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लोभ ही दुख का कारण है, लोभ को छोड़ों, धर्म केा अपनाओ-साध्वी चंदनाश्रीजी

महावीर अग्रवाल
मन्दसौर ४ अगस्त ;अभी तक;  मानव जीवन में जितने भी दुख है, उनका मूल कारण लोभ ही है। लोभ के कारण हम घर परिवार, धन दौलत के चक्कर में फंसे रहते है। जो लोग लोभ की प्रवृत्ति रखते है वे जीवन भर उससे निकल नहीं पाते है और लोभ में ही अपना जीवन खपा देते है।
                                        उक्त उद्गार प.पू. जैन साध्वी श्री चंदनाश्रीजी म.सा. ने जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन शास्त्री कॉलोनी में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने रविवार को यहां धर्मसभा में कहा कि सीता ने जब स्वर्ण के समान हिरण को देखा तो उसे प्राप्त करने के लिये उसने राम से कहा। राम ने स्वर्ण हिरण के लिये उसका पीछा किया और दूर वन में निकल गये। सीता के इस लोभ के कारण रावण अकेली पाकर सीता का हरण कर लिया। सीता को कई वर्षों तक लंका में रावण की कैद में रहना पड़ा। यह कथानक प्रेरणा देता है कि जीवन में लोभ मत करो। लोभी ही दुख का कारण है। यदि सीता स्वर्णरूपी हिरण की महत्वकांक्षा नहीं करती तो राम व लक्ष्मण उसे अकेला छोड़ वन में नहीं जाते और रावण सीता हरण में सफल नहीं होता। स्वर्ण हिरण के लोभ के कारण सीता केा जीवन भर कष्ट उठाने पड़े। आपने कहा कि ज्ञानीजन लोभ को ही दुख का कारण मानते है और लोभ से दूर रहने की सीख भी देते है। चक्रवति सम्राटों को धन की कोई कमी नहीं होती है लेकिन वे अपना अगला भव सुधारने के लिये राज्य व धन वैभव का त्याग कर देते है। धन के प्रति आसक्ति मनुष्य का अगला भव बिगाड़ देती है। जीवन में यदि आत्मसुख पाना है तो लोभ की प्रवृत्ति छोड़ो और धर्म को अपनाओ। जो धन आपके पास है उसमें संतुष्ट रहने का प्रयास करे। अधिक धन कमाने और प्राप्त करने की लालसा में अपने वर्तमान समय को खराब मत करो। धन की लालसा सुख नहीं केवल दुख देती है। धन के प्रति आसक्ति का त्याग करके ही हम अपने वर्तमान जीवन को सुखी व समृद्ध बना सकते है। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. की अमृतवाणी भी श्रवण की। धर्मसभा मंे बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे।

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