रमेशचन्द्र चन्द्रे*
मन्दसौर १७ जून ;अभी तक ; मध्यप्रदेश के धार में राजा भोज द्वारा बनवाया गया वाग्देवी का मंदिर स्थित है जिसे हम “भोजशाला” भी कहते हैं।
इस के सर्वेक्षण में वहां की शिलाओं पर “परिजातमंजरी नाटिका” लिखी हुई मिली थी, जिसे परमार राजा अर्जुन वर्मन के आदेशानुसार भोजशाला में शिलाओं पर उकेरा गया था। इसमें भोज के समय की धारानगरी और स्वयं राजाभोज का वर्णन भी है।
इससे ज्ञात होता है कि एक युद्ध में चेदिदेश के राजा गांगेय देव कलचुरी एवं चालुक्य वंश के राजा तेलंग को राजा भोज ने पराजित किया था, क्योंकि दोनों ही राजाओं ने एक साथ राजा भोज पर आक्रमण कर दिया।
गोदावरी के तट पर बधाएं होने के बाद भी किसी अन्य पथ से भोज ने कोंकण पर विजय प्राप्त कर ली। इस युद्ध में राजा गांगेय एवं राजा तेलंगाना बुरी तरह पराजित हुऐ तथा राज्य का कुछ भाग भोज के अधीन हो गया। इन दोनों राजाओं को पराजित करने के कारण एक कहावत प्रचलित हो गई – “कहां राजा भोज और कहां गांगेय- तेलंग”। जो बाद में अपभ्रंशित होकर “गांगी तेलन” और फिर “गंगू तेली” में बदल गई फिर यह कहावत बन गई कि *”कहां राजा भोज कहां गंगू तेली”*
आज भी इंदौर के के निकट धार नगर में एक बड़ा प्रासाद है, जिसे “लाट मस्जिद” के नाम से जाना जाता है। यहां एक विशाल लोह स्तम्भ तीन खंडो में रखा है। इसे गंगू तेली की लाट भी कहा जाता है।
इतिहासकारों का मानना है कि संभवतः भोज की गांगेयदेव एवं तेलंग पर विजय के रूप में यहां एक विजयस्तम्भ खड़ा किया गया था।


