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श्रावक के जीवन और आचार का प्रतिपादन करने वाला महत्वपूर्ण ग्रंथ है रत्नकरण्डक श्रावकाचार- शिविर में कराया जा रहा है ग्रंथ का अध्ययन 

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर ३ मई ;अभी तक;  महावीर जिनालय नया मंदिर व सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा 2 से 9 जून तक आयोजित किए जा रहे श्रमण संस्कृति संस्कार शिक्षण शिविर के अन्तर्गत चार कक्षाएं प्रतिदिन संचालित हो रही है जिनमें बच्चे और बड़ों को बाहर से आए विद्वतगण द्वारा विभिन्न विषयों पर शिक्षण प्रदान किया जा रहा है।
                             प्रतिदिन प्रातः सवा आठ व रात्रि आठ बजे कक्षाएं लग रही है। तीन कक्षाएं जीवन विलास में व एक श्रावक श्राविकाओं की कक्षा महावीर जिनालय में लगाई जा रही है जिसमें बाल ब्रह्मचारी भी संजय भैयाजी द्वारा श्रावक के समीचीन आचरण की सर्वाेत्तम कृति रत्नकरण्ड़क श्रावकाचार ग्रंथ की विवेचना की जा रही है।
                               शिक्षण प्रदान करते हुए उन्होंने बताया रत्नकरण्डक श्रावकाचार ग्रंथ श्रावक के जीवन और आचार का प्रतिपादन करने वाला महत्वपूर्ण ग्रंथ है। ग्रंथ में 150 श्लोकों में आचार्य श्री समन्तभद्र स्वामी ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, अणुव्रत, गुणव्रत, शिक्षाव्रत, सल्लेखना एवं प्रतिमा इन सात विषयों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
                          श्री संजयभैयाजी ने कहा जो समस्त प्राणियों को संसार के क्लेशों से मुक्त कराकर उत्तम सुखों की (सिद्धत्व की) प्राप्ति कराता है वही यथार्थपरक धर्म हैं।
भैयाजी द्वारा सम्यग्दर्शन अधिकार के बारे में शिविरार्थियों को ज्ञानार्जन कराया गया। कक्षा प्रारंभ में सामूहिक मंगलाचरण किया गया।
शिविर के क्षेत्रीय संयोजक पं.आनंद शास्त्री ने आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी। शिविरार्थियों की जिज्ञासा का समाधान भी इस अवसर पर किया गया।
यह जानकारी डॉ. चंदा भरत कोठारी ने देते हुए बताया शिविर में भक्तामर स्रोत एवं बाल विकास भाग एक व दो की कक्षाओं में भी विद्वतजनों द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
रात्रि में 9 बजे से प्रतिदिन जीवन विलास में धर्मयात्रा के अन्तर्गत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। श्रीमती चीना व सीमा बड़जात्या द्वारा कार्यक्रम के प्रथम दिवस प्रश्न मंच के पुरस्कार प्रदान किये गये।
शिविरार्थीयों के साथ बड़ी संख्या में समाजजन भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

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