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अंतरिक्ष में सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा बनाकर ISRO ने रचा एक और इतिहास, नहीं होगा कोई हानिकारक उत्सर्जन

सफलता के आकाश पर नित नई ऊंचाई तय कर रहे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक और ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की है। शुक्रवार को इसरो ने देश के साथ इस सफलता को साझा करते हुए बताया कि उसे पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-3 यानी पीओईएम-3 पर 100 वाट श्रेणी की पालीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन फ्यूल सेल आधारित ऊर्जा प्रणाली के परीक्षण में सफलता मिली है।

चंद्रयान-3, आदित्य एल-1 और ब्लैक होल्स के अध्ययन के लिए एक्सपोसैट अभियान के सफल प्रक्षेपण के बाद इसरो ने अंतरिक्ष में फ्यूल सेल आधारित नई सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन प्रणाली का सफल परीक्षण किया है।

शुक्रवार को इसरो ने देश के साथ इस सफलता को साझा करते हुए बताया कि उसे पीएसएलवी आर्बिटल एक्सपेरिमेंटल माड्यूल-3 यानी पीओईएम-3 पर 100 वाट श्रेणी की पालीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन फ्यूल सेल आधारित ऊर्जा प्रणाली के परीक्षण में सफलता मिली है। भविष्य में अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने की भारत की योजना के लिए यह सफलता अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस तकनीक से वहां बिजली, पानी और उष्मा तीनों अहम आवश्यकताएं एक ही प्रणाली के माध्यम से पूरी की जा सकेंगी।

क्षमता अधिक, लागत कम

बकौल पीटीआई, यह नई फ्यूल सेल तकनीक की क्षमता अधिक है और अंतरिक्ष अभियानों में अभी प्रयोग हो रही तकनीक की तुलना में इसकी लागत भी कम है। अंतरिक्ष के वातावरण में पालीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन फ्यूल सेल के परीक्षण के लिए एक जनवरी को पीएसएलवी से इस नई प्रणाली को लांच किया गया था। वहां फ्यूल सेल ने एक बैटरी के रूप में पीओईएम-3 के एक पेलोड को सफलतापूर्वक ऊर्जा प्रदान की। परीक्षण के दौरान कक्षा में वोल्टेज, करंट और तापमान टेलीमीटरी की मदद से मापा गया जो अपेक्षानुरूप रहे। उड़ान के दौरान ऊर्जा प्रणाली ने 15 कक्षाओं में 21 घंटे तक काम किया।

बहुआयामी क्षमता से बेहद कारगर

इसरो के अनुसार, अंतरिक्ष अभियानों को पूर्ण दक्षता के साथ शक्ति प्रदान करने और इस प्रक्रिया में केवल जल के उत्सर्जन वाली पालीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन फ्यूल सेल तकनीक अंतरिक्ष में प्रस्तावित मानव बस्तियों में ऊर्जा उत्पादन का भविष्य मानी जा रही है। अंतरिक्ष अभियानों में इसकी बहुआयामी क्षमता बेहद कारगर साबित हो सकती है।

सस्ता और आसानी से उपलब्ध हार्डवेयर

बकौल पीटीआई, एनोड के तौर पर ग्रेफाइट का प्रयोग करने वाले लीथियम-आयन सेल की तुलना में नई तकनीक के फ्यूल सेल सिलिकान-ग्रेफाइट को एनोड के तौर पर प्रयोग करते हैं। इससे सेल का ऊर्जा घनत्व बेहतर हो जाता है। पदार्थ में बदलाव के साथ यह तकनीक आसानी से उपलब्ध हार्डवेयर और ऐसी डिजाइन का प्रयोग करती है जिनकी लागत कम है

तकनीकी पहलू की बात करें तो सिलिकान वाले सेल का ऊर्जा घनत्व 190 वाटआवर प्रति किग्रा होता है, जबकि लीथियम-आयन सेल में यह 157 वाटआवर प्रतिकिग्रा होता है।

इलेक्ट्रोकेमिकल के सिद्धांत पर आधारित

इसरो ने कहा है कि हाइड्रोजन फ्यूल सेल सीधे हाइड्रोजन व आक्सीजन और शुद्ध जल तथा उष्मा की मदद से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह बैटरी की तरह इलेक्ट्रोकेमिकल के सिद्धांतों पर आधारित एक विद्युत उत्पन्न करने वाला जेनरेटर है, जबकि पारंपरिक जेनरेटर में कंबशन (ईंधन का जलना) से बिजली बनती है। बिना किसी मध्यवर्ती चरण के सीधे फ्यूल से ऊर्जा बनाने के कारण यह तकनीक काफी क्षमतावान है। इस पूरी प्रक्रिया में अवशेष के रूप में केवल जल निकलने से यह पूरी तरह से उत्सर्जन मुक्त है।

इसरो के अनुसार, तकनीक के यही गुण इसे मानव को ले जाने वाले अंतरिक्ष अभियानों के लिए बेहद कारगर बनाती है।

डाटा एकत्र करना था प्रमुख उद्देश्य

इसरो के अनुसार, इस अहम प्रयोग का प्रमुख उद्देश्य भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए ऊर्जा प्रणालियों के निर्माण में मदद करने वाला डाटा एकत्र करना था। पीओईएम-3 पर अल्पअवधि के परीक्षण में नई प्रणाली ने उच्च दबाव में रखी गई हाइड्रोजन और आक्सीजन के प्रयोग से 180 वाट ऊर्जा का उत्पादन किया। किसी भी अभियान या अंतरिक्ष यान में नई तकनीक के प्रयोग से पहले इसरो का प्रमुख केंद्र विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर उसे छोटे पेलोड के माध्यम से कड़े मापदंडों पर परखता है। पीओईएम-3 पर अंतरक्षि के अति कठिन वातावरण में नई ऊर्जा तकनीक ने सुरक्षित रहते हुए बेहतर प्रदर्शन किया है।

धरती पर प्रदूषणमुक्त परिवहन की भी बढ़ी आस

पालीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन फ्यूल सेल के परीक्षण में इसरो की यह सफलता इस मायने में भी बेहद अहम है कि इस तकनीक का प्रयोग धरती पर चल रहे वाहनों में ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकेगा।

इसरो के अनुसार, यह तकनीक फिलहाल प्रयोग किए जा रहे वाहनों के इंजनों के बराबर ही रेंज और रिचार्ज क्षमता प्रदर्शित कर सकती है। जिससे यह बैटरी की तुलना में बेहतर होगी और प्रदूषणमुक्त परिवहन की उम्मीद को प्रबल करती है। इसरो ने कहा कि यह तकनीक अंतरिक्ष और धरती दोनों पर उपयोगी होगी।

 

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