प्रदेश

आज भी आदिवासी नाबालिग बच्चे लकड़ी बेंचकर करते है जीवन यापन, दस किलोमीटर दूर से लेकर आते है लकड़ी

दीपक शर्मा

पन्ना १५ सितम्बर ;अभी तक ;  प्रदेश की सरकार तथा केन्द्र की सरकार द्वारा अम्रतकाल तथा विकसित भारत की बात की जा रही है, एवं भारत बदल रहा है का नारा लगाये जा रहे है। वंदे भारत ट्रेन, शोसल साईनिंग से खुब बाहबाही लूटी जा रही है तथा ट्रेन, शोसल साईनिंग से खुब बाहबाही लूटी जा रही है तथा हजारो योजनाए देश में आम लोगो के नाम पर चलाई जा रही है, लेकिन उक्त योजनाओं का लाभ आम लोगो को कितना मिल रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बुन्देलखंड के पन्ना जिले के आदिवासी बहुल्य ग्रामो में आज भी आदिवासीयों तथा अनके बच्चो को दस किलोमीटर दूर लकड़ी बेंचने के बाद भोजन नसीब होता है। जबकी आदिवासीयें के नाम पर अनेक योजनाए चलाई जा रही है।

प्रदेश में एक दर्जन सांसद तथा आधे से अधिक विधायक आदिवासी वर्ग से निर्वाचित होते है। लेकिन उसके बावजूद आदिवासी वर्ग की दशा मे कोई सुधार नही है। जहां एक ओर मूल भूत सुविधाए आदिवासी ग्रामो में नहीं पंहुचे है शिक्षा, स्वास्थ, सड़क, बिजली, पानी की किल्लत है, गंदा पानी पीकर बीमार हो रहे है। स्वास्थ सुविधाए लेने के लिए तथा ईलाज कराने के लिए दूर दराज जाना पड़ता है, सड़के नही है, जिसका उदाहरण विगत दिवस देखने को मिला जब पवई विधानसभा क्षेत्र के ग्राम बराहो की एक महिला की मोत हो गई तथा उसके शव को डोली में लेकर चार लोगो ने गांव तक पंहुचाया। इसी प्रकार उसी आदिवासी बहुल्य क्षेत्र कल्दा पठार के भोपार ग्राम की जनकरानी को भी अमदरा मैहर स्वास्थ केन्द्र ले जाने के लिए डोली का सहारा लेना पड़ा, दुरस्थ क्षेत्र की तो बात ही अलग है, पन्ना जिला मुख्यालय से लगे आदिवासी बहुल्य ग्रामो के आदिवासी बच्चो के शहर में लकड़ी बेचने आना पड़ता है, जब वह लकड़ी बेचते है तब उनको भोजन नसीब होता है। जबकी विभिन्न विभागो से अनेक योजनाए आदिवासी वर्ग के लिए संचालित की जा रही है। लेकिन उक्त योजनाओं का लाभ गरीब आदिवासीयों को नही मिल रहा है। क्षेत्र के सांसद, विधायक सिर्फ चुनाव के समय ही वोट लेने उक्त ग्रामो में जाते है, उसके बाद कभी भी आदिवासी ग्रामो की सुध नही करते है।

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