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क्षणिक सुखों के पीछे मत भागो, आत्मीय सुख पाने का प्रयास करो- साध्वी रमणीककुंवरजी म.सा.

महावीर अग्रवाल
मंदसौर ७ सितम्बर ;अभी तक ;   जीवन में सुख व दुख निरंतर आते जाते रहते है जिसे हम स्थायी सुख समझते है वह वास्तव में भ्रम है जबकि सत्यता यह है कि इस मानव भव में हमें जो सुख मिला है वह क्षणिक है। जीवन में हमें भौतिक सुखों को नहीं बल्कि आत्मीय सुख पाने की चिंता करनी चाहिये और यह आत्मीय सुख भौतिक पदार्थों से नहीं बल्कि हमारे हृदय के अन्तकरण की शुद्धि से मिलेगा इसलिये जीवन में भौतिक सूखों की नही आत्मीय सुख पाने की चेष्ठा करो।
                                                 उक्त उद्गार प.पू. जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने नईआबादी शास्त्री कॉलोी स्थित धर्मसभा में कहे। आपने शनिवार को पर्युषण पर्व के सप्तम दिवस धर्मसभा में कहा कि जिस प्रकार कस्तुरी मृग (हिरण) अपनी नाभी में कस्तुरी होने का ज्ञान नहीं होने के कारण पूरे जंगल में कस्तुरी की तलाश में भटकती रहती है उसी प्रकार मानव क्षणिक सुखों के लिये भटकता रहता है। गाड़ी, बंगला, नौकर चाकर घर परिवार ये सब क्षणिक सुख दे सकत है आत्मीय सुख नहीं। आत्मीय सुख परिग्रह से नहीं अपरिग्रह से मिलेगा अर्थात धर्म आराधना, तप तपस्या, दान पुण्य के मार्ग पर चले तो हमें आत्मीय सुख मिल सकता है। सुख हमारे अन्तःकरण में है और हम उसे बाहर ढूंढ रहे है। सुख शरीर की विषय वस्तु नहीं मन व आत्मा की विषय वस्तु है। इसलिये सुख पाने के लिये वे कर्म करो जो आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करे।
दोष रहित पोषण करे- साध्वीजी ने संवत्सरी पर्व के एक दिन पूर्व पोषध तप की महत्ता बताते हुए कहा कि श्रावक श्राविकाओं को 24 घंटे का परिपूर्ण पोषध करना चाहिये। इस दौरान घर परिवार, व्यापार की चिंता छोड़े अपना पूरा ध्यान स्वाध्याय, सामायिक, प्रतिक्रमण में ही लगाना चाहिये। ज्ञानीजनों  ने पोषध के पूर्व के 6 एवं बाद के 18 दोष बताये है। हमें उससे बचना चाहिये। पोषध के पूर्व (एक दिन पहले) अधिक आहार, अधिक श्रृंगार से बचना चाहिये। पोषध के बाद निंदा करने एवं स्वयं की प्रशंसा से बचना चाहिये। यदि हम 24 घण्टे का दोष रहित पोषध करते है तो हमारा हजारों वर्षों का नरक आयुष समाप्त हो जाता है तथा देवगति मिलती है।
धर्मसभा में साध्वजी श्री चंदनाश्रीजी म.सा. ने भी अपने विचार रखे। साध्वी श्री लाभोदया व साध्वी श्री जिज्ञासा जी के द्वारा अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया। धर्मसभा में श्री शांत क्रांति जैन महिला मण्डल, जैन दिवाकर महिला मण्डल, जैन दिवाकर नईआबादी, जैन दिवाकर बहुमण्डल के द्वारा स्तवन (गीत) प्रस्तुत किये। प्रभावना संजय, शलभ, सिद्धार्थ नाहर परिवार के द्वारा वितरित की।

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