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श्री प्रेमप्रकाश आश्रम में महर्षि सतगुरू स्वामी सर्वानन्द महाराज का 128वां जन्मोत्सव श्रद्धा के साथ मनाया गया

महावीर अग्रवाल 

मंदसौर १७ अक्टूबर ;अभी तक ;   सिन्धी हिन्दू समाज की प्रमुख धर्मपीठ श्री प्रेमप्रकाश पंथ की द्वितीय बादशाही सतगुरू स्वामी सर्वानन्दजी महाराज का पावन 128वां जन्मोत्सव पंथ की मंदसौर शाखा श्री प्रेमप्रकाश आश्रम में संत श्री शंभूलाल प्रेमप्रकाशी के सानिध्य में 51 दीपों की आरती, केक प्रसाद, सत्संग प्रवचनों एवं बधाई गीतों के साथ मनाया गया।
                                           इस आशय की जानकारी श्री प्रेमप्रकाश सेवा मण्डली के अध्यक्ष पुरूषोत्तम शिवानी ने देते हुए बताया कि स्वामी सर्वानन्द महाराज का पावन जन्मोत्सव सनातन हिन्दू पंचाग की गणना अनुसार शरद पूर्णिमा के पावन दिवस ही आता है। शिवानी ने बताया कि इस अवसर पर संतश्री शंभूलालजी ने अपने मुखारविन्द से उपस्थित संगत को अपनी अमृतमयी वाणी में बतलाया कि स्वामी का जन्म 1897 में अविभाजित हिन्दुस्तान के भीटशाह नाम के छोटे से कस्बे में माता ईश्वरीदेवी पिता सेवकराम के यहां अवतार हुआ था। आचार्य टेऊँरामजी महाराज अवतार रूप थे उन्हीं की दुरदृष्टी थी कि स्वामी जी को 15 वर्ष की उम्र में ही देवभूमि हरिद्वार में तप तपस्या हेतु देशाटन हेतु भेजा इसलिये आज जो श्री प्रेमप्रकाश पंथ का वट वृक्ष है वो वह स्वामी सर्वानन्दजी महाराज की देन है। स्वामीजी ने सदैव आचार्य टेऊँरामजी की आज्ञा को ही सर्वोपरी माना। आपश्री ने पावन शरद पूर्णिमा के महातम को सविस्तार समझाते हुए बताया कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है। उसकी रोशनी में खीर प्रसाद अमृत औषधि का काम करती है जो सर्वरोग निदान होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रिय गोपियों को प्रसन्न करने हेतु रात्रि को महारास किया था। कहते है कि वह महारास की रात्रि की अवधि 6 मास (महिने) की थी। जिसमें चन्द्रमा के प्रकाश ही रहा, सूरज भगवान के दर्शन ही नहीं हुए।
सुख, समृद्ध, अमन चैन एवं शांति का ‘‘पल्लव’’ अरदास कर जन्मोत्सव धार्मिक नृत्य, उमंग व उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। आभार प्रदर्शन श्रीमती पुष्पा पमनानी एवं श्रीमती देवकी कोठारी ने माना।

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