प्रदेश

बुंदेलखंड में कर्क रेखा 

रवीन्द्र व्यास 
 

वैसे तो  कर्क रेखा तीन महाद्वीपों ,16 देशों, और 6  जल निकायों से होकर गुजरती है। यह रेखा मध्य प्रदेश के  14 जिलों से होकर निकलती है | हाल ही में  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ब्यूरो ( ए एस आई ) ने दमोह जिले में सर्वे किया था , और इस बात की पुष्टि की है कि  कर्क रेखा जिले के दो स्थानों से गुजरती है | हालांकि यह एक काल्पनिक रेखा होती है जिसे देखा नहीं जा सकता पर इसका एहसास जरूर किया जा सकता है |वैसे भी  दमोह जिला अपने समृद्ध पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है | यहाँ मिलते शिलालेख और पुरा सम्पदा इसकी गवाही देते हैं | 


बुंदेलखंड के  दमोह जिले से कर्क रेखा  गुजरती है इसके लिए जिला प्रशासन ने भारत सरकार के  एएसआई को सर्वेक्षण करने हेतु  लिए पत्र लिखा | प्रशासन की इस पहल के बाद जब  एएसआई ने  सर्वे किया तो  जिले के तेंदूखेड़ा विकासखंड के   पिंडरई और बगदरी  गांव में कर्क रेखा के गुजरने की पुष्टि हुई |  . अब इन दोनों जगहों को कर्क रेखा के प्वाइंट के रूप में विकसित किया जाएगा. दोनों स्थानों को चिन्हित कर लिया गया है.

 
 कहाँ कहाँ से गुजरती है कर्क रेखा
 
  मध्य प्रदेश के  रतलाम, उज्जैन, आगर , राजगढ़, सीहोर, भोपाल, विदिशा, रायसेन, सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, उमरिया और शहडोल से होकर यह कर्क रेखा गुजरती है ।भारत में  गुजरात, राजस्थान , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , झारखंड , पश्चिम बंगाल , त्रिपुरा  और मिजोरम जैसे राज्यों से हो कर कर्क रेखा  गुजरती है |  मेक्सिको, लीबिया, बहामास, भारत, ओमान, माली, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, सऊदी अरब, मिस्र, पश्चिमी सहारा, अल्जीरिया सहित 17  ऐसे देश हैं जो कर्क रेखा पर आते हैं.|  
  कर्क रेखा का प्रभाव 
 
जून माह में  सूर्य की स्थिति मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ने को उत्तरायण एवं कर्क रेखा से मकर रेखा को वापसी को दक्षिणायन कहते हैं। इस प्रकार वर्ष ६-६ माह के में दो आयन होते हैं।ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई इस  काल्पनिक रेखा  की स्थिति स्थायी नहीं मानी जाती है , समय के साथ इसमें थोड़ा बहुत परिवर्तन  होता रहता है। २१ जून को  सूर्य इस रेखा के एकदम ऊपर होता है |  वह दिन सबसे लंबा व रात सबसे छोटी होती है।  इस दिन सबसे अधिक गर्मी होती है |  सूर्य की किरणें यहां एकदम लंबवत पड़ती हैं। इस समय कर्क रेखा पर स्थित क्षेत्रों में परछाई  छिप जाती है या कहें कि नहीं बनती है।
भारत में उत्तर से दक्षिण तक कर्क रेखा की अधिकतम लंबाई 3214 किमी और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2933 किमी है. कर्क रेखा की लंबाई राजस्थान में सबसे कम और मध्य प्रदेश में सबसे अधिक है |
 कर्क रेखा के  स्थान को  काल-गणना के लिए एकदम सटीक माना जाता है। इसे  खगोल-शास्त्र के अध्ययन के लिए है सबसे उचित स्थान माना जाता है ।भारत में उज्जैन से कर्क रेखा  निकलने के कारण ही जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने यहां वेधशाला बनवाई थी ।
मंदिर की खुदाई में मिले  चांदी के सिक्के

दमोह  जिले का एक गांव है  सादपुर, यहाँ जैन मंदिर के निर्माण के लिए खुदाई की जा रही थी | खुदाई के दौरान यहाँ  चांदी के सिक्के निकले । जैसे ही इसकी खबर लोगोनो को लगी लोग सिक्के बटोरने में जुट गए || जब तक इसकी जानकारी बटियागढ़ थाना पुलिस और मंदिर निर्माण कमेटी को लगती तब तक कई लोग सिक्कों को लेकर चम्पत हो गए | पुलिस और कमिटी को मौके पर कुछ बिखरे हुए सिक्के जरूर मिल गए |  इन सिक्कों पर जॉर्ज पंचम की चित्र और निर्माण काल   1907 से 1916 के मध्य का बताया गया है |पुलिस  मामले की जांच कर रही है और लोगों से  अपील कर रही है  कि जिन्हे भी ये ब्रिटिश कालीन सिक्के मिले हैं वे तत्काल जमा कराये , अन्यथा वैधानिक कार्यवाही की जायेगी | 

                              दरअसल दमोह जिला पुरातात्विक धरोहर का एक बड़ा केंद्र है | यहां कोई पहली बार इस तरह के सिक्के नहीं मिले हैं , इसके पहले भी यहाँ लोगों को इस तरह का खजान मिल चुका है | कई बार यहां लोग गुनिया और तांत्रिकों के सहयोग से प्राचीन स्थलों पर खुदाई करते रहते हैं | जिसके चलते कई ऐतिहासिक स्थल नष्ट भी हुए हैं |
 दस माह पहले भी  दमोह जिले के हटा जनपद क्षेत्र में मादो  गांव से एक  सड़क बनाई जा रही थी । सड़क निर्माण  के लिए  सुदामा लोधी के खेत से मिट्टी खोदी जा रही थी।  खुदाई के दौरान सड़क पर तांबे के सिक्के पाए गए। खुदाई के दौरान मिले सिक्के ग्रामीण अपने साथ ले गए। जिनमें कुछ सिक्कों पर अरबी भाषा में लिखा था तो कुछ पर स्वास्तिक और त्रिशूल के चिन्ह पाए गए।ये सिक्के मुगल काल और गोंडवाना शासन काल के माने गए।
 दमोह जिले के सकौर में स्कंदगुप्त काल के चांदी के सिक्के मिले थे।
   तेन्दूखेड़ा ब्लाॅक के बोरिया गांव और समनापुर में बड़ी संख्या में काले, पीले मोती के साथ ही महिलाओं के पहने जाने वाले गहने मिले थे ।
दमोह के कोतवाली क्षेत्र में  हल्ले अहिरवार को   मकान की खुदाई के दौरान  ब्रिटिश कालीन 240 चांदी के  सिक्के मिले |  हल्ले इन  सिक्कों को छिपाकर  अपने घर ले आया था | सिक्कों के साथ यह  युवा मजदूर रात भर  सो नहीं सका। अगली सुबह स्थानीय पुलिस स्टेशन में जाकर पुलिस को वो खजाना सौंप दिया। पुलिस ने दिहाड़ी मजदूर हल्ले अहिरवार की इस ईमानदारी भरे कदम की जमकर तारीफ भी की। जिस इलाके से यह सिक्के निकले वहां मराठा लोग रहा करते थे |
 
पाषाण युग और  दमोह  
 
दमोह के सिंग्रामपुर में  पौराणिक काल के पाषाण हथियार मिले थे । पाषाण हथियार इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहां  मानव सभ्यता पाषाण युग से ही थी । 5 वीं सदी के मिले  शिलालेख, सिक्के,  मंदिर व अन्य सामग्री यह बताती है कि  यह इलाका   गुप्त साम्राज्य का हिस्सा था।  8 वीं शाताब्दी से 12 वीं शताब्दी के मध्य दमोह जिले का कुछ भाग चेदी साम्राज्य के अंतर्गत आता था। जिसमें कलचुरी राजाओं का शासन था और उनकी राजधानी त्रिपुरी थी । कलचुरी शासकों के स्थापत्य कला का  नोहटा का नोहलेश्वर मंदिर। ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि दमोह जिले के कुछ क्षेत्र पर चंदेल का शासन था जिसे जैजाक मुक्ति कहा जाता था। 14 वीं शताब्दी में दमोह में मुगलो का आधिपत्य शासन रहा |   सलैया तथा बटियागढ़ में पाए जाने वाले पाषाण शिलालेखो में खिलजी और तुगलक वंश के शासन का उल्लेख है। बाद में मालवा के सुल्तान ने यहां शासन किया। 15 वीं शताब्दी के आखिरी दशक में गौड़ वंश के शासक संग्राम सिंह ने इसे अपने शक्तिशाली एवं बहुआयामी साम्राज्य में शामिल किया जिसमें 52 किले थे। यह समय क्षेत्र के लिए शांति और समृद्धि का था।
 
सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती मुगल साम्राज्य के प्रतिनिधि सेनापति आसफ खान, की सेना से साहस पूर्ण युद्ध करते हुए वीरगती को प्राप्त हुई। अपने साम्राज्य की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए उनके संकल्प समर्पण और साहस की बराबरी विश्व इतिहास में नहीं होगी। क्षेत्र में बुंदेलो ने कुछ समय के लिए यहाँ राज्य किया इसके बाद मराठों ने राज्य किया। सन् 1888 में पेशवा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने मराठों के शासन पर कब्जा किया ।
 

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