प्रदेश

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने चुनाव लड़ने के लिए एमबीबीएस की पढ़ाई छोड़ दी थी

प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे
 मन्दसौर १७ मार्च ;अभी तक ;  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं तथा वहीं से इन्हें राष्ट्र सेवा का संस्कार प्राप्त हुआ। यह बचपन से ही नेतृत्व करने का गुण लिए हुए थे, और इस गुण को विकसित करने में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का बहुत बड़ा योगदान रहा, वहीं उनके गुरु, विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय संगठन मंत्री स्वर्गीय श्री शालिग्राम जी तोमर का बहुत बड़ा योगदान रहा।
                            माधव विज्ञान कॉलेज में जब मोहन जी बीएससी कर रहे थे इसी समय वे कॉलेज के जॉइंट सेक्रेटरी भी हो गए थे इसी बीच उन्होंने पीएमटी की परीक्षा को क्लियर कर लिया तथा इंदौर के मेडिकल कॉलेज में इनका एडमिशन भी हो गया था किंतु मेडिकल कॉलेज में चुनाव नहीं होते हैं और ये चुनाव लड़ने के शौकीन थे अर्थात एक विजन उनकी आंखों में था तो उन्होंने सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए ही मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी और वापस माधव विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया और फिर छात्र संघ का चुनाव लड़ा।
                         विद्यार्थी परिषद में प्रदेश के विभिन्न पदों पर रहते हुए वे राष्ट्रीय महामंत्री के पद तक पहुंच गए उस समय उनके साथ के जेपी नड्डा तथा धर्मेंद्र प्रधान राजनीति में जा चुके थे यह देखकर उनकी भी इच्छा हुई कि मुझे अब राजनीति में जाना चाहिए किंतु इस समय विद्यार्थी परिषद के प्रांतीय संगठन मंत्री शालिग्राम जी तोमर जो उनके गुरु रहे, उन्होंने कहा कि अभी तुम्हारा राजनीति में जाने का समय नहीं है और मोहन यादव ने विनम्रता से उनकी बात को स्वीकार किया। श्री शालिग्राम जी तोमर का उनके पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन में इतना सहयोग था कि श्री मोहन यादव के विवाह को कराने में श्री शालिग्राम जी तोमर की महत्वपूर्ण भूमिका रही और उन्होंने ही इनके लिए लड़की ढूंढी तथा रीवा में इनका संबंध कराया था।
                      इस बीच उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सायं  विभाग का कार्यवाह का दायित्व दिया गया। उस समय कुछ क्षण के लिए उन्हें से लगा कि, कहां मैं परिषद का राष्ट्रीय महामंत्री रहा और अब मुझे यह संघ का दायित्व दिया गया किंतु उन्होंने संगठन के आदेश को शिरोधार्य किया।
                            एक बार फिर उन्हें राजनीति में जाने की इच्छा हुई तो श्री शालिग्राम तोमर ने उनसे कहा कि- राजनीति में जाने के पहले अपने व्यवसाय को सेट करो, क्योंकि राजनीति में जाना है तो आर्थिक दृष्टि से अपने आप को इतना सक्षम बनाओ कि  किसी के सामने हाथ फैलाने की आवश्यकता ना पड़े।  फिर 1997- 98 में उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रांतीय सदस्य, फिर नगर मंत्री जिला मंत्री इत्यादि के दायित्व मिलते  चले गये।
                             2003 में तो उन्हें बडनगर से विधानसभा का टिकट तक मिल गया था किंतु वहां स्थानीय विरोध तथा संगठन के वरिष्ठ लोगों की सलाह पर इन्होंने विधानसभा का टिकट वापस कर दिया, क्योंकि वहां पर इनसे 20 साल सीनियर श्री शांतिलाल झंवर चुनाव लड़ना चाहते थे और उन्होंने इसी का सम्मान करते हुए यह त्याग किया था। उस समय भी अनेक सहयोगी मित्रों ने इनसे कहा कि यह राजनीति है, इसमें अवसर को चूकना नहीं चाहिए किंतु फिर भी श्री मोहन यादव ने अपने वरिष्ठ श्री माखनसिंह चौहान तथा श्री शालिग्राम तोमर की बात को माना।
2008 में भी इन्हें टिकट नहीं मिला किंतु उनके सामने हाउसिंग बोर्ड , अपेक्स बैंक के अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव आया परंतु इन्होंने यह कहकर टाल दिया कि मैं किसी विशेष क्षेत्र में बंध कर कार्य करना नहीं चाहता।
2013 में फिर इन्हें विधानसभा टिकट मिला और यह विजयी हुए।
उक्त संक्षिप्त कहानी से यह पता चलता है कि, राजनीतिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए जीवन में एक राजनीतिक गुरु का होना जरूरी है तथा अपने स्वप्न के प्रति दृढ़ता इस तरह हो कि इन्होंने चुनाव लड़ने के लिए मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी तथा धैर्य ऐसा कि विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री रहने के बाद भी आरएसएस के सायं विभाग कार्यवाह का दायित्व निभाया तथा बाद में जनता युवा मोर्चा में नगर मंत्री जिला मंत्री बन कर के अपनी राजनीतिक यात्रा को शुरू किया तब कहीं जाकर विधायक, कैबिनेट मंत्री तथा अब सीधे मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी श्री मोहन यादव को मिली है। इसी राजनीतिक प्रक्रिया का  पालन,वर्तमान कार्यकर्ताओं को भी करना चाहिए।
प्रस्तुति-रमेशचन्द्र चन्द्रे

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