह सामान्य यज्ञ से अत्यंत ही विशाल स्वरूप में आयोजित किए जाते हैं इसलिए इन्हें “यज्ञ” के स्थान पर “याग” कहा जाता है। ऐसा माना रहता है कि सोम यज्ञ प्रकृति के “सृजन चक्र” को सहज रूप से चलने में मदद करता है और इसके माध्यम से मनुष्य सहित अन्य प्राणियों के लिए प्रचुर साधनों का वरदान मिलता है।
आजकल स्थान- स्थान पर जो यज्ञ किए जाते हैं वे ब्रह्म यज्ञ है, वह सामान्यतः देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इन यज्ञों को कोई भी व्यक्ति या समूह आयोजित कर सकता है।
इस कलयुग में अश्वमेध यज्ञ एवं राजसूय यज्ञ प्रासंगिक नहीं है, इसलिए बड़े यज्ञों की श्रेणी में एकमात्र “सोम- यज्ञ” ही किया जा सकता है।
सोम याग या यज्ञ एक ऐसा यज्ञ है जिसे “अग्नि- सोमिया याग” भी कहा जाता है। अग्नि और सोम के बीच संतुलन बनाए रखना तथा पर्यावरण में गर्म और ठंडी दोनों ऊर्जाओं के संतुलित वातावरण में जड़ी बूटियों के दहन से अनेक पोषक तत्वों का निर्माण होता है।
“सोम यज्ञ” एक ऐसा यज्ञ है जिसमें सोमवल्ली (सोमवटी) नामक औषधीय जड़ी बूटी से हवन किया जाता है। यह सोमवल्ली सामान्यतः मध्य प्रदेश के रीवा , पन्ना, सतना सीधी, चित्रकूट और उसके आगे की जितनी भी पर्वत श्रेणियां है वहां उपलब्ध होती है तथा दक्षिण भारत के पर्वतों पर भी यह उपलब्ध होती है।
उक्त के अतिरिक्त देसी गाय का घी, मूंगफली का तेल, गाय का गोबर जो सीधे सुख जाता अर्थात मालवी भाषा में अलूने कंडे ऐसी समिधा जिसका उल्लेख ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में किया गया है अर्थात जिस वृक्ष की लकड़ी कोयला नहीं बन सकती, वह समिधा के योग्य होती है। इसके साथ ही विभिन्न यज्ञ सामग्री सहित जो दंपत्ति यज्ञ कुंड पर बैठेंगे उन्हें एक सप्ताह पूर्व से ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ेगा।
धन की पवित्रता और मन की पवित्रता दोनों ही इस यज्ञ को सार्थक करेगी अन्यथा इसके दुष्परिणाम यज्ञ से संबंधित प्रत्येक घटक को किसी ने किस रूप में भोगना पड़ेगा।
“सोम यज्ञ” कांटों का पथ है और संपूर्ण राह कांटों से भरी है, इसे कुशलता से लांघना है क्योंकि यह यज्ञ लोकमन पर पवित्र संस्कारों का उपक्रम हैं। इसलिए यह यज्ञ मंदसौर नगर ही नहीं आसपास के परिवेश को शुद्धता एवं स्वास्थ्य प्रदान कर सके, इस प्रकार के प्रयास किए जाने चाहिए।