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शिक्षा विभाग में परीक्षा परिणाम को लेकर जहां प्राचार्यों से बैठक वहीं क्या आज भी सलंग्नीकरण व्यवस्था पर होगा गौर?

दीपक शर्मा

पन्ना ३ जनवरी ;अभी तक ;   जिले में शैक्षणिक व्यवस्था व शिक्षा को लेकर लम्बे अर्से से मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत की कार्यप्रणाली सुधार की दिशा में बेहतर मानी जाती है वहीं अभी हाल ही में कुछ दिवस पूर्व संयुक्त संचालक शिक्षा के माध्यम से प्राचार्यों की बैठक समीक्षा के रूप में ली गई थी जहां परीक्षा परिणामों को लेकर यह बैठक अहम मानी जा रही थी। निश्चितौर पर परीक्षा परिणामों को लेकर विभाग का फोकस तो माना जाता है पर वहीं मध्यप्रदेश में ही कुछ जगह संयुक्त संचालक जिनके आदेश अपने जिलों में संलग्नीकरण व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा पर फोकस को लेकर जानी गई वहीं पन्ना जिला जो अपने आप में शिक्षकों की भूमिका तथा संलग्नीकरण को लेकर कई बार सवालों को लेकर चर्चा का विषय बनते ही है पर संलग्नीकरण व्यवस्था को जब जिम्मेदार ही उचित मानते है तो फिर इस पर गौर कैसे हो।

वहीं शिक्षा विभाग में शिक्षको के द्वारा जहां शिक्षा जब समय पर नहीं प्रदान की जायेगी तो परीक्षा परिणाम की उम्मीद किस हद तक बेहतर मानी जाये। साथ ही सवाल यह उठता है कि जहां पद स्थापना को लेकर होती है वहीं कितने दिन से शिक्षक शिक्षा प्रदान करते है वहीं इन शिक्षकों को जिन्हे काबिल माना जाता है उन्हें मातहत के रूप में अपने ही कार्यालयों में विभाग के वरिष्ठ कहीं न कहीं जिम्मेदार मानकर उनसे कार्य कराने को लेकर उचित मानते है तो फिर परीक्षा परिणाम को लेकर क्या अतिथियों की भूमिका से उचित माना जाये।

वहीं शैक्षणिक व्यवस्था को लेकर जिस तरह की कार्यप्रणाली मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के द्वारा विगत वर्षों वहीं समय-समय पर विद्यालयों के निरीक्षण को लेकर कई बार चर्चा में आई वहीं क्या विभागीय अधिकारी कितनी मॉनीटरिंग करते है किन-किन अधिकारियों को मॉनीटरिंग करने को लेकर दायित्व निभाने के लिए निहित है क्या वास्तविकता में मॉनीटरिंग की जाती है जब तक विभाग ही शैक्षणिक व्यवस्था को लेकर गंभीर नहीं होगा तो परीक्षा परिणाम कैसे तय होगें। एक तरफ हालात संलग्नीकरण के दूसरी तरफ तरह-तरह के प्रयोग वहीं वर्तमान समय तक प्रशिक्षण को लेकर कई बार स्थितियां बन जाती है आखिरकार अब तो हालात परीक्षा परिणामों को लेकर उचित माना जाता है तो फिर छात्र-छात्राओं को पढ़ाने के लिए समय क्यों नहीं उचित माना जाता। ताकि परीक्षा परिणाम वास्तविकता में बेहतर माने जाये। कार्यप्रणाली आज भी कई तरह के सवालों को दे रही जन्म क्या सुधार की दिशा को लेकर उचित माना जाये। यह तो जिम्मेदार ही जाने?

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