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शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में मनाया गया अंतरराष्ट्रीय गणित दिवस

दीपक शर्मा

पन्ना २३ दिसंबर ;अभी तक ;   पवई शासकीय माध्यमिक शाला नारायणपुरा में अंतरराष्ट्रीय गणित दिवस पर चित्रकला, निबंध, भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया एवं छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया।

इस अवसर पर शिक्षक सतानंद पाठक ने गणित दिवस के महत्व पर छात्र-छात्राओं को बताया कि 33 वर्ष से कम की अल्पायु में संसार को अचंभित करने वाले जिन भारतीयों का नाम आता है उनमें भगवान आदि शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद के साथ महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का नाम भी सम्मिलित है। एस रामानुजन का नाम बीसवीं शताब्दी के महानतम गणितज्ञ में लिया जाता है जबकि उनकी औपचारिक उच्च शिक्षा लगभग न के बराबर थी। अनन्य विलक्षण प्रतिभा के धनी लोगों की ही तरह एस रामानुजन गणित में तो अद्भुत ज्ञान और समझ रखते थे लेकिन अन्य विषयों में उनकी रुचि बहुत ही कम थी। जैसे अल्बर्ट आइंस्टाइन और थामस अल्वा एडिसन के विषय में कहा जाता है कि गणित और विज्ञान  को छोड़कर वह किसी विषय में पास नहीं होते थे या बहुत कठिनाई से और रविंद्र नाथ टैगोर के विषय में कहा जाता है कि साहित्य को छोड़कर और किसी विषय में उनकी रुचि नहीं थी। थॉमस अल्वा एडिसन को तो स्कूल से निकाल दिया गया था क्योंकि अध्यापक समझते थे कि वह मंदबुद्धि है। उसी तरह से एस रामानुजन गणित को छोड़कर अन्य हर विषय में फेल हो जाते थे। शिक्षक सतानंद पाठक ने आगे बताया कि महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन आयंगर का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को कोयंबटूर के ईरोड गांव के एक धर्मनिष्ठ आयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास आयंगर और मां कोमलता अम्मल गृहणी था। कोमलता अम्मल गांव में मंदिर में ईश्वर के समक्ष भजन  गायन करती थीं। उनके पिता साड़ी की एक दुकान में एकाउंटेंट थे। ग़रीबी के कारण उन्हें स्थानीय सरकारी विद्यालय के अतिरिक्त कही उचित शिक्षा न मिल सकी। प्राइमरी शिक्षा के बाद उन्हें जीवन के दसवें वर्ष टाऊन हायर सेकंडरी स्कूल में प्रवेश मिला। मात्र 11 वर्ष में उन्होंने वह सब पढ़ लिया जो कालेज में उपलब्ध था। 14 वर्ष में वह अन्य विद्यार्थियों और अध्यापकों की कठिन गणितीय समस्याओं का हल करने लगे। 1913 में रामानुजन ने जब उस समय के पीप्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और कैम्ब्रिज के प्रोफेसर जी एच हार्डी को पत्र लिखा और उसमें अपने कुछ गणितीय सूत्र लिख भेजे तो प्रोफेसर हार्डी को आश्चर्य के साथ घोर अविश्वास हुआ। उन्हें कुछ सूत्र असम्भव लगे। आज की कार्यक्रम में शिक्षक सतानंद पाठक, सिद्धार्थ सागर एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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