81 के अमिताभ बच्चन पर 1750 करोड़ का दांव:दिल टूटने पर नौकरी ढूंढने मुंबई पहुंचे, लोग कहते थे- तुम्हारी आवाज सुनकर लोग डर जाएंगे
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन आज 81 साल के हो चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी अमिताभ के पास 5 बड़ी फिल्में हैं, जिनके जरिए उन पर करीब 1750 करोड़ का दांव लगा है। इतना दांव इस समय तक शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान और रजनीकांत पर भी नहीं लगा है।
81 साल के बिग बी सिर्फ 25% लिवर पर ही जिंदा हैं, उनका 75% लिवर खराब है। कुली के सेट पर हुए हादसे के बाद डॉक्टर्स क्लिनिकली मरा हुआ घोषित कर चुके हैं। अमिताभ की भारत में बीते 50 सालों में इतनी तगड़ी फैन-फॉलोइंग है कि उनके अस्पताल पहुंचते ही मंदिरों में भीड़ बढ़ जाती है और देशभर में हवन होने लगते हैं।
हालांकि, ये मुकाम हासिल करना उनके लिए आसान नहीं रहा। पहली अधूरी मोहब्बत से हारकर जब अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में आना चाहा तो लोगों ने उनकी सांवली रंगत, भारी आवाज और ऊंचे कद का जमकर मजाक उड़ाया। ये बात भी सच है कि इन्हीं 3 खूबियों के साथ वो महानायक बने।
उम्र के इस पड़ाव में भी सबसे ज्यादा फिल्में देते हैं अमिताभ
80 के दशक के ज्यादातर स्टार्स धर्मेंद्र, जीतेंद्र जैसे सभी सितारों की चमक फीकी पड़ गई, लेकिन अमिताभ की चमक आज भी बरकरार है।
अमिताभ बच्चन 2022 में 5 फिल्मों झुंड, रनवे 24, ब्रह्मास्त्र, ऊंचाई, गुड बाय में नजर आए। इसके साथ उन्होंने गुजराती फिल्म ‘फकत महिला माटे’ में काम किया, आर. बाल्की की फिल्म चुप में कैमियो किया और प्रभास की फिल्म राधे-श्याम के नैरेटर बने। 2010 से अब तक 13 सालों में ही अमिताभ बच्चन ने कैरेक्टर रोल, लीड रोल और कैमियो समेत 52 फिल्मों में काम किया है। इनमें बुड्ढा होगा तेरा बाप, गुलाबो-सिताबो और झुंड जैसी फिल्में शामिल हैं, जिनकी कमान अकेले अमिताभ ने संभाली थी।
राजीव गांधी और संजय गांधी के साथ खेलकर बीता बचपन
दूसरे विश्व युद्ध और आजादी की लड़ाई के दौर में 11 अक्टूबर 1942 को अमिताभ बच्चन का जन्म उस जमाने के मशहूर लेखक हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन के घर हुआ। पिता ने उनका नाम इंकलाब रखा, जिसका अर्थ था- क्रांति, बदलाव। लेखकों का हरिवंशराय बच्चन के घर में आना-जाना था।
एक दिन मशहूर राइटर सुमित्रानंदन पंत उनके घर नवजात बच्चे को देखने पहुंचे। जब उन्हें पता चला कि हरिवंश राय बच्चन ने बेटे का नाम इंकलाब रखा है तो उन्होंने नाम बदलकर अमिताभ करवा दिया। अमिताभ का अर्थ है- अत्यंत तेजस्वी या गुणवान। अमिताभ का असली सरनेम श्रीवास्तव है।
उनके पिता हरिवंशराय बच्चन ने बतौर राइटर अपना पेन नेम बच्चन रखा था, जो आगे जाकर उनका सरनेम बन गया। इसे उनके बच्चों ने भी फॉलो किया।
बचपन में अमिताभ राजीव गांधी और संजय गांधी के साथ खेला करते थे। इलाहाबाद के बॉयज हाई स्कूल और नैनीताल के शेरवुड कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज में आर्ट्स की मास्टर डिग्री ली।
21 साल की उम्र में नौकरी करने कोलकाता गए, हो गई मोहब्बत
1963 में 21 साल की उम्र में अमिताभ बच्चन नौकरी की तलाश में इलाहाबाद से कोलकाता आ गए। कोलकाता की बड़ी शॉ वैलेस नाम की शराब कंपनी में उन्हें क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। यहां से निकले तो शिपिंग फर्म बर्ड एंड कंपनी में काम मिल गया। कुछ समय के लिए उन्होंने ICI कंपनी में भी काम किया, जहां उनकी चंद्रा नाम की महाराष्ट्रियन लड़की से मुलाकात हुई। अमिताभ उस लड़की के सीनियर थे। उनकी तनख्वाह 1500 रुपए थी और चंद्रा की महज 400।
साथ काम करते हुए दोनों को प्यार हो गया। ये उनकी पहली मोहब्बत थी। अमिताभ ने जब उनसे शादी के लिए इजहार किया, तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। इस बात से वो बुरी तरह टूट गए। दिल टूटने पर उन्होंने तुरंत नौकरी छोड़ दी, जिससे उन्हें 26 दिन की तनख्वाह भी नहीं मिली। नौकरी के बाद शहर भी छोड़ना था, तो वो सीधे कोलकाता से बॉम्बे (अब मुंबई) पहुंच गए।
रेडियो स्टेशन में नौकरी मांगी तो कहा गया- तुम्हारी आवाज सुनकर लोग भाग जाएंगे।
मुंबई पहुंचकर अमिताभ बच्चन नौकरी के लिए एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर चक्कर लगाते रहे। हर जगह से रिजेक्शन ही हाथ आया। एक बार वो एक रेडियो स्टेशन में नौकरी मांगने पहुंच गए। रेडियो में सिर्फ आवाज का ही काम था, तो उस समय मशहूर आवाज रहे अमीन सयानी ने उनका ऑडिशन लिया। आवाज सुनते ही अमीन बोल पड़े- तुम्हारी आवाज बहुत भारी है, लोग इसे सुनकर भाग जाएंगे।
ट्रेन में बांटी गई एक तस्वीर की बदौलत हीरो बन गए अमिताभ
हरिवंशराय बच्चन चाहते थे कि अमिताभ कोई ढंग की नौकरी करें, लेकिन उन्हें अभिनय में दिलचस्पी थी। हालांकि, उनके बड़े भाई अजिताभ उनके मन में पनप रहे हीरो बनने के ख्वाब को अच्छी तरह जानते थे। एक दिन अजिताभ मुंबई से दिल्ली आ रहे थे कि सफर में पास बैठे एक लड़के से पता चला कि ख्वाजा अब्बास अपनी फिल्म के लिए नए चेहरे की तलाश में हैं।
अजिताभ ने तुरंत अपने बैग से भाई की तस्वीर निकाली और उस लड़के को थमा दी। कह दिया कि ये तस्वीर उन तक पहुंचा दो, साथ ही उनसे संपर्क करने के लिए नंबर भी लिखा। अगले दिन तस्वीर ख्वाजा अहमद अब्बास तक पहुंची और उन्होंने तुरंत उन्हें मिलने बुला लिया। अमिताभ उस समय दिल्ली में थे, जो एक कॉल आते ही मुंबई पहुंच गए।
सफेद कसा हुआ चूड़ीदार, सफेद कुर्ता और साथ में नेहरू जैकेट और एक झोला लिए अमिताभ ख्वाजा अहमद अब्बास के दफ्तर पहुंचे। जैसे ही अमिताभ ने अपना नाम बताया तो सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया।
ख्वाजा- क्या तुमने इससे पहले कभी फिल्मों में काम किया है?
अमिताभ- जी नहीं, लोगों ने मुझे कभी फिल्मों में लिया ही नहीं।
अमिताभ ने कई बड़ी हस्तियों के नाम लिए, जिन्होंने उन्हें रिजेक्ट किया था।
ख्वाजा- उन्हें आप में क्या दिक्कत नजर आई।
अमिताभ- उन्हें लगता था कि मैं हीरोइनों के हिसाब से काफी लंबा हूं।
ख्वाजा- हमारे साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि हमारी फिल्म में हीरोइन नहीं है। होती तब भी तुम्हें ले लेते।
अमिताभ- आप मुझे फिल्म में ले रहे हैं? क्या वाकई आप मुझे फिल्म में ले रहे हैं? बिना टेस्ट के?
ख्वाजा- पहले तुम स्टोरी सुन लो फिर रोल और फीस जान लो। अगर तुम तैयार हुए तो कॉन्ट्रैक्ट साइन करेंगे।
बातों-ही-बातों में जब ख्वाजा अब्बास को पता चला कि अमिताभ हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं तो उन्होंने पूछा- क्या घर से भागकर आए हो?
अमिताभ ने जवाब में ना कहा। इसके बावजूद ख्वाजा अब्बास ने हरिवंश राय बच्चन को खत लिखकर पूछा कि कहीं उन्हें बेटे के फिल्मों में आने पर एतराज तो नहीं। जब खत के जवाब में सहमति मिली तो कुछ दिनों बाद ख्वाजा ने 5 हजार रुपए देकर अमिताभ को साइन कर लिया। 15 फरवरी 1969 को अमिताभ ने फिल्म सात हिंदुस्तानी साइन की जो 7 नवंबर 1969 को रिलीज हुई।
कई फ्लॉप फिल्मों के बाद जंजीर से बने एंग्री यंग मैन
1969 से शुरू हुआ अमिताभ बच्चन का एक्टिंग सफर भी आसान नहीं रहा। उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होती रहीं, तो वहीं कुछ लोग उन्हें साइड हीरो बनाकर ही काम देते थे, लेकिन 1973 की फिल्म जंजीर ने उनकी किस्मत हमेशा के लिए बदल दी। हालांकि, ये फिल्म उन्हें एक संयोग से मिली।
दरअसल, फिल्म की कहानी सलीम-जावेद की राइटर जोड़ी ने लिखी थी। उस समय धर्मेंद्र को स्क्रिप्ट पसंद आई और उन्होंने ये स्क्रिप्ट खरीद ली। ठीक उसी समय डायरेक्टर प्रकाश मेहरा ने फिल्म समाधि की स्क्रिप्ट धर्मेंद्र को पढ़ाई। वो स्टोरी उन्हें इतनी पसंद आई कि उन्होंने जंजीर की स्क्रिप्ट प्रकाश मेहरा को देकर उनसे समाधि की स्क्रिप्ट ले ली।
प्रकाश मेहरा ने वो स्क्रिप्ट तो ले ली, लेकिन उनके हीरो धर्मेंद्र पहले ही फिल्म समाधि में व्यस्त हो चुके थे। अब उन्होंने नए हीरो की तलाश शुरू कर दी। देव आनंद ने कहा फिल्म में गाने कम हैं और राजकुमार ने व्यस्त होने का हवाला देकर फिल्म करने से इनकार कर दिया। तलाश जारी ही थी कि एक दिन प्राण नाथ ने प्रकाश मेहरा को कॉल कर कहा कि आपको अमिताभ को साइन करना चाहिए, उसे देखकर लगता है कि वो एक दिन स्टार बनेगा।
प्रकाश उनकी बात से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि अमिताभ की पिछली 12 फिल्में फ्लॉप थीं। हालांकि, उन्होंने प्राण के कहने पर उनकी फिल्म बॉम्बे टु गोवा देखनी शुरू कर दी। फिल्म देखते ही प्रकाश मेहरा चिल्लाए, मुझे हीरो मिल गया।
लोगों ने जंजीर देखकर मजाक उड़ाया, कहा- ये लंबा बेवकूफ लड़का कौन है
जैसे ही फिल्मी गलियारों में खबर फैली कि प्रकाश मेहरा ने फिल्म जंजीर में अमिताभ को कास्ट किया है तो उनकी जमकर आलोचना हुई। लोगों ने कहा कि देखना ये फिल्म जरूर फ्लॉप होगी। अमिताभ ने भी इसके जवाब में कह दिया, अगर ये फिल्म नहीं चली तो मैं मुंबई छोड़कर अपने घर इलाहाबाद चला जाऊंगा।