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भारतीय प्रजातंत्र की कड़वी सच्चाई 

डाक्टर सम्पत स्वरूप जाजू ,
 पूर्व विधायक एव वरिष्ठ कांग्रेस नेता
नीमच
मंदसौर १६५ अगस्त ;अभी तक ;   भारत को स्वतंत्रता मिल गईं लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि आज भी आम नागरिक स्वतंत्र नही हुआ । आज़ादी के बाद भी  देश में एकतंत्र को ही पोषित किया गया । सिद्धांत विचार और चरित्र गौण हो गये . व्यक्तिवादी मानसिकता ने प्रजातंत्र पर अतिक्रमण कर प्रजातंत्र को उसी आठसो वर्षों की मानसिक ग़ुलामी को आगे बढ़ाया जिसके समाप्त करने के लिये आज़ादी क संघर्ष किया .आज तक देश की प्रशासनिक कार्यप्रणाली वही हैं जो ब्रिटिश भारत में थी उस कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नही आया ।
                                           भारतीय प्रजातंत्र में आम आदमी का महत्व केवल चुनाव में वोट देने तक ही सीमित रह गया हैं और चुनावों के माध्यम से भावनाओं का खेल ,खेल कर प्रजातंत्र को एक तंत्र में परिवर्तित करने का कार्य विगत 77 वर्षों में किया हैं । दशकों से देश की चुनाव प्रणाली और प्रशासनिक प्रणाली पर तथ्यात्मक प्रश्न उठाये गये विभिन्न सरकारों ने कई आयोग बनाये आयोगों ने सुधार के लिये कई अनुशंसायें अपनी रिपोर्ट में की लेकिन देश के किसी भी राजनीतिक दल ने उन अनुशंसाओ को स्वीकार कर क्रियान्वयन नही करवाया ।
हर चुनावों में ,राजनीतिक दल सुशासन पारदर्शिता और विकास का मुखोटा लगा कर जनता के बीच जाते हैं लेकिन उन  मुखोटो के अंदर एक छुपाहुआ मुखोटा और होता हैं जिसके लिये ही तथाकथित नेता लोग  मशक़्क़त करते हैं और जनता भ्रमित हो कर अपना समर्थन उनको देती हैं ।
कई प्रश्न है
-आम भारतीय  को लगता हैं क्या कई दशकों  बाद भी भारत  आज़ाद हो गया हैं और लोकतंत्र स्थापित हो गया हैं ?
-क्या आज भी देश आठसो वर्षों की ग़ुलामी वाली मानसिकता से उबर पाया हैं ..?
-क्या देश में वो प्रशासनिक व्यवस्थाएँ हैं जो एक लोकतांत्रिक देश में होना चाहिये ?
-क्या राजनीतिक दलो की और नेताओ की कथनी और करनी एक ही हैं ?
-क्या देश में सुशासन स्थापित हो गया हैं ..?
-क्या प्रशासनिक कार्यशैली में पारदर्शिता हैं ..?
-क्या देश में विभिन्न क्षेत्रों के माफ़ियोंओ पर नियंत्रण हो पाया ?
-क्या देश के  राजनीतिक दलो कीकार्यशैली उनके  सिद्धांत और विचारो के अनुसार हैं ..?
-क्या देश की वीआईपी संस्कृति प्रजातंत्र के अनुसार नियंत्रण में हैं ?
-क्या देश में लोककल्याणकारी योजनाओं का लाभ पात्र लोगों को मिल रहा हैं ?
-कया यह नही लगता हैं कि स्थानीय स्तर से लेकर देश की राजधानी तक देश को तथाकथित गठबंधन ( तथाकथित नेताओ , प्रशासनिक व्यक्तियों और माफ़ियाओ ) चला रहे हैं?
उपरोक्त प्रश्न तो प्रमुख हैं इसके अलावा और भी कई प्रश्न प्रजातांत्रिक भारत के लिये  आम से लेकर ख़ास लोगों के पास होंगे ?
मनन कीजिये की कई दशकों से मिली  की आज़ादी के बाद भी हम कहाँ खड़े हैं ?
प्रजातंत्र या लोकतंत्र के चारस्तम्भ होते हैं जिस पर प्रजातंत्र टिका होता हैं वे हैं
-विधायिका
-कार्यपालिका
-न्यायपालिका
और
-मीडिया( पत्रकारिता )
उपरोक्त चारों स्तम्भ ही सुचारु रूप से प्रजातंत्र की बहुमंजलि इमारत को खड़ा रखते हैं चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ आये या आपदा आये .
चारों में से एक भी स्तम्भ में कोई दरार या टूटफूट होती हैं या कमी होती हैं अथवा उसकी पारदर्शी कार्यशैली में बदलाव होता हैं तो उसका ख़ामियाज़ा  प्रजातंत्र की इमारत को भुगतना निश्चित हैं , और भारत का लोकतंत्र उसको भुगतरहा हैं .
आज़ादी के बाद सेएक एक करके लोकतंत्र के स्तंभों में परिवर्तन होना शुरू हुआ और आज चारों स्तम्भों पर उनकी कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे हैं और आम से लेकर ख़ास लोगों में एक निराशा का भाव उत्पन्न हो गया हैं लोगों का लोकतंत्र के स्तंभों पर से विश्वास और आस्था समाप्त होती जा रही हैं जिसके परिणाम भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिये घातक होंगे और प्रजातंत्र का भविष्य अन्धकारमय होता जा रहा हैं
क्या कई दशकों में उन प्रजातांत्रिक मूल्यों स्थापित कर पाये जिसके लिये आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी ..?
*मनन कीजिये कि  सदियो पुरानी गौरवशाली परंपराओं एवम् भारतीय जीवन को देख कर के संपूर्ण विश्व अचंभित था .उस समय भारत की पहचान  * सोने की चिड़िया के रूप  थी ।
आइये हम सब मिल कर संकल्प ले कि हम सभी आपसी मतभेद भुलाकर  विश्व में पुनः  भारत को शीर्ष स्थान पर खड़ा करने के साथ हमारी पारंपरिक संस्कृति और परंपराओं का विस्तार कर भारत के मूल मंत्र वसुधैव कुटुम्बकम् को विश्व में स्थापित करे ।
*वन्दे मातरम् *
*मैरा भारत महान *

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