आनंद ताम्रकार
बालाधाट ११ जून ;अभी तक ; जिले के तिरोड़ी गांव में निवासरत 85 वर्शीय वांग छी पिछले 60 सालों से भी अधिक समय से रह रहे है लेकिन उन्हें 6 मई को मिले नोटिस में वीजा की समय सीमा समाप्त होने की जानकारी प्राप्त हुई है।
इस नोटिस मिलने के बाद उनकी चिंता बढ़ गई है इस लिये की उन्होने 60 साल का जीवन गुजारा इस दौरान उनकी पत्नी और बच्चे भी है ऐसी स्थिति में उनके सामने समस्या इस बात की खडी हो गई है की अब वो क्या करें। या तो वीजा का रिनिवल करवायें या भारत छोडे़।
वांग छी की पारिवारिक और आर्थिक स्थिति बेहतर नही है उनका एक बेटा विश्णु एक नीजि संस्थान में नौकरी कर रहा है जहां उसे लगभग 15 हजार रूपये वेतन मिलता है इसी वेतन से परिवार की गुजर बसर हो रही है।
विष्णु ने चर्चा के दौरान यह बताया की सरकारी अधिकारी उनसे जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिये इस बात का प्रमाण चाहते है की वे कहा के निवासी है और उनकी जाति क्या है जब उसने बताया की उनके पिता चीन के नागरिक है तो अधिकारियों द्वारा बोला गया की चीन जाकर लिखित रूप में जानकारी लाओ की आपके पिता की जाति क्या है। इस प्रकार उनके सामने अनेक प्रकार की कठिनाइयां सामने आ रही है।
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री नगेन्द्र सिंह ने इस संबंध में कहा की अगर वीजा की अवधि में नवीनीकरण नही किया जायेगा तो विदेशी अधिनियम के तहत वे कार्यवाही के दायरे में आयेगें।
वरिश्ठ प्रषासनिक अधिकारियों की माने तो उन्होने ने स्पश्ट किया की कानूनी अडचनों के कारण उनका जाति प्रमाण पत्र नही बन सकता लेकिन उन्हें अन्य माध्यमों से परिवार की मदद की जा सकती है।
यह उल्लेखनीय है की वांग छी चीनी सैनिक थे वे 1962 में भारत चीन युद्ध के दरम्यिान भटकर भारतीय सीमा में आ गये थे उन्होने रेडक्रास से गांडी की मदद मांगी लेकिन उन्हें भारतीय सेना को सौंप दिया गया और उन्होने 6 साल तक अलग अलग जेलों में रहना पड़ा।
1969 में चडीगढ़ हाईकोर्ट से जेल से रिहा करने का आदेष पारित किया लेकिन चीन लौटने की अनुमति नही थी वे एनकेन प्रकारेन बालाघाट जिले के तिरोडी गांव में आकर बस गये।
इस बीच चंडीगढ से तिरोडी तक का 1500-1600 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा।
वे यहां राजबहादुर के नाम से जीवन का सफर षुरू किया षने षने वे तिरोडी में आम लोगों में धूल मिलकर रहने लगे उन्होने तिरोडी की आट्ा चक्की में नौकरी करी और बाद में छोटी सी किराना की दुकान खोली आटा चक्की के मालिक ने जो उन्हें अपने बेटे से ज्यादा प्यार करते थे उन्ही ने उनका नाम राजबहादुर रख दिया।
उन्होने 1974 में तिरोड़ी की ही सुषीला नामक महिला से विवाह कर लिया वे अब पूरे गांव के जीजा कहलाने लगे।
उन्होने चीन जाकर अपने परिवार और मां से मिलने की इच्छा 2013 में पूरी हुई और चीन की सरकार ने वांग छी को अपना नागरिक मानते हुये उन्हें पासपोर्ट भी जारी कर दिया।
पासपोर्ट रहने के बावजूद उन्हें 2017 में चीन जाने का अवसर मिला और परिवारजनों से मुलाकात की वहां जाकर पता चला की उनकी मां स्वर्गवासी हो चुकी है।
मां की याद करते हुये रूँधे गले से वे कहते है मेरी बदकिस्मती है की मैं मां से उनके अंतिम समय में नहीं मिल पाया। गांव वालों ने बताया की उनकी मां उसकी याद में अकसर रोती रहती थी।
परिवार से मिलने के बाद जब वे वापस आये तो कुछ समय बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया।
6 मई को मिले नोटिस में उनकी जिंदगी में एक नया तुफान खड़ा कर दिया की अब वे क्या करें ना तो वे भारत में हमेषा के लिये रह सकते है ना ही चीन लौट सकते है।
वांग छी के परिवार में उनके नाती पोते और उनका लड़का षामिल है।
85 साल के उम्रदराज राजबहादुर के सामने अजीबों गरीब संकट पैदा हो गया है वे मजबूर हैं की वे ना तो चीन जा सकते ना भारत में रह सकते
आखिर अब वे क्या करें। उनकी समस्या का हल कैसे होगा कौन करेगा।


