(राहुल सोनी)
मन्दसौर ११ अप्रैल ;अभी तक ; दयालु बाबा के नाम से पहचाने जाने वाले तलाई वाले बालाजी के दरबार में यदि मंगलवार या शनिवार को चोला चढ़ाना है तो आज की तारीख में रसीद कटवाने वाले भक्तों का नम्बर 21 से 22 साल के इतंजार के बाद आएगा। लाखों श्रद्धालुओं के आस्था के केन्द्र बालाजी के दरबार में सामान्य वार में भी चोले के लिये कम से कम 10 साल का इंतजार तो भक्तों को करना ही पड़ेगा।

मन्दसौर के तलाई वाले बालाजी का दरबार अगाध आस्था और श्रद्धा के केन्द्र के रूप में जाना जाता है। गांधी चौराहा और बालागंज के संधि स्थल के बीच स्थित तलाई वाले बालाजी की लीला कितनी अपरम्पार है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां चोला चढ़ाने तक के लिये सालों का इंतजार भक्तों को करना पड़ रहा है।
संकटों को दूर करने वाले और हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले चमत्कारिक तलाई वाले बालाजी के यहां सुबह 5 बजे से भक्तों का सैलाब उमड़ना शुरू होता है जो रात 10 बजे तक अनवरत जारी रहता है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी कलियुग के प्रत्यक्ष देवता है, उनके दर्शन मात्र से भगवान श्री राम की कृपा सुलभ हो जाती है। जिससे दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप तुरंत दूर हो जाते हैं। श्री तलाई वाले बालाजी के दरबार में लड्डू चूरमे का प्रसाद चढ़ाने, राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करवाने और चोला चढ़ाने से मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। यही वजह है कि यहां हर दिन चोला चढ़ाने के बावजूद चोले की प्रतीक्षा सूची सालों की लम्बित है। मन्दिर के पुजारी पं. रामेश्वर शर्मा व पं. भूपेन्द्र शर्मा के मुताबिक मंगलवार के लिए जनवरी 2047 व शनिवार के लिये अगस्त 2046 तक की प्रतीक्षा सूची है। तो वहीं इन विशेष वारों को छोड़कर अन्य वारों के लिये अप्रेल 2035 तक की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इतना ही नहीं राम रक्षा स्त्रोत के लिए फरवरी 2027 और लड्डू चूरमे के भोग के लिये आज की स्थिति में जून 2027 तक की प्रतीक्षा भक्तो को करना पड़ रही है।
तलाई वाले बालाजी का मंदिर एक ऐसा अनूठा मंदिर है जहां पट खुलने से राम रक्षा स्त्रोत की गूंज गूंजती है तो वहीं रात को पट बन्द होने तक सुन्दरकाण्ड, हनुमान चालीसा और भजन कीर्तन के सूर गूंजते रहते है। प्रतिदिन सैकड़ों से लेकर हजारों की तादाद में भक्त यहां मत्था टेककर दयालु बाबा के नाम से पहचाने जाने वाले तलाईवाले बालाजी का आशीर्वाद प्राप्त करते है। भक्ति और श्रद्धा इतनी अटूट है कि व्यापारी और नौकरी पर जाने वाले लोग पहले दरबार में मत्था टेकते है और फिर अपने काम-काज की शुरूआत करते है।
मंगलवार और शनिवार के चोले की बुकिंग करना पड़ी थी बंद –
मंगलवार और शनिवार की प्रतीक्षा सूची काफी दीर्घ होने पर श्री बालाजी मंदिर ट्रस्ट कों 2019 में मंगलवार और शनिवार के चोले की बुकिंग बंद करना पड़ी थी। ट्रस्ट ने अब अप्रैल 2024 से फिर से मंगलवार और शनिवार के चोले की बुकिंग भी चालू कर दी। बता दे कि वर्तमान में मंगलवार और शनिवार के चोले के लिये 1200 रू. की व अन्य वार के चोले के लिये 700 रू. की रसीद भक्त करवाकर अपना चोला बुक कर सकते है।
700 साल पुराना है इतिहास-
लगभग सात सौ वर्ष पुरानी बालाजी की प्रतिमा प्रारम्भ में विशाल वटवृक्ष के नीचे विराजित थी। यह स्थान शहर से दूर सूबा साहब (कलेक्टर) बंगले के पास स्थित था। मंदिर के पास ही एक तलाई थी जिस पर वर्तमान में नगरपालिका तरणताल स्थित हैं। किवदंती है कि इस प्रतिमा की स्थापना अत्यंत सिद्ध परमहंस संत द्वारा की गयी थी। बहुत समय तक यहाँ बनी धर्मशाला, तलाई एवं मंदिर साधु संतों एवं जमातों का विश्राम एवं आराधना स्थल रहा।
उपलब्ध प्रमाणों से ज्ञात होता हैं कि नगर की प्रमुख फर्म एकामोतीजी के फूलचंदजी चिचानी, बद्रीलालजी सोमानी व नत्थूसिंहजी तोमर ने लम्बे समय तक अपनी सेवाएं दी। अनंत श्री विभूषित ब्रह्मलीन पूज्य राजारामदासजी महाराज अधिष्ठाता और श्री पंचमुखी बालाजी मंदिर, भीलवाड़ा ने भी 1940 ई. में यहाँ रहकर साधना की।
उपलब्ध प्रमाणों से ज्ञात होता हैं कि नगर की प्रमुख फर्म एकामोतीजी के फूलचंदजी चिचानी, बद्रीलालजी सोमानी व नत्थूसिंहजी तोमर ने लम्बे समय तक अपनी सेवाएं दी। अनंत श्री विभूषित ब्रह्मलीन पूज्य राजारामदासजी महाराज अधिष्ठाता और श्री पंचमुखी बालाजी मंदिर, भीलवाड़ा ने भी 1940 ई. में यहाँ रहकर साधना की।
अयोध्या में रामलला प्रतिष्ठा के दिन चढ़े स्वर्णकलश-
सन् 1964 में बालाजी मंदिर न्यास के गठन के बाद मंदिर परिसर का योजनाबद्ध तरीके से विस्तार किया जा रहा हैं । 1995 के पश्चात् मंदिर के पुनर्निर्माण के कार्य के अंतर्गत 85 फ़ीट ऊँचा शिखर तथा निज मंदिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के रामलला के प्रतिष्ठा महोत्सव के तहत ही मन्दसौर में भी मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में 20 से 25 जनवरी तक 6 दिवसीय स्वर्ण कलशारोहण एवं 108 कुण्डीय श्री हनुमन्त महायज्ञ का आयोजन भी हुआ। 28 वर्षों के निरंतर निर्माण के सफर के बाद 25 जनवरी को अभिजीत मुहूर्त में यहां स्वर्ण कलश की स्थापना हुई। इतना ही नहीं 108 कुण्डीय श्री हनुमन्त महायज्ञ के लिये अयोध्याधाम में बनी यज्ञशाला की तर्ज पर ही वहां के ही यज्ञ शिल्पियों ने मन्दसौर यज्ञशाला का निर्माण भी किया था और पूरा महोत्सव राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध भी हुआ था।