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खामखेड़ा के पितृ पर्वत पर किया 700 पौधों का रोपण, मनरेगा योजना के तहत किया पौधरोपण

आशुतोष पुरोहित
   खरगोन २  सितम्बर ;अभी तक ;   अखिल विश्व गायत्री परिवार तहसील संगठन द्वारा पर्यावरण को बचाने हेतु ग्राम खामखेड़ा में पितृ पर्वत पर 700 से अधिक पौधों का रोपण किया गया। नीम, आंवला, पीपल,  बिल्वपत्र, शीशम, करंज आदि प्रजाति के पौधे स्थानीय ग्राम पंचायत एवं ग्रामवासियों के सहयोग रोपे गए। पौधारोपण का यह कार्यक्रम गायत्री परिवार के प्रांतीय सह समन्वयक बुरहानपुर निवासी मनोज तिवारी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। पौधारोपण पूर्व हुए संक्षिप्त कार्यक्रम में सभी पौधों को कलावा बांधकर उनका पूजन किया गया। तत्पश्चात तरुमिलन का भाव प्रधान कर्मकांड हुआ। इसके बाद सभी ने मिलकर सामूहिक रूप से पौधारोपण किया।
      तरु रोपण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मनोज तिवारी ने बताया कि नर्मदा एवं ताप्ती सहित मैदानी नदियों के ग्लेशियर ये हरे भरे वृक्ष ही हैं जो इन नदियों को सदा निरा रखते हैं। लेकिन हम हैं कि आधुनिकता की दौड़ में पेड़ों को काटते चले जा रहे हैं। तिवारी ने कहा कि एक अध्ययन के मुताबिक आज प्रतिदिन एक फुटबॉल के मैदान के बराबर जंगल कट रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक पेड़ अपने 100 वर्ष के जीवन में 1 करोड़ 1 लाख का अनुदान देता है। इसलिए पेड़ लगाना आज का युगधर्म होना चाहिए। इसे जन आंदोलन बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने उपस्थित जन समुदाय से अपने जन्मदिन, विवाह दिवस एवं दिवंगत आत्माओं की पुण्य स्मृति में प्रतिवर्ष पौधे लगाकर उन्हें पेड़ बनाने का संकल्प दिलाया।
      ग्राम रूपखेड़ा के अध्यापक रामलाल पटेल ने कहा  कि अग्नि पुराण के अनुसार दस पुत्रों के समान एक वृक्ष लगाने का पुण्य बताया गया है। इसके अतिरिक्त एक पेड़ लगाना एक धर्मशाला बनाने के बराबर है। ग्राम मर्दाना के सालिगराम चौधरी ने उपस्थित जन समुदाय से पौधों के संरक्षण हेतु बढ़ चढ़ कर अंशदान करने की बात कही।
      तरूरोपण कार्यक्रम में ग्राम सरपंच दिनेश लेवा, ग्राम के जनपद उपाध्यक्ष लक्ष्मण पटेल,  सचिव हवशीलाल गोकिलवंशी, जीआरएस गोविंद बिरले, गायत्री परिवार से डाॅ. मोहन बिरले, केशरीलाल पटेल, सुरेश लेवा, भारत पटेल, अमर कर्मा, धर्मेंद्र रांडवा सहित  समस्त ग्रामवासी उपस्थित थे।
      कार्यक्रम का संचालन युवा धर्मेंद्र मुकाती ने किया। संगीत पन्नालाल चौहान ने दिया। तबले पर थाप रामजी पाटीदार ने दी। आभार कालुसिंह सोलंकी ने माना।

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