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चतुर्भुज नाला की रॉक पेंटिंग कर रही पर्यटकों को आकर्षित, अरावली पर्वतमाला पर स्थित 10 वीं शताब्दी में बना चतुर्भुजनाथ मंदिर

महावीर अग्रवाल
मंदसौर  7  मई ;अभी तक;  मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड द्वारा लगातार प्रदेश के ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों पर बढ़ती संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कई प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में जिले में स्थित शांत परिदृश्य में भानपुरा में विरासत और प्राकृतिक सुंदरता का अद्भुत खजाना है। यहां हजारों साल पुरानी रॉक पेंटिंग पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है। लगातार यहां पर पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है।
                                 शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूरी स्थित, चतुर्भुज नाला हजारों प्राचीन शैल चित्रों से सुसज्जित ऐतिहासिक धरोहर को संजय हुए हैं। यहां 5 किलोमीटर के रास्ते में छोटी-छोटी गुफाएं बनी हुई है।  जिसमें रॉक पेंटिंग पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है। गांधी सागर अभयारण्य के अंदर स्थित, यह विशाल परिदृश्य और प्राचीन जल निकायों के लुभावने का दृश्य प्रदान करता है। अभ्यारण क्षेत्र में स्थित करीब 10 वीं शताब्दी में बना चतुर्भुजनाथ मंदिर भी अद्भुत व ऐतिहासिक है। पास ही एक बारहमासी नाला बहता है, जिसे चतुर्भुज नाला कहा जाता है। यहां प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र श्रंखला मौजूद है, जिसमें ढाई हजार से ज्यादा शैलचित्र मौजूद है,जो प्रागैतिहासिक कालीन मानवों की दैनिक जीवन क्रीड़ा प्रस्तुत करती है। पर्यटन को बढ़ावा देने वाली कई गतिविधियां संचालित की जा रही है।
                                    गुफा अपने मुहाने पर लगभग 1.4 मीटर (4.6 फीट) चौड़ी है, जहां से इसकी चौड़ाई लगातार कम होती जाती है और अंत में अपने मुंह से 8.4 मीटर (28 फीट) की गहराई पर बंद हो जाती है। गुफा की ऊंचाई लगभग 7.4 मीटर (24 फीट) है। इसकी दोनों ऊर्ध्वाधर दीवारों पर पांच सौ से अधिक गहरे पेटीले कप्यूल हैं। दाराकी-चट्टान कप्यूल्स की खोज 1992 में रमेश कुमार पंचोली द्वारा की गई थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भारत में प्रारंभिक पेट्रोग्लिफ्स के अध्ययन के लिए भानपुरा के पास दाराकी-चट्टान क्षेत्र को लिया और 2002 में गिरिराज कुमार के नेतृत्व में खुदाई शुरू की। दाराकी-चट्टान इस गुफा में एक व्यापक रॉक कला के अतीत का खुलासा करता है। उत्खनन से प्राप्त पत्थर की कलाकृतियों के संग्रह से निस्संदेह पता चलता है कि आश्रय पर एच्यूलियन व्यक्ति का कब्जा था। पेट्रोग्लिफ़्स का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का दावा है कि यह “दुनिया की सबसे पुरानी रॉक कला” है, जो लगभग 2 से 5 लाख वर्ष पुरानी है।

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