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13 से 20 आयु वर्ग के बच्चे माता-पिता को दुश्मन समझते हैं

महावीर अग्रवाल
      मन्दसौर १५ जुलाई ;अभी तक;    वर्तमान समय शिक्षा की दृष्टि से बहुत ही प्रोग्रेसिव है। दो या तीन साल के बच्चे की समझ  इतनी विकसित हो गई है, जो कभी 10 साल के बच्चे की भी नहीं होती थी।
           बच्चों की बुद्धि का विकास इस कदर हो रहा है कि  90-95 प्रतिशत अंक लाना सामान्य बात हो गई है  एवं बच्चों का जनरल नॉलेज, मोबाइल फोन और टीवी की वजह से इतना अधिक बढ़ गया है, यह हम सभी जानते हैं। बच्चों के पास शब्दकोश की कोई कमी नहीं उनकी अभिव्यक्ति की क्षमता इतनी अधिक हो गई है कि वह हर बात पर क्रॉस क्वेश्चन कर सकते हैं।
       शिक्षाविद श्री रमेशचंद चन्द्रे ने कहा कि  किंतु उक्त प्रगति के साथ-साथ दुर्गुणों के विकास की संभावनाएं भी बढ़ती जा रही है। 13 से 20 की आयु वर्ग के बच्चों के हारमोंस जंप मारते हैं और उनमें शारीरिक परिवर्तन बहुत तेजी से होता है। उनमें अच्छा दिखने की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ती है कि उनके मेकअप और परफ्यूम के खर्च भी बढ़ते चले जाते हैं। इस उम्र के बच्चे स्वतंत्र रहना चाहते हैं वह माता-पिता की टोका टोकी को सहन नहीं करते और कभी-कभी माता-पिता और घर के बड़े उनका दुश्मन नजर आते हैं जबकि दूसरे के पेरेंट्स उन्हें अच्छे लगते हैं तथा वे अन्य पेरेंट्स से अपने माता-पिता की तुलना करने लगते है इसलिए यहीं से द्वंद शुरू हो जाता है।
          ऐसी स्थिति में बच्चों का भावनात्मक पोषण-तोषण करने वाले कोई तत्व उनके संपर्क में आते हैं तो वह उनके अनुयायी बन जाते हैं तथा कभी-कभी नशे की चपेट में आ जाते हैं। सिगरेट, ई-हुक्का, चिलम, स्मोक, बियर या शराब की  उन्हें लत लग जाती है तथा उनका चारित्रिक पतन भी होने लगता है। यह लक्षण देखकर जब माता-पिता  रोकते हैं, उस समय उन्हें अपने माता-पिता दुश्मन नजर आते हैं।
       इसलिए 13 वर्ष से लेकर 19 वर्ष की आयु तक जिनको टीन-एज़र कहा जाता है, उन्हें संभालने की आवश्यकता होती है वरना वह परिवार के हाथ से निकल जाते हैं। इस उम्र के बच्चों में बनने संवरने, अच्छे कपड़े पहनने का शौक चरम पर रहता है, बार-बार कांच देखना बाल संवारना तथा मोबाइल से अपने ही फोटो खींचकर बार-बार देखना यह दुष्प्रवती आने लगती है और इसके लिए संसाधनों की पूर्ति नहीं होने पर वह गलत मार्ग पर चल पड़ता है।
     उन्होंने कहा कि इसलिए अभिभावकों को सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है। बच्चों को बच्चा समझ कर उसकी गलतियों को माफ नहीं करना चाहिए। यदि *निकटतम कोई व्यक्ति या स्कूल के टीचर आपके बच्चों के बारे में कोई शिकायत करें तो उन पर नाराज मत होइये  है बल्कि उनको हितेषी समझ कर उनकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए। अपनी संतानों के प्रति शंका न रखते हुए निरंतर सचेत रहने की आवश्यकता है* क्योंकि जिस तरह के इलेक्ट्रॉनिक साधन आपके बच्चे के हाथ में है वह उनके जीवन में विकास के स्थान पर रिसन भी पैदा कर सकते हैं। इसलिए बच्चों के लिए घर में संस्कारक्षम वातावरण बनाना आवश्यक है यदि ऐसा नहीं किया तो जब आपके बच्चे पढ़ने या नौकरी करने लिए बड़े शहर में जाते हैं तो वहां वह और भी निरंकुश हो सकते हैं क्योंकि उन पर नैतिक दबाव बनाने वाला कोई नहीं होता अच्छे-अच्छे शाकाहारी परिवार के बच्चे बड़े शहरों में जाकर मांसाहारी हो जाते हैं तथा प्रोफेशनल अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं। इसलिए वहां भी माता-पिता को निगरानी बढ़ाने के प्रयत्न करना चाहिए अन्यथा आपकी संतान आपके जीवन में क्लेश पैदा कर सकती है।
         सावधान रहिए और अपने पुत्र पुत्र की मित्रता कैसे लोगों से है इस पर अपनी निगरानी रखिए आवश्यकता पड़ने पर प्रारंभ से यदि अगर अनुशासन एवं कठोरता रखी तो फिर आपको पछताना नहीं पड़ेगा।

 


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