महावीर अग्रवाल
मंदसौर ९ जुलाई ;अभी तक ; चातुर्मास (वर्षावास) में प्रत्येक श्रावक श्राविका को 9 कर्तव्यों का पालन अवश्य ही करना चाहिये। जिन शासन में इन 9 कर्तव्यों को श्रावक श्राविका का आभूषण कहा गया है। हम अपने जीवन में बाह्य आभूषण धारण कर सुंदर दिखने का प्रयास करते रहते है लेकिन जो ये 9 कर्तव्य है ये जीवन के 9 आंतरिक आभूषण है इनका पालन करके हम अपने जीवन को मोक्षमार्ग की ओर बड़ा सकते है।
उक्त उद्गार परम पूज्य जैन संत श्री राजरत्नजी म.सा. ने आचार्य श्री निपुण रत्नविजयजी म.सा. की पावन निश्रा में रूपचांद आराधना भवन (चौधरी कॉलोनी) में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने बुधवार को यहां चातुर्मास प्रारंभ के उपलक्ष्य में आयोजित व्याख्यान में श्रावक श्राविकाअेां के 9 कर्तव्य बताते हुए कहा कि प्रत्येक श्रावक श्राविकाओं को वर्षावास के चार माह में प्रतिदिन सामायिक, प्रतिक्रमण करना ही चाहिये। श्रावक श्राविकाओं को पोषध अर्थात धर्मस्थान में रहकर धर्म आराधना करना एवं देवपूजा अर्थात भगवान की प्रतिमाओं को केसर व अन्य पदार्थ से पूजा भी करना चाहिये। प्रभु की प्रतिमा का स्नात्र पूजन एवं अंगरचना अर्थात आंगी सजाना भी कर्तव्य है। वर्षावास के चार माह में यथासंभव ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का प्रयास करा चाहिये यदि चार माह संभव नहीं हो तो सीमित अवधि के लिये भी यह व्रत लिया जा सकता है। चार माह में दान पुण्य करना व तप तपस्या करना भी श्रावक श्राविका का कर्तव्य है।
प.पू. श्री राजमुनिजी म.सा. ने कहा कि प्रथम एवं अंतिम तीर्थंकर ने ही श्वेत वस्त्र पहने शेष तीर्थंकरों ने रंग बिरंगे वस्त्र धारण किये थे। तीर्थंकरों के वेश में अंतर हो सकता है लेकिन मास की अवधि स्थिरता एवं उसके नियमों को लेकर सभी तीर्थंकरों के काल में समानता रही है। इसलिये जीवन में वर्षावास की महत्ता को समझे तथा वर्षावास के चार माह में अधिक से अधिक तप त्याग की भावना रखे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने संतों की अमृतमयी वाणी श्रवण की। प्रभावना डॉ. सागरमल जैन कचोलिया द्वारा बांटी गई।


