40 लाख तक खर्च कर सकते हैं उम्मीदवार:गाड़ियां, रैली, गिफ्ट के क्या नियम; चुनाव प्रचार से जुड़े 12 सवालों के जवाब
पांच राज्यों में चुनावी प्रचार शुरू होने को है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की वोटिंग में तो 1 महीने से भी कम वक्त बचा है। कैंडिडेट लिस्ट, मैनिफेस्टो, रैलियां, रोड-शो, सभाएं… इन राज्यों में यही खबरें हर तरफ से आने लगी हैं।
चुनाव प्रचार के इस मौसम में आपके मन में भी कुछ सवाल होंगे। मसलन- क्या उम्मीदवारों के खर्च की कोई सीमा होती है, ज्यादा पैसे खर्च करने पर क्या कार्रवाई हो सकती है, किन जगहों पर प्रचार कर सकते हैं और कहां नहीं?
इलेक्शन एजुकेशन सीरीज की इस कड़ी में चुनाव प्रचार से जुड़े ऐसे ही 12 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
सवाल 1: उम्मीदवारों को नामांकन के बाद चुनाव प्रचार के लिए वक्त क्यों दिया जाता है?
जवाबः चुनाव आयोग जिस रोज उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट जारी करता है, उसके दो सप्ताह बाद मतदान की तारीख दी जाती है। इस दौरान उम्मीदवार और तमाम पार्टियों के नेता वोटरों के बीच जाते हैं। वो अपने पक्ष में लोगों को रिझाने की कोशिश करते हैं।
चुनाव प्रचार का वक्त इसलिए दिया जाता है ताकि फ्री और ओपन डिस्कशन से जनता को सही उम्मीदवार और दलों का पता चल सके। उम्मीदवारों को जान-समझकर वोटर्स अपनी राय बना सकें और उन्हें वोट दे सकें।
सवाल 2: वोटिंग से 48 घंटे पहले क्या चुनाव प्रचार पर रोक लग जाती है?
जवाबः मतदान से 48 घंटे पहले साइलेंस पीरियड शुरू हो जाता है। जिसे प्री-इलेक्शन साइलेंस भी कहते हैं। इस दौरान इलेक्शन कैंपेन से जुड़ी सभी तरह की गतिविधियों पर रोक लग जाती है।
रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1951 के सेक्शन 126, 126A और 135C के तहत ऐसी गतिविधियां जिनसे चुनाव नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। जैसे- पब्लिक मीटिंग, भाषण, रैली, इंटरव्यू, एडवर्टाइजमेंट, शराब की बिक्री वगैरह पर साइलेंस पीरियड में पाबंदी होती है। चुनाव आयोग एक नोटिफिकेशन जारी करके इसे लागू करवाता है।
ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे कि वोट करते वक्त वोटर्स का दिमाग शांत रहे। वो किसी कैंपेन के प्रभाव में आए बिना अपने विवेक से सही उम्मीदवार को वोट दे सके।
उदाहरण के लिए- मध्य प्रदेश में चुनाव की तारीख 17 नवंबर है तो 15 नवंबर की शाम 5 बजे के बाद किसी तरह के जुलूस, सम्मेलन, विज्ञापन की इजाजत नहीं होगी। इसी तरह राजस्थान में 23 नवंबर की शाम से साइलेंस पीरियड शुरू हो जाएगा।
सवाल 3: चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों के खर्च की कोई सीमा होती है या वो जितना चाहे पैसा बहा सकते हैं?
जवाबः चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के खर्च की सीमा तय कर रखी है। उम्मीदवार प्रचार में असीमित पैसा नहीं खर्च कर सकते हैं। 2022 में इस खर्च की सीमा को बढ़ाया गया है।
बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार में खर्च की सीमा ₹28 लाख से बढ़ाकर ₹40 लाख रुपए कर दी गई है। वहीं, छोटे राज्यों के विधानसभा उम्मीदवार 28 लाख रुपए तक खर्च कर सकते हैं। पहले ये सीमा 20 लाख रुपए तक थी।
सवाल 4: उम्मीदवारों के खर्च का हिसाब कौन रखता है और सारे खर्चों को कैसे जोड़ा जाता है?
जवाबः चुनाव के दौरान उम्मीदवार और उसके एजेंट के जरिए होने वाले हर खर्चे का हिसाब उम्मीदवार को खुद ही रखना होता है। चुनाव परिणाम आने के 30 दिन के अंदर उम्मीदवारों को खर्च का हिसाब इलेक्शन कमीशन को देना होता है।
नॉमिनेशन के दिन से चुनाव परिणाम आने के दिन तक के खर्च का पूरा हिसाब जिला इलेक्शन कमिश्नर यानी DEO के पास जमा होता है। हर खर्च की सही रसीद होना जरूरी है।
सवाल 5: चुनावी खर्च का हिसाब नहीं देने या गलत जानकारी देने पर क्या होता है?
जवाबः कोई उम्मीदवार चुनावी खर्च का हिसाब जिला निर्वाचन अधिकारी के पास जमा नहीं करता है तो 3 साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जा सकती है। खर्च का हिसाब 30 दिन के अंदर जमा करना होता है।
पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट के सेक्शन 10A में इसका जिक्र है। अगर किसी उम्मीदवार ने इलेक्शन कमीशन को दिए खर्च की जानकारी से ज्यादा पैसा खर्च किया है तो उसे भ्रष्ट माना जाएगा।
जांच में आरोप सिद्ध होता है तो चुनाव आयोग ऐसे नेताओं पर 3 साल तक के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा सकता है। चुनाव आयोग अपने विवेक से कम या ज्यादा कार्रवाई भी कर सकता है।
इंदिरा गांधी इसका बड़ा उदाहरण हैं। प्रधानमंत्री पद पर होने के बावजूद इंदिरा की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। जून 1975 की बात है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ एक याचिका दायर की गई।
इस याचिका में उन पर चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा। कोर्ट ने इंदिरा पर लगे आरोपों को सही पाकर उन्हें भ्रष्ट करार दिया। 12 जून को इंदिरा के निर्वाचन को समाप्त करने के साथ ही 6 साल के लिए उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई थी।
सवाल 6: अगर उम्मीदवार तय लिमिट से ज्यादा खर्च कर रहा है तो कहां अपील करें?
जवाबः अगर किसी उम्मीदवार ने तय लिमिट से ज्यादा खर्च किया है तो उस चुनाव क्षेत्र का कोई भी नागरिक कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है। ये याचिका चुनाव नतीजे आने के 45 दिन के भीतर दायर करनी होती है।
सवाल 7: क्या मंदिर, मस्जिद, स्कूल हर जगह चुनाव प्रचार कर सकते हैं या इसे लेकर कुछ मनाही है?
जवाबः धार्मिक स्थलों जैसे- मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा आदि में चुनाव प्रचार की मनाही होती है। इसके अलावा सिनेमाघरों और मैरिज हॉल जैसे सामाजिक जगहों पर भी चुनाव प्रचार करने पर उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
सत्ताधारी दल आचार संहिता लागू होने के बाद फिल्मों के जरिए भी सरकार के समर्थन में चुनाव प्रचार नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा चुनाव के दिन मतदान केंद्र के 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह से वोट देने की अपील करने की मनाही होती है।
सवाल 8: चुनाव प्रचार के दौरान उम्मीदवारों की वीडियोग्राफी क्यों कराई जाती है?
जवाबः स्थानीय इलेक्शन कमीशन के अधिकारी उम्मीदवारों पर नजर रखने के लिए एक वीडियोग्राफी टीम बनाती है। ये वीडियोग्राफी टीम हर चुनावी सम्मेलनों के वीडियो रिकॉर्ड्स को जमा करती है। जातीय, धर्म आदि के आधार पर उकसावे वाले भाषण नियम तोड़े जाने की स्थिति में इन्हीं वीडियो के आधार पर इलेक्शन कमीशन के अधिकारी कार्रवाई करते हैं।
सवाल 9: चुनाव प्रचार के लिए अस्थायी कार्यालय खोलने को लेकर क्या नियम हैं?
जवाबः उम्मीदवार या पार्टी चुनाव प्रचार के लिए अस्थायी ऑफिस खोल सकती है। हालांकि, इसको लेकर कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। मसलन- ये किसी पब्लिक या प्राइवेट प्रॉपर्टी में अवैध कब्जा नहीं होना चाहिए। ये ऑफिस किसी भी धार्मिक स्थल, स्कूल, अस्पताल से कम से कम 200 मीटर की दूरी पर होना चाहिए। दफ्तर के बाहर सिर्फ एक पार्टी का झंडा और पोस्टर लगा होना चाहिए।
सवाल 10: चुनाव प्रचार में कोई उम्मीदवार कितनी गाड़ियों का इस्तेमाल कर सकता है?
जवाबः चुनाव प्रचार में गाड़ियों के इस्तेमाल की कोई सीमा नहीं है। हां, इसके लिए चुनाव आयोग से इजाजत लेनी होती है। वैलिड परमिट के बाद ही गाड़ियां चुनाव प्रचार में लगाई जा सकती हैं। बिना परमिट वाली गाड़ियों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
परमिट का ओरिजिनल कार्ड (फोटोकॉपी नहीं) गाड़ी की विंडस्क्रीन में लगा होना चाहिए। इसमें साफ तौर पर लिखा होता है कि ये गाड़ी किस कैंडिडेट के लिए इस्तेमाल हो रही है। इन गाड़ियों पर होने वाला खर्च उम्मीदवार के प्रचार में होने वाले खर्च में जुड़ता है।
गाड़ियों में अलग से लाउडस्पीकर वगैरह लगवाने या मॉडिफिकेशन करवाना मोटर व्हीकल एक्ट के तहत आता है। सक्षम अधिकारी से अनुमति लेकर ऐसा किया जा सकता है।
सवाल 11: चुनाव प्रचार के लिए बैनर, पोस्टर इस्तेमाल करने को लेकर क्या नियम हैं?
जवाबः आचार संहिता लगने के तुरंत बाद चुनाव आयोग होर्डिंग, बैनर, पोस्टर हटाने की कार्रवाई शुरू कर देता है। पोस्टर, इश्तेहार, पैम्फलेट को छपवाने वाले का नाम उस पर लिखा होना जरूरी है। किसी की निजी संपत्ति का उपयोग झंडा लगाने, पोस्टर चिपकाने या नारा लिखने के लिए नहीं किया जा सकता है। प्रत्याशी अपने आवास, कार्यालय और प्रचार की गाड़ियों पर झंडा, बैनर आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान स्पेशल एसेसरीज जैसे कैप, मास्क, स्कार्फ वगैरह पहनने और बांटने की अनुमति होती है। हालांकि कैंडिडेट्स साड़ी, शर्ट, कंबल वगैरह नहीं बांट सकते, क्योंकि इसे वोटर्स को घूस की तरह देखा जाता है।
सवाल 12: चुनाव प्रचार के लिए जुलूस, जलसा बुलाने को लेकर क्या नियम हैं?
जवाबः आचार संहिता लागू होने के बाद उम्मीदवार या दल को चुनाव प्रचार के लिए जुलूस, जलसा व सार्वजनिक आयोजनों के लिए अनुमति लेनी होती है। लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने के लिए भी इजाजत लेना जरूरी है।