प्रदेश

अनावश्यक हिंसा के पाप से बचो-योग रूचि विजयजी

महावीर अग्रवाल 

मन्दसौर २४ अगस्त ;अभी तक ;   मानव जीवन में पुण्य कर्म व पाप कर्म का संचय लगातार चलता रहता है। जीवन में कई बार दैनिक जीवन में हम ऐसे पापकर्म करते है जो कि अनावश्यक होते हैं उन पापकर्म के बिना भी हमारा जीवन चल सकता है लेकिन विवेक नहीं होने तथा धर्म व दर्शन का सही ज्ञान नहीं होेने के कारण हम यह पापकर्म करते रहते है, ऐसे पापकर्म से हमें बचना चाहिये।
                                         उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने नईआबादी आराधना भवन हाल में आयोजित धर्मसभा मे कहे। आपने शनिवार को यहां धर्मसभा में कहा कि मानव जीवन में अनावश्यक अग्नि, अनावश्यक वायु, अनावश्यक जल एवं अनावश्यक वनस्पति काया के जीवों की हिंसा से हमें बचना चाहिये। जितनी जरूरत है उतनी ही अग्नि एवं जल का उपयोग करना चाहिये। विद्युत उपकरण पंखे, ए.सी. आदि का उपयोग भी  कम से कम या अनावश्यक रूप से नहीं करना चाहिये। ऐसा करके हम वायु काय के जीवों की हिंसा के पाप से बच सकते है। जीवन में हमें वनस्पति काया के जीवों की हिंसा से बचने के लिये भी विवेक रखना चाहिये। सब्जी को कई घण्टों पूर्व काटकर नहीं रखे। हरा धनिया का उपयोग अनावश्यक रूप से नहीं करें। पेड़ पौधों को अनावश्यक छटाई करने से भी बचे। हरि घास पर चलने से भी वनस्पति काया के जीवों की विराहना होती होती है। जीवन में इन सभी कार्यों को नहीं करके या कम करके हम जीवन में अनावश्यक पाप से बच सकते है। जैन धर्म व दर्शन के अनुसार अग्नि, वायु, जल, वनस्पति, विद्युत के एकेन्द्री जीव होते है, जो कि हमंे आंखों से दिखाई नहीं देते लेकिन विज्ञान ने भी सिद्ध किया है कि इनमें जीवन होता है। इसलिये इसके उपयोग में विवेक रखे। धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकायें उपस्थित थे। प्रभावना अनिल धींग की ओर से हुई।

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