प्रदेश

अब वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गईं बुरहानपुर की 3 ऐतिहासिक धरोहरें

मयंक शर्मा

खंडवां ७अगस्त ;अभी तक ;  मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने बुरहानपुर की 3 ऐतिहासिक धरोहरों को वक्फ बोर्ड से मुक्त कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में रखा है। इन धरोहरों में बिलकिस बेगम का खरबूजा गुंबद, नादिर शाह का मकबरा और बीबी की मस्जिद शामिल हैं। यह धरोहरें अब राष्ट्रीय स्मारक घोषित की गई हैं।

मध्य प्रदेश के सरहदी छोर के मुगलकालीन व अतिप्राचीन शहर बुरहानपुर मुगल और फारुखी शासन काल में बनाई गईं उक्त 3 ऐतिहासिक धरोहरें अब वक्फ बोर्ड की संपत्ति नहीं रह गई हैं।  पिछले दिनों इन तीनों ऐतिहासिक इमारतों पर वक्फ बोर्ड के दावे को उचित न मानते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की मुख्य खंडपीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का संरक्षण नियम के अंतर्गत माना। हाई कोर्ट के निर्णय के बाद अब बुरहानपुर की तीनों ऐतिहासिक इमारतों पर एएसआई का संरक्षण बना रहेगा।

0 खरबूजा गुंबद

                    बिलकिस बेगम का मकबरा बिलकिस बेगम उर्फ बेगम शुजा मुगल बादशाह शाहजहां और बेगम मुमताज की पुत्रवधू और शाह शुजा की पत्नी थीं।बिलकिस बेगम का जन्म अजमेर में हुआ और देहांत 1632 ईस्वी में बुरहानपुर में। मृत्यु के बाद उनकी याद में बुरहनपुर की ताप्ती और उतावली नदी के बीच आजाद नगर के पास यह मकबरा समाधि पर बनाया गया था।इस मकबरे की डिजाइन खरबूजे के आकार की है, जो ईरानी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, इसीलिए इसे खरबूजा गुंबद भी कहा जाता है।करीब 600 वर्गफीट में बने मकबरे अंदर शानदार रंगीन चित्रकारी और नक्काशी की गई है।

0नादिर शाह का मकबरा

                        आजाद नगर के पास ही फारुखी शासक नादिर शाह का मकबरा है। इसमें नादिर और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को दफनाया गया था।इस मकबरा का निर्माण 15वीं शताब्दी में कराया गया था। नादिर ईरानी शासक था। उसने आक्रमण करके भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था।नादिर शाह की मृत्यु के बाद उसे व परिवार के अन्य सदस्यों को बुरहानपुर में दफनाया गया था।यह मकबरा भी अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और राष्ट्रीय स्मारक घोषित है।

0बीबी की मस्जिद

                     बीबी की मस्जिद बुरहानपुर की पहली जामा मस्जिद है।इसका निर्माण फारूक शासनकाल में बादशाह आदिल शाह फारूकी की बेगम रुकैया ने करवाया था।बीबी की मस्जिद अहमदाबाद की जामा मस्जिद की ही एक प्रतिकृति है। मस्जिद के निर्माण में असीरगढ़ की खदानों से लाए गए पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। निर्माण के लिए गुजरात से कारीगरों को लाया गया था। गुजरात की स्थापत्य कला का प्रभाव दिखता है। अपने समय की भव्य इमारतों में शामिल यह मस्जिद मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल में अरबी और फारसी भाषा की शिक्षा का केंद्र भी रही है।

 


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