अष्टमुखी भगवान श्री पशुपतिनाथ महादेव का शिवना नदी से हुआ प्रादुर्भाव, प्राण प्रतिष्ठा दिवस पर विशेष
महावीर अग्रवाल
मंदसौर २० नवंबर ;अभी तक ; ख्याति प्राप्त विश्व प्रसिद्ध अष्टमुखी भूतभावन भगवान श्री पशुपतिनाथ महादेव मंदिर का आज बुधवार को भव्य 64वां प्रतिष्ठा महोत्सव भव्य रूप से मनाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी को भगवान श्री पशुपतिनाथ की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। इस कारण हर वर्ष इस तिथि पर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया जाता है।
भगवान पशुपतिनाथ महादेव की अष्टमुखी प्रतिमा का जेठ सुदी 5 संवत 1997 (10 जून सोमवार सन 1940 )में शिवना नदी से प्रादुर्भाव हुआ जिसके सर्वप्रथम दर्शन उदाजी धोबी को हुए जिसकी सूचना उदाजी ने बाबू श्री शिवदर्शन लाल जी को दी,बाबू जी ने अपने साथियों के साथ प्रतिमा को देखा तथा बाबू श्री शिवदर्शन लाल जी अग्रवाल (पूर्व विधायक) ने अपने साथियों के साथ प्रतिमा को शिवना नदी से निकलवा कर अपने खेत में रखवाया तथा 21 वर्षों तक प्रतिमा का संरक्षण किया ,सन् 1961 में मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी पूज्यपाद स्वामी श्री प्रत्यक्षानंद जी महाराज के कर कमलो द्वारा भगवान पशुपतिनाथ महादेव का नामकरण एवं स्थापना की गई,आज भूत भावन भगवान पशुपतिनाथ जी महादेव की प्रतिष्ठा का 64 वा वर्ष है।
अष्टमुखी शिव प्रतिमा गोंदीघाट के निकट पुराने किल के हिस्से को स्पर्श करते हुए शिवना तट से प्राप्त हुई। इस प्रतिमा की प्राप्ति तथा वर्षों तक संरक्षण व सौन्दर्यीकरण का कार्य मंदसौर की ही एक विभूति हिन्दु महासभा के सक्रिय कार्यकर्ता व नगर वयोवृद्ध सनातनधर्मी बाबू श्री शिवदर्शन लाल अग्रवाल ने किया।
श्री शिवदर्शन लाल अग्रवाल ने मूर्ति के संरक्षण हेतु तत्कालिन तहसीलदार को अनुमति के लिये प्रार्थना पत्र दिया। बाबू श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल को ओकाफ कमेटी से अनुमति प्राप्त होते ही महावीर व्यायामशाला के स्वयंसेवकों तथा सैकड़ो नागरिकों ने अभियान छेड़ दिया रात भर पचे रहने पर सभी के परिश्रम (उस समय क्रेन नहीं थे) से शिवलिंग प्रतिमा को निकाला गया। उपरांत विशाल प्रतिमा को रनगाड़े पर चढ़ाया गया। इसे खींचने के लिये चौदह बैलगाड़िया लगाई गई। मार्ग में गाड़ी के टूट जाने पर सेठ श्री लक्ष्मीनारायण गनेड़ीवाल के यहाँ से लोहे का रनगाड़ा मंगवाया गया। गाजे बाजे के साथ मूर्ति को शहर में विशाल जुलुस निकालकर हजारों लोगों नें महादेव घाट से लगे बाबूजी के खेत पर स्थित नीम के वृक्ष के नीचे अस्थाई रुप से विराजमान की। यह स्थान श्री पशुपतिनाथ के निकट दक्षिण पूर्व में स्थित श्री जानकी मंदिर और बावड़ी के पास था। शिवना नदी से प्राप्त यह शिव प्रतिमा दिनांक 16 जून 1940 को तहसीलदार मन्दसौर द्वारा बाबू श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल की सुपुर्दगी में दी गई। इसे श्री महादेव घाट स्थित श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल के खेत पर रखी जाने की प्रतिक्रिया में एक पक्ष द्वारा जिला कलेक्टर से कहा गया कि इसे इस परिसर में स्थापित किये जाने पर अशांति उत्पन्न होने की आशंका है। जिला कलेक्टर नें सीधा मामला अपने सिर पर नहीं लेते हुए पुरातत्व विभाग के संचालक को संकेत दे दिया। दो माह में पुरातत्व विभाग से इस प्रतिमा को वापस प्राप्त कर ग्वालियर के पुरातत्व संग्रहालय में भिजवाने की पहल की।
बाबू श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल को बुला कर प्रशासन द्वारा. समझाया गया कि वे प्रतिमा महादेव घाट परिसर के निकट से हटा लें तथा अन्यत्र भेज दे लेकिन वे सहमत नहीं हुए। फलत: दिनांक 7 जूलाई सन् 1941 को तहसीलदार मन्दसौर ने एक और हुक्म क्र. 291 प्रसारित कर बाबू श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल से कहा कि वे इस प्रतिमा को एक माह के अंदर उसी स्थान पर वापस ले जाकर रख दें जिस स्थान से उन्हें सुपुर्द की गई है। दिनांक 19 जूलाई ईस्वी सन् 1941 को जिला कलेक्टर के मिसल क्रं. 85/96:31 से पुन: मूर्ति लोटाने के संबंध में आदेश पत्र जारी हुआ। इस आदेश पत्र में मन्दसौर की धर्मप्राण जनता में आक्रोश की लहर को उठाव दे दिया। दिनांक 26 जुलाई 1941 को जनकुपूरा स्थित बड़ा चौक में हिन्दु समाज की विशाल आमसभा हुई। उस जमाने में इस आमसभा की उपस्थिति डेढ़ से दो हजार मानी गई। आम सभा में प्रतिमा को महादेव घाट पर ही स्थापित करनें, पुरातत्व विभाग द्वारा प्राप्त किये जाने के प्रयास को निरस्त करने एवं प्रतिमा को बाबू श्री शिवदर्शनलाल अग्रवाल के कब्जे से वापस लेने का आदेश रद्द करने की मांग की गई। इसी दिन नागरिकों नें प्रदर्शन निकालकर जिला कलेक्टर को ज्ञापन दिया। जन आक्रोश को देखते हुए प्रतिमा को खेत से हटानें का इरादा ठण्डे बस्ते का मेहमान बन गया। प्रतिमा खेत में ही रखी रही।
प्रतिमा इक्कीस वर्षों तक प्रतिमा बाबूजी के खेत में ही रही। कई बार इस की स्थापना के प्रयास किये गये। उस समय पशुपतिनाथ नामकरण नहीं हुआ था। एक पूज्य शिवलिंग के रूप में इसकी स्थिती थी। इसकी पूजा अर्चना की जाती थी। शिवलिंग खेत में ही क्षैतिज स्थिती में था। तत्कालिन मंदसौर ग्वालियर रियासत के अंतर्गत था एवं ग्वालियर के महाराजा श्री जीवाजीराव सिंधीया थे। ईस्वी सन् 1946 में मंदसौर की प्रलयंकारी बाढ़ के समय पधारे ग्वालियर नरेश श्री जीवाजीराव सिंधीया से इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाने के लिये मंदसौर पधारने की प्रार्थना की गई थी। श्रीमंत जीवाजीराव सिंधिया ने प्रतिमा के दर्शन के लिये घोड़े पर बेठ कर पहुंचने का प्रयास किया किंतु उस समय शिवना नदी पर कोई पुल नहीं था । उनका घोड़ा कीचड़ के दल-दल में फंस गया। फलत: वे बिना दर्शन किये ही लौट गये तथा उन्होनें पूर्ण आश्वासन देते हुए कहा कि ग्वालियर जाकर धर्माधिकारों को भेजेंगे, तदनुरुप कार्य सम्पन्न होगा, किन्तु प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के प्रयास समय की परतों में छुपते गये।
अंत में 1961 सोमवार को वह क्षण अया जब पुष्य नक्षत्र की मंगल बेला में श्री महादेव घाट परिसर में पूज्य स्वामी श्री प्रत्यक्षानन्दजी महाराज के कर कमलों से चबूतरे पर इस अष्टमुखी शिवलिंग की स्थापना वैदिक विधी विधान के साथ मंत्रोचार के बीच सम्पन्न हो गई। म.प्र. के योजना तथा सूचना उपमंत्री श्री सीताराम जाजू का इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सप्तनीक आगमन हुआ। दिनांक 26 जनवरी 1968 को मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश मंडित किया गया, जिसका अनावरण राजमाता श्रीमती विजयाराजे सिंधीया ने किया। इस शुभ प्रसंग पर भव्य समारोह हुआ। कार्यक्रम को महामण्डलेश्वर स्वामी श्री सत्यमित्रानन्दगिरीजी महाराज तथा स्वामी श्री प्रत्यक्षानन्दजी महाराज स्वयं की उपस्थिति से आशिर्वाद प्राप्त हुआ। कलश के गोलम्बोर पर श्री पशुपतिनाथ के चार मुख तथा कमल अंकित हैं। कमल पर कलश स्थित हैं कलश का कुल वजन एक क्विंटल है। इस पर 51 तोला सोना चढ़ा हुआ है। त्रिशुल पर दस तोला सोना मंडित किया हुआ है।
सन् 1963 में नगर पालिका परिषद् नें श्री पशुपतिनाथ मेला का प्रस्ताव पारित कर भव्य मेला प्रारम्भ किया। प्रथम मेला 27 नवम्बर 1963 से 5 दिसम्बर 1963 तक आयोजित हुआ। मेला प्रारंभ होने के समय नगर पालिका के अध्यक्ष राजमल खाबिया थे। मेला आयोजन का प्रस्ताव पं. श्री मदनकुमार चौबे था तथा डॉ. सत्यनारायण शुक्ल दोनों तब पार्षद ने प्रस्तुत किया था।