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    21अप्रैल, सिविल सेवा दिवस विशेष- प्रशासन की रीढ़ अखिल भारतीय सेवाएं

    डॉ. रवींद्र कुमार सोहोनी

    मंदसौर २० अप्रैल ;अभी तक ;   भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की भूमिका निर्विवाद रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है और यही कारण है स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री तथा देश के पहले गृह मंत्री ने इन सेवाओं को स्टील फ्रेम का नाम दिया था। इन सेवाओं के उद्भव और विकास का श्रेय क्रमशः ईस्ट इंडिया कम्पनी और ब्रिटिश राज व्यवस्था को जाता है। सन् 1773 में ब्रिटिश संसद ने रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया और कई नवीन प्रशासनिक सुधारों की नींव। इस समय वॉरेन हेस्टिंग्स (1772 से 1774) बंगाल के गवर्नर हुआ करते थे। 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स को पूरे भारतवर्ष का गवर्नर जनरल बनाया गया। परतंत्र भारत की प्रशासनिक व्यवस्था को अधिक संगठित और केंद्रीकृत करने की दृष्टि के साथ ही राजस्व व्यवस्था की सुधार संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हेस्टिंग्स ने कलेक्टर पद का सृजन किया।
                                          रेगुलेटिंग एक्ट में दिए गए प्रावधानों के अनुसार ही इस दौर में कलकत्ता में एक सर्वाेच्च न्यायालय की व्यवस्था भी की गई और इसी दौर में हिन्दू पर्सनल लॉ के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ का भी विधिवत श्रीगणेश कम्पनी में हुआ। वॉरेन हेस्टिंग्स की भारतीय सभ्यता और संस्कृति में विशेष रुचि थी जिसके चलते उसने कई भारतीय धर्म ग्रन्थों का आंग्ल भाषा में अनुवाद करवाया। वॉरेन हेस्टिंग्स को इन्हीं कारणों से भारत में ब्रिटिश प्रशासन की नींव रखने वालों में प्रमुख माना जाता है। भारत में अपने कई भ्रष्ट और घृणित कारनामों के चलते ब्रिटेन वापस लौटने पर हेस्टिंग्स पर सात सालों तक (1788 से 1795) महाभियोग भी चलाया गया किंतु जैसा अपेक्षित था उन्हें बरी कर दिया गया। लॉर्ड कार्नवालिस के भारत के गवर्नर जनरल (1786 से 1793) बनने पर प्रशासनिक सुधारों की श्रृंखला प्रारंभ हुई। लॉर्ड कार्नवालिस ने कलेक्टर की शक्तियों में विस्तार करते हुए राजस्व, प्रशासन, और न्यायिक क्षेत्र में भी उनका दखल बढ़ा दिया।
                                     15 अगस्त, 1947 को भारतीय स्वतंत्रता और नवीन संविधान में भी भारतवर्ष की एकता और अखंडता को दृष्टिगत रखते हुए अखिल भारतीय सेवाओं को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। संविधान के 14वें भाग में अनुच्छेद 308 से लेकर 323 तक अखिल भारतीय सेवाओं के विषय में विस्तृत प्रावधान किए गए हैं। वर्तमान कई अखिल भारतीय सेवाओं के प्रावधान हैं किन्तु इनमें आई.ए.एस., आई.पी.एस. तथा आई.एफ.ओ.एस. अधिक महत्वपूर्ण तथा ज़्यादा प्रभावशाली सेवाएं हैं। भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल अत्यन्त दूरदृष्टी वाले नेता थे वे स्वतंत्रता के पहले ही दिन भारत की एकता और अखंडता को को लेकर न केवल चिंतित थे अपितु पर्याप्त सजग भी थे। सरदार पटेल ने 564 देसी रियासतों का विलीनीकरण का ही कार्य नहीं किया अपितु ब्रिटिश कालीन अखिल भारतीय सेवाओं का भी पुरजोर समर्थन किया। पटेल भलीभांति जानते थे कि भारतवर्ष जैसे विविधता वाले राष्ट्र में देश की अखंडता और एकता के लिए इन सेवाओं का क्या महत्व है ।
                                        21 अप्रैल, 1947 को सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत की पहली अखिल भारतीय सेवाओं की बैच को  यमुना नदी के किनारे बने मैटकॉप हाऊस में संबोधित करते हुए उन्हें ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया’ की संज्ञा प्रदान की थीं। इसी 21 अप्रैल की तिथि को यादगार बनाने की दृष्टि से वर्ष 2006 में भारत सरकार ने यह निर्णय किया कि प्रत्येक वर्ष इस दिन पूरे देश में सिविल सेवा दिवस मनाया जाएगा तथा शासन की जन आकांक्षी योजनाओं को पूरी शिद्दत से धरातल पर पर उतारने वाले सिविल सेवकों को प्रधानमंत्री अवार्ड से सम्मानित किया जाकर उनकी जन सेवकों को रेखांकित करते हुए उनकी हौसला अफजाई की जाएगी जिससे वे भविष्य में भी लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को और पुष्ट कर सके और केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में भारत की एकता और अखंडता के सच्चे निगेहबान बने रहें। अत्यन्त हर्ष और प्रसन्नता का विषय है की इस 15वें सिविल सेवा दिवस पर मालवा अंचल की दो कलेक्टर सुश्री अदिति गर्ग (मन्दसौर) तथा सुश्री नेहा मीणा (झाबुआ) सम्मानित होने जा रही हैं। सभी निष्पक्ष, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ तथा पारदर्शी प्रशासन को गति देने वाले सिविल सेवकों को अनन्त शुभकामनाएं और बधाई।

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