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उत्कृष्ट भावना से दिया गया दान ही श्रेष्ठ है- साध्वी श्री रमणीककुंवरजी

महावीर अग्रवाल 
मंदसौर १७ सितम्बर ;अभी तक ;   मनुष्य को कभी भी दान देने में संकोच नहीं करना चाहिए। उत्कृष्ट भावना से दिया गया दान श्रेष्ठ माना गया है जो भी मनुष्य श्रेष्ठ भावना से दान देता है। उसका अगला भव अवश्य ही सुधर जाता है। इसलिये जीवन में श्रेष्ठ भावना से दान दे।
                                         उक्त उद्गार प.पू. जैन साध्वी श्री रमणीककुंवरजी म.सा. ने कहे। आपने मंगलवार को धर्मसभा में दान की महत्ता बताते हुए नईआबादी शास्त्री कॉलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में कहा कि दान देने वाले व लेने वाले दोनों की भावना श्रेष्ठ होनी चाहिये। दान की अनुमोदना करने वाला प्राणी भी श्रेष्ठ गति पाता है। जीवन में कोई भी व्यक्ति दान पुण्य कर रहा हो तो अनावश्यक रूप से उसकी निंदा मत करो। अपने बल भद्रमुनिजी म.सा. जो कि अधिकांश समय वन में रहकर तप तपस्या करते थे उनका वृतांत बताते हुए कहा कि उन्हें दान देने वाले तथा उनकी अनुमोदना करने वाले सभी देवगति में गई क्योंकि दान देने वाले, लेने वाले तथा अनुमोदना करने वाले तीनों की भावना उत्कृष्ट थी हमें भी जीवन में उत्कृष्ट भावना से दान देना चाहिये और यदि दान नहीं भी दे सको तो कोई बात नहीं उस दान की अनुमोदना अवश्य करना चाहिये। धर्मसभा में साध्वी चंदनाश्रीजी म.सा. ने भी अपने विचार रखे। संचालन पवन जैन ने किया।

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