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जाजम वही है लेकिन क्या नेताओं के विचार हो गए बौने, करोड़ो की पेयजल योजनाएं हो गई फैल ,सड़के टूटी पड़ी है लेकिन जनता उन नेताओं को ढूढ़ रही है जो कम से कम बोले तो सही

( महावीर अग्रवाल )
मंदसौर २६ नवंबर ;अभी तक ;   जी हां जाजम वही है । कांग्रेस हो या भाजपा लेकिन जाजम पर बैठने वाले नेता क्या छोटे रह गए या विचारों में बोने रह गए। वे नेता भी इस इसी जिले से रहे हैं जिनकी एक आवाज से जिला क्या पूरा संसदीय क्षेत्र गूंजायमन हो जाया करता था ।क्या कद घटना गया और विचार में अंतर होते गए लेकिन वह चुनाव तो जीतते गए और बड़े-बड़े पद सुशोभित करते गए या करते जा रहे हैं तो क्या उनके खास शुभचिंतक बने चंदकार्यकर्ताओं की सोच वह दूर दृष्टि बस कमाउ पूत की तरह बनकर रह गई है क्योंकि जनता चाहे जिसे चुनाव में जीताए उनका प्रभुत्व उनके काम काजो की सफलता पर तो आंच नहीं आने देता है। मंदसौर संसदीय क्षेत्र में वैसे तो प्रमुख रूप से भाजपा और कांग्रेस का ही बोलबाला रहा है लेकिन इस क्षेत्र में बहुत ही प्रभावी समाजवादी ,कम्युनिस्ट, हिंदू महासभा ,शिवसेना का भी जल जल रहा है। समय के साथ जहां बीजेपी कांग्रेस के प्रभावी नेता जो एक हूंकार में संसदीय क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को झकझोर देते थे ।वह अब दोनों दलों में एसे कार्यकर्ताओं की कमी महसूस करते हैं तो दोनों दलों के हाई कमान को ही मालूम होगा।
                                        एक समय था जब विपक्ष का किसी मुद्दे को लेकर प्रभावी विरोध हुआ करता था। समस्याओं को वह मुखरता से उठाते थे। सत्ता पक्ष के भी प्रभावी नेता समस्या, विकास के कामों के प्रति जागरूक हुआ करते थे। आज सबसे बड़ी समस्या तो विपक्ष को लेकर खड़ी हो गई है ।एक समय था जब गांधी सागर बांध के बनने के समय या रासायनिक खाद को लेकर विपक्ष मुखर हुआ करता था। सत्ता पक्ष कांग्रेस के नेता ऐसे मजबूत राजनीतिक धरातल वह मजबूत विचारों के थे कि वह विपक्ष को हल्के में नहीं लेते थे ।ज्यादा समय नहीं बीता है राजनीतिक जमीन वही है ।जाजम वही है लेकिन क्या हो गया कि ऊंचे से ऊंचे पदों पर बैठे नेता यह भूल जाते हैं कि चुनाव वेनहीं जीते हैं बल्कि उनके नेतृत्व की प्रभावी हुंकार यहां तक पहुंच रही है। कांग्रेस व भाजपा के नेताओं का एक समय वह था जब उनके इर्दगिर्द कार्यकर्ता भी अपना प्रभाव ही नहीं रखते थे बल्कि वह शब्दों व योजनाओं के भी माहिर थे । अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। सुंदरलाल पटवा या डॉक्टर लक्ष्मी नारायण पांडे जैसे नेताओं का प्रभावशाली व्यक्तित्व हर कार्यकर्ता के चेहरे पर खुशी ला देता था ।पटवा जी जहां प्रदेश ही नहीं देश में जाने पहचाने नेता के रूप में स्थान रखते थे । वीरेंद्र कुमार सकलेचा का शासन प्रदेश में छाप छोड गया। वही डॉक्टर पांडे संसदीय क्षेत्र के गांव गांव तक उनकी अपनी कार्य शैली को लेकर लोकप्रिय थे। यही स्थिति कांग्रेस के भंवरलाल नाहटा हो या सीताराम जाजु का नेतृत्व कार्यकर्ताओं को ऊर्जा से लबरेज रखता रहा है। नारायण हुपेले कांग्रेस के ऐसे नेता रहे जिनकी कार्यकर्ताओं पर छाप रही है । पुराने नेताओं में एक कैलाश चावला है जिनका प्रभावी नेतृत्व आज भी कार्यकर्ताओं को हिम्मत प्रदान करता है परंतु बीजेपी ने उनको जो राजनीति की बागडोर सौपना थी उसके बजाय वह उनसे खुश है जिनके हाथों में रेशम की डोर मानी जाती है। हो भी क्यों नहीं उन्हें देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जैसा नेता मिल गया जो हर चुनाव में जीत की दुदंभी भी बजा देते है और यहां नेता की सोच ऐसी है कि उन्होंने चुनावी मैदान जीत लिया हो। खैर यह बीजेपी हाई कमान के चिंतन का विषय है जो शायद यह भी देख रहा होगा कि कहां कितना भ्रष्टाचार फैल गया है और कहां लकीर के फकीर बने हैं।
                                    एक लाइन मे मैं यह कहूं कि कांग्रेस ने दूसरी पंक्ति के नेता के रूप में श्री सुभाष सोजतिया और और नरेंद्र नाटक जैसे नेता दिए हैं लेकिन इनकी कार्यशाली और लोकप्रिय की समीक्षा कार्यकर्ताओं के पास है। कांग्रेस की वर्तमान में दयनीय दशा को लेकर कांग्रेस के ही एक महत्वपूर्ण पद पर बैठे नेता से जब कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर चर्चा हो रही थी तो उनका कहना था कि विधायक ही जब भाजपा की गोद में बैठ गया हो तो अब किससे क्या उम्मीद करें ।अब क्या सही है और क्या गलत यह कांग्रेस संगठन ही जाने।
                                  भाजपा कांग्रेस हाई कमान की मनमानी की एक नीति भी इस क्षेत्र में यह चर्चा में रही है कि एक तो दूसरी पीढ़ी के युवाओं को उभारने के लिए मौका देने में देरी करना और दूसरा यह की उपयुक्त व्यक्ति को आगे लाना , जो कार्य करता है, वह जनता का विश्वास जीत सके और जो विकास की योजनाओं को बनाने में माहिर हो और फिर उन्हें धरातल पर उतार सके । में कैलाशनाथ काटजु के गांधीसागर बांध की योजना को लेकर चर्चा करें तो उस समय जो चर्चा थी वह कोई कम बड़ी नहीं थी ।यहां तक पंडित जवाहरलाल नेहरू ने गांधी सागर में काटजू को कहा था कि काटजू यहां कहां ले आए तुम। गांधी सागर बांध की योजना तो है लेकिन उल्लेख करना नहीं चाहता। दाहोद गोधरा रेल लाइन हो या चंबल से मन्दसौर जिले की कृषि भूमि में  1 फीट पानी सिंचाई के लिए लेने जैसी योजना की बात करने वाले नेताओं की नहीं परंतु आज के नेताओं की तो किसी एक योजना की बात करने के लिए सूर्य को दीपक दिखाने के समान योजनाएं ढूंढना पड़ेगी और तो ठीक नयागांव लेबड तक कि फोरलेन सड़क को ही देख लो , कई बार कई जगह से सड़क टूट रही ,कई जगह से तकनीकी टूटी के कारण दुर्घटनाएं हो रही विधायक दल ने भी जांच रिपोर्ट दे दी लेकिन कौन पहल करें और तो ठीक गलत जगह टोल टैक्स बैरियर लगा दिया गया लेकिन किसकी हिम्मत बोले। आज तक बात करने की। यह तो एक छोटा सा मामला है।
                                      अब प्रमुख कांग्रेस की स्थिति मंदसौर को लेकर ही देखो क्या किसकी जवान पर नहीं है। नगर की टूटी सड़कों पर चलकर नागरिक वोट दे आए लेकिन कांग्रेस का कोई नेता नहीं बोला । नगर को दोनों समय नलों से पर्याप्त जल उपलब्ध कराने के लिए लगभग 100 करोड रुपए की लागत के कलाभाटा बांध व चंबल से पानी लाने की योजनाएं असफल हो गई लेकिन किसी नेता की बोलने की  हिम्मत नहीं । कई कॉलोनी की बारीकी से जांच की जाए तो कई  में गरीबों के भूखंड तो कहीं सरकारी जमीन तो, कहीं नाली पेयजल की समस्या को लेकर लोग परेशान है। कोई जांच नहीं। सब कुछ भ्रष्टाचार में डुबकी लगाई बैठे हैं ।शहर ने जिला स्तर के अधिकांश सरकारी दफ्तर यंत्र तंत्र बिखरे पड़े हैं। उनके हाल क्या है शायद वल्लभ भवन भी नहीं जानता होगा। जाने कितने ही रिश्वतखोर पकड़े गए लेकिन न कॉलोनीयो की जांच हो रही है और नही रिश्वतखोरी पर अंकुश लग पा रहा है। सरकारी दफ्तर सही चले इस और किसी का ध्यान नहीं है। कृषि प्रधान जिला होने के बावजूद योजनाबद्ध तरीके से कोई कदम सामने नहीं है। यह सब क्या सुशासन के बानगी है। कुछ शिक्षण संस्थाओं का अता-पता नहीं है। लेकिन भ्रष्टाचार की क्या पो बारह है ।प्रधानमंत्री जी आपके उच्च शिक्षा विभाग हो या अन्य विभाग उन पर जरा शिकंजा तो कसो वरना आपके प्रति जनता का जब तक आकर्षण है तब तक ठीक वरना तो भाजपा की वैतरणी कौन कैसे पार लगा पाएगा समय पर पता चल सकेगा।

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