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कितना बड़ा आश्चर्य है कि हम ओरों को तो जानते है परन्तु स्वयं को नहीं जानते कि मैं कौन हूूॅ- स्वामी प्रणवानंद सरस्वती

महावीर अग्रवाल 

मंदसौर २६ दिसंबर ;अभी तक ;   श्री चैतन्य आश्रम मेनपुरिया में 25 दिसम्बर को श्री मार्कण्डेय सन्यास आश्रम ओंकारेश्वर के परम पूज्य स्वामी श्री प्रणवानंदजी सरस्वती के ‘स्व का बोध’ अर्थात स्वयं (आत्मा) का बोध (ज्ञान) अर्थात वास्तव में मैं कौन हूँ, क्या मैं जल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, वायु जो इन पांच भूतों-तत्वों में मेरा शरीर है क्या वास्तव में यही शरीर हूं या फिर कुछ और हूं।

किसी से भी पूछो कि आप कौन हो तो वह झट से अपना नाम बता देगा परन्तु नाम जन्म के बाद दिया गया और नाम भी एक नहीं कई और हो गये। शरीर को इंगित करके कोई यह नहीं कहता मैं सिर-पैर-हाथ-मुंह-नाक-कान आदि अंग हूॅ बल्कि यही कहेगा ये सब अंग मेरे है। इतना ही नहीं मन बुद्धि चित्त अहंकार अंतःकरण सब मेरे है। इससे स्पष्ट है कि इन सबको जानने वाला कहने वाला कोई ओर है और यह वहीं आत्मा है जो स्वयं में हूॅ जो इस शरीर में स्थित 5 कर्मेन्द्रियां, 5 ज्ञानेन्द्रियां मन बुद्धि चित्त का नियंत्रक-इनको संचालन करने वाला आत्मा मैं ही हूॅ जिसके लिये भगवान ने गीता में ‘‘ममैवा शो जीवलोके’’ अर्थात यह जीव मेरा ही अंश है। रामायण में भी स्पष्ट कहा ‘‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी’’ सचमुच हम शरीर नहीं ईश्वर के ही अंश है।
यह भव ज्ञान दृढ़ता से हम तभी अनुभव कर सकते है जब हम किसी ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्मनिष्ठ श्रोत्रीय महापुरूष का सानिध्य हमंे प्राप्त हो।
संत युवाचार्य महन्त स्वामी मणी महेश चैतन्यजी महाराज, स्वामी किशोरजी महाराज, स्वामी वासुदेव चैतन्यजी महाराज, स्वामी मोहनानन्दजी महाराज भी मंचासीन थे।
संतों का पुष्पहारों से सम्मान चैतन्य आश्रम लोकन्यास अध्यक्ष प्रहलाद काबरा, सचिव रूपनारायण जोशी, कोषाध्यक्ष महेश गर्ग, पूर्व कोषाध्यक्ष जगदीश सेठिया, वरिष्ठ सदस्य राधेश्याम गर्ग, बंशीलाल टांक, प्रद्युम्न शर्मा, श्री राम सेना संयोजक राजेश चौहान आदि के अतिरिक्त गांव आक्या, एलची, मामनखेड़ा, बनी, दलौदा रेल, अमलेश्वर, नाथूखेड़ी के कई भक्तों ने सत्संग लाभ लिया
संचालन आश्रम के युवा संत पूज्य मणीमहेश चैतन्यजी महाराज ने किया। आभार सचिव रामनारायण जोशी ने माना।

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