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देव, गुरू, धर्म की अनुमोदना कर श्रेष्ठ मनुष्य बनने का प्रयास करें ; आचार्य श्री जिनसुंदर सूरिश्वरजी म.सा

महावीर अग्रवाल 

मंदसौर २ दिसंबर ;अभी तक ;   हमें मनुष्य जीवन मिला है तो हमें उसकी महत्ता समझना चाहिये। मनुष्य भव में हमें अवश्य ही ऐसा कर्म करने चाहिए कि हम उच्च क्वालिटी के मनुष्य कहलाये। जीवन में यदि हम सक्षम नहीं है तो भी दान देने की इच्छा करें। पारिवारिक या अन्य किसी कारण से संयम नहीं ले पा रहे है तो संयम लेने के भाव मन में आवे। अपनी क्षमतानुसार देव, गुरु धर्म की अनुमोदना करते है तो हम अवश्य ही उच्च क्वालिटी के मनुष्य है हमें उच्च क्वालिटी के मनुष्य बनने का प्रयास करना चाहिये, यदि ऐसा करते है तो हम श्रेष्ठ मनुष्य है।
                                             उक्त उद्गार परम पूज्य जैन आचार्य श्री जिनसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. ने  नईआबादी आराधना भवन मंदिर हाल में आयोजित प्रवचन में कहे। आपने सोमवार को यहां धर्मसभा में कहा कि जिसको धार्मिक क्रियाकलापों में रहना अच्छा लगे, तप तपस्वियों की अनुमोदना करने का मन में भाव आवे तो वे मनुष्य अवश्य ही श्रेष्ठ है और आगामी समय में उन्हें अच्छी गति मिलेगी। अपने कहा कि जैन धर्म व दर्शन में वस्तुपाल तेजपाल, राजा कुमार पाल, राजा क्षणिक का वृतांत मिलता है जिन्होंने खूब दान दिया। सधर्मी भक्ति की देव गुरू धर्म की अनुमोदना की। ये जीवन में संयम नहीं ले पाये अर्थात गृहस्थ जीवन का त्याग कर रजोहरण स्वीकार कर संत नहीं बन जाये लेकिन उनके मन में सदैव भाव रहता था कि मैं भी संयमी बनु। आपने शालिभद्रजी का वृतांत बताया जिन्होंने संगम देव के भव में संत को पुरे मनोभाव से खीर वीरायी थी। शालिभद्रजी ने 32 पत्नियों के सुख को छोड़ संयम जीवन स्वीकार किया। आपने कहा कि हमारे जीवन में शिक्षा तो है लेकिन यदि संस्कार नहीं है तो हमारी शिक्षा का भी कोई महत्व नहीं है। यह लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर या अच्छे व्यापारी बन गये है लेकिन माता पिता की अवहेलना करते हो। स्वधर्मी भाई बहनों के प्रति आप दायित्व नहीं निभाते है तो आपकी शिक्षा किसी काम की नहीं है। जीवन में इतनी बुद्धि तो हमें होनी ही चाहिये कि हम देव, धर्म, गुरू का महत्व समझे, माता पिता की देखभाल करे, स्वधर्मी भाई बहन घर आये तो उनका आतिथ्य सत्कार करें। यदि ऐसा नहीं करते है तो हम मनुष्य होते हुए भी निम्न कोटी के जीव है। आपने कहा कि किचड़ में दो प्रकार के जीवन पैदा होते है। किड़े मकोड़े जो कि किचड़ में ही जन्म लेते है वहीं मर जाते है। दूसरा कमल का फूल जो कि पैदा तो किचड़ में होता है लेकिन वह किचड़ मंे होते हुए भी पुष्पों में श्रेष्ठ माना जाता है तथा प्रभु के चरणों की शोभा बड़ाता है। हमें कोन सा जीव बनना है किचड़ में रहने वाला किड़ा या कमल का पुष्प। यह हमें विचार करना है । धर्मसभा में बड़ी संख्या में धर्मालुजन उपस्थित थे। संचालन दिलीप रांका ने किया।
प्रतिदिन प्रातः 9 से 10 बजे तक हो रहे है प्रवचन- 
                               आराधना भवन श्रीसंघ अध्यक्ष दिलीप रांका ने बताया कि प्रतिदिन प्रातः 9 से 10 बजे तक आराधना भवन मंदिर के हाल में आचार्य श्री जिनसुंदर सूरीश्वरजी म.सा. व धर्मबोधि सूरीश्वरजी म.सा. के प्रवचन हो रहे है। धर्मालुजन प्रवचन में आकर अमृतवाणी श्रवण कर धर्मलाभ ले।

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