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अनावश्यक हिंसा के पाप से बचना है तो द्रव्य पदार्थों का सीमित उपयोग करने का पंचकाण लो- योगरूचि विजयजी

महावीर अग्रवाल 

 
मन्दसौर ५ अगस्त ;अभी तक;  मनुष्य भव हमें बहुत पुण्य फल के प्रभाव से मिला है इस भव में हम ऐसा पाप कर्म नहीं करे जिसके कारण हमें पशु भव मिले या नरक गति में जाना पड़े। कई बार हम पाप कर्म तो सीमित करते है लेकिन पापकर्म का पंचकाण नहीं होने के कारण हमें अनावश्यक रूप से अन्य पापों का भी भार उठाना पड़ता है, इसलिये जीवन में जरूरी है कि हम अनावश्यक पापकर्म से बचना है तो आवश्यकता से अधिक द्रव्य एवं पदार्थों का उपयोग नहीं करने का पंचकरण ले।
                                  उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने कहे। आपने सोमवार को नईआबादी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में अनावश्यक पदार्थों एवं द्रव्यों का उपयोग नहीं करने के पंचकाण भी कराये। आपने धर्मसभा में कहा कि पूरे जीवन में हम 100 से अधिक प्रकार की सब्जियों व फलों का उपयोग पूरे जीवन काल में नहीं करते है। लेकिन पंचकाण नहीं होने के कारण हमें संसार के सभी फलों व सब्जियों में जो वनस्पति काया के जीव के उनकी हिंसा का पाप हमें लग रहा है। हम जितनी जरूरत है उसके मुताबिक पदार्थों द्रव्य की मात्रा सीमित करें और शेष का उपयोग नहीं करने का पंचकाण ले। जमीकंद सिगरेट बीड़ी तम्बाकू का उपयोग आमतौर पर अधिकांश लोग नहीं करते है उन्हें इनका उपयोग नहीं करने का पंचकाण जरूर लेना चाहिये। मांसाहार शराब के पंचकाण के कारण भी हम अनावश्यक हिंसा के पाप से हम बच सकते है।

 


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