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मतदान का प्रतिशत बढ़ाने 21 वी सदी का कार्यकर्ता क्या घर -घर अलख जगाने जाएगा, दो चरणों मे हुए मतदान का प्रतिशत कम रहने पर नेताओं की उड़ी निंद

     ( महावीर अग्रवाल )
मन्दसौर  ७ मई ;अभी तक;  18 वी लोकसभा के लिए 1 जून 2024 तक 7 चरणों मे देश की 543 लोकसभा सीटों के लिए होने जा रहे चुनाव में अभी तक दो चरणों के लिए 190 सीटो पर मतदान हो गया ।दोनों चरणों मे हुए मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव से कम रहा। बस इसी कम मतदान ने देश के नेताओं की नींद हराम कर दी। दिन का चेन तो चुनाव प्रचार में लगा है और अब रात को भी चेन नही मिल रहा होगा। लोकसभा के इस चुनाव में उम्मीद यह लगाई जा रही थी कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की छवि को लेकर जिस प्रकार से उछाल देखने को मिला है उसे न केवल भाजपा को बल्कि अन्य राजनीतिक दलों को भी हनुमान था कि मतदान अच्छा होगा लेकिन नेताओं के हनुमान के अनुसार जैसा नहीं हुआ अब यह कम मतदान का प्रतिशत किसके पक्ष का रहा होगा । सब अपने तई  अनुमान लगा रहे हैं लेकिन नेताओं की चिंता भी सामने आ गई है।
                                     मतदान का प्रतिशत कम क्या रहा पहली कमर कसने की ठानी भाजपा के नेताओं ने और उनकी पहल इसलिए जायज कहीं जा सकती है कि उन्होंने 400 के पार के लिए खूब मेहनत की। कम मतदान को लेकर सर्वप्रथम केंद्रीय गृहमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के नेताओं को दो टूक शब्दों में कहा कि जिन मंत्रियों के इलाके में वोटिंग प्रतिशत कम होगा उनके मंत्री पद चला जाएगा बदले में उन विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा जिनके क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा। शाह 25 अप्रैल गुरुवार को भोपाल पहुंचे थे उन्होंने शुक्रवार को दिनभर चुनाव प्रबंधन की बैठक की ओर कहा कि आप अपने मंत्रियों और विधायकों को केंद्रीय नेतृत्व की मंशा से अवगत करा दीजिए। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव इस दौरान भाजपा कार्यालय पहुंचे और उन्होंने चुनाव प्रभारी युवा सह प्रभारी के साथ समीक्षा की। विधायक और कार्यकर्ता की औपचारिकता और निश्चिन्तता की बात भी उठी और उत्साह से काम नहीं करने की बात भी उनकी समझ में आ गई।
                                    मतदान के कम प्रतिशत से जहां सभी राजनीतिक दल चिंतित व आश्चर्य प्रकट कर रहे होंगे वहीं भाजपा भी पीछे नहीं बल्कि आगे होगी कि आखिर यह हो कैसे रहा है क्योंकि माहौल तो वह मान रहे हैं कि भाजपा में है। अरे भाई यह कोई 19 सी या बी साड़ी में चुनाव नहीं हो रहे हैं जबकि यह माना जाता था कि और चर्चा में भी रहता आया है कि कार्यकर्ता चने खाकर दिनभर जमकर प्रचार में जुटे रहते थे अब यह अभी के कार्यकर्ता 21वीं साड़ी के हैं 21वीं साड़ी के आधुनिक युग में साक्षमता के बढ़ते कदम हो हो यह चर्चा तो मतदाताओं में भी सुनी गई खासकर उन पुराने लोगों में जब उन्हें घर-घर कार्यकर्ता पहुंचकर मतदान करने के लिए प्रेरित करते थे और तब तक पीछे लगे रहते जब तक वह मतदान करके  आ न जाए ।
                                 श्री अमित शाह साहब यह अभी एक कृषि साड़ी का कार्यकर्ता है अभी हाल ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कुछ वर्ष पहले भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं को आह्वान किया था कि वह लोगों के घर-घर संपर्क कर अधिक से अधिक लोगों को भाजपा का सदस्य बनाने का प्रयास करें। इसके बाद किसी गली बोलने में भी भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को भाजपा का सदस्य बना अभियान चलाते नहीं देखा गया बल्कि चर्चा में यह तो सुना गया कि इन्होंने अधिकांश अपने रिश्तेदारों व कुछ मिलने जुलने वालों को भाजपा का सदस्य बनाकर अपने काम को पूरा कर दिया। अब बताइए श्री शाह साहब अधिक मतदान के लिए आपके प्रयास व आवाहन को आज का 21वीं साड़ी का थर्ड पार्ट का कार्यकर्ता व नेता वह काम करेगा जो कभी 20वीं साड़ी का कार्यकर्ता करता था खैर यह कहावत है कि नाई नाई केश कितने की जजमान सामने आ रहे है।
                                       भाजपा तो ठीक कांग्रेस का कार्यकर्ता व नेता भी अब गली मोहल्ले से नारे लगाते हुए गुजर जाएंगे लेकिन मतदान के लिए मतदाताओं को उनके घरों तक पहुंच कर वह मेहनत करते हुए पिछले कुछ चुनावों से नहीं देखा गया। यहां तक की कुछ मतदाताओं ने मतदान नहीं किया तो उन तक पहुंच कर मतदान के लिए प्रेरणा देते हो भी नहीं देखा गया यह बात तो वह मतदाता भी यह पिछले कुछ चुनावों से महसूस करते हैं कि वे मतदान करने नहीं गए तो उन्हें कहने कोई राजनीतिक दल का कार्यकर्ता नहीं आया। आखिर पहले कभी मतदान के लिए मतदाताओं में जागृति भी देखी गई वैसी जागृति अभी बनाने के लिए प्रशासन स्तर से खूब मेहनत हो रही है और इंतजार है अब अधिक से अधिक मतदान का मतदाता जागरूक भी है और उत्साह भी उनमें है वह हर राजनीतिक दल के बड़े नेताओं के भाषण सुन रहे हैं और मन: स्थिति भी वे बना ही रहे होंगे। बस उसे मन: स्थिति को मतदान में परिवर्तित करने के प्रयास के लिए स्वंय मतदाताओं को भी आगे आना होगा। आखिर उन्हें ही तो देश का भविष्य संवारना है।
                                      देश मे एक वह चुनाव होते थे जब झंडे,बिल्ले,बेनर की खूब मांग हुआ करती थी खासकर गांवों में और अब गांव वाले भी समझ गए है कि पुराना युग वापस नही आएगा बल्कि नए परिवेश में नए युग मे चुनाव हो रहे है। शहरी क्षेत्रों से भी जगह जगह जो झंडे बेनर लग जाते थे। दीवारें प्रचार से पट जाती थी वे सब साफ सुथरी है।इतना चुनाव प्रचार में बदलाव आया है तो चुनाव प्रचार के तरीकों में भी बदलाव आया है।
                                  मतदान के कम प्रतिशत की बात गले इसलिए नही उतर रही है कि एक वर्ष से श्री नरेंद्र मोदीजी की उपलब्धियों का प्रचार जन जन ने खूब सुना और अनुमान रहा कि मतदान भी अच्छा होगा लेकिन इसने तो और चिंता बढ़ा दी। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इसलिए खुश नही हो सकती कि बिना परिणाम के कोई कुछ नही कर सकता। हां एक बात जरूर अब यह हो सकती है कि देश में मतदान के प्रति मतदाताओं का कम रुझान क्यो और इस पर बहस हो कर परिणाम भी अमल कर सामने लाए जाना चाहिए।

 

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